‘कमीशनखोरी से बढ़ा बस्ते का बोझ’
रायपुर | संवाददाता: “साहब बस्ते का बोझ कम हो जायेगा किताबों पर कमीशन बंद करा दो”. रायपुर में स्कूली बच्चों के बस्ते का बोझ कम करने के लिये आयोजित कार्यशाला में कुछ लोगों ने कहा. उन्होंने आरोप लगाया कि स्कूलों द्वारा कमीशनखोरी के चक्कर में एक की जगह चार-चार किताबें खरीदवाई जा रही है जिससे बस्ते का बोझ बढ़ रहा है.
उल्लेखनीय है कि स्कूली बच्चों के बस्ते का बोझ कम करवाने के लिये राजधानी रायपुर में शासन द्वारा पहल किया गया है. जिसे बाद में पूरे राज्य में लागू करवाया जायेगा. इस कार्यशाला का आयोजन जिला शिक्षा अधिकारी ने किया था.
कार्यशाला में कई सुझाव आये जिसमें बच्चों के लिये मेज में ही लॉकर की व्यवस्था करने, एक दिन में सिर्फ दो विषयों का होमवर्क देने, सभी कापी-किताब हर दिन न मंगवाने, किताबों को दो पार्ट में विभाजित करवाने का सुझाव आया.
इस कार्यशाला में निजी-सरकारी स्कूलों के प्राचार्य, प्रधानाध्यापक तथा संचालकों ने भाग लिया.
उल्लेखनीय है कि एसोसिएटिड चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री ऑफ इंडिया के तहत हेल्थकेयर कमेटी ने इस रिसर्च किया था. जिसमें भारत के 13 साल तक की उम्र के 68 फीसदी बच्चे हल्का कमर दर्द महसूस करते हैं जो कि बाद में विकसित होकर गंभीर दर्द या फिर कुबड़ापन के रूप में सामने आ सकता है.
सर्वे में पाया गया था कि 7 से 13 साल के 88 फीसदी बच्चे 45 फीसदी वजन आर्ट किट, स्केसट्स, स्विमबैग, क्रिकेट किट और ताइकांडो किट्स का कमर पर उठाते हैं जो कि गंभीर स्पाइनल डैमेज और कमर की समस्याओं के लिए जिम्मेदार है.
एसोचैम की हेल्थ कमेटी के चेयमैन का कहना है कि बच्चे बैग के बोझ के कारण स्लिप डिस्क के शुरूआती चरण, स्पॉन्डिलाइटिस, स्पोंडिलोलिस्थीसिस, लगातार पीठ में दर्द की शिकायत, रीढ़ की हड्डी में दर्द जैसी समस्याओं को झेल रहे हैं.
बस्ते के ज्यादा वजन से क्या होता हैं-
ज्यादा बोझ के कारण बच्चो की रीढ़ की हड्डी पर बुरा असर पड़ सकता है. बच्चे के लिए दस किलो उठाना वैसा ही हो सकता है जैसा किसी वयस्क के लिए तीस या चालीस किलो उठाना. ऐसे मे यह जानना जरुरी है कि बस्ते का वजन कम हो जिससे बच्चे को किसी तरह नुकसान ना हो.
चिल्ड्रंस स्कूल बैग एक्ट-
चिल्ड्रंस स्कूल बैग एक्ट 2006 के मुताबिक, बच्चों के स्कूल बैग का वजन उनके वजन से 10 फीसदी से अधिक नहीं होना चाहिये. नर्सरी और प्ले स्कूल के बच्चों को स्कूल बैग की मनाही है. नर्सरी और प्ले स्कूल के लिए बैग्स को लेकर अलग से गाइडलाइंस हैं. साथ ही ये भी राज्य सरकार को सलाह है कि वे बच्चों को लॉकर की सुविधा मुहैया करवायें.