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आंध्र ने कहा-पोलावरम पर छत्तीसगढ़ बताए विकल्प

रायपुर | संवाददाता : छत्तीसगढ़ के आदिवासी बहुल सुकमा के एक बड़े हिस्से को डूबाने वाले पोलावरम बांध को लेकर आंध्र ने छत्तीसगढ़ से ही विकल्प मांगा है.आंध्र प्रदेश का कहना है कि छत्तीसगढ़ और ओडिशा विकल्प ले कर आएं.

पोलावरम परियोजना के प्रभारी मुख्य अभियंता नरसिम्हा मूर्ति ने कहा, “हम इस परियोजना के बैकवाटर के प्रभाव के आकलन पर केंद्रीय जल आयोग के निर्देशों का पालन कर रहे हैं. अब यह समय है कि ओडिशा और छत्तीसगढ़ अपने प्रस्ताव प्रस्तुत करें.”

केंद्रीय जल आयोग 28 अगस्त को नई दिल्ली में इन दोनों राज्यों के साथ-साथ आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के साथ बैकवाटर के उन पर पड़ने वाले प्रभाव पर चर्चा करने के लिए बैठक कर रहा है.

जब आंध्र प्रदेश ने भारी मात्रा में पानी रोककर 45.72 मीटर की ऊंचाई पर पोलावरम बांध बनाने की अपनी योजना पेश की, तो ओडिशा और छत्तीसगढ़ ने अपने निचले इलाकों के जलमग्न होने का मुद्दा उठाया.

केंद्रीय जल आयोग ने पिछले साल इस पर एक अध्ययन किया था और आंध्र प्रदेश को परियोजना के विभिन्न घटकों के निर्माण के लिए विशिष्ट डिजाइनों का पालन करने की सलाह दी थी.

आंध्र प्रदेश जल संसाधन प्राधिकरणों का कहना है कि वे इन निर्देशों का ईमानदारी से पालन कर रहे हैं और परियोजना के बैकवाटर के अन्य राज्यों पर पड़ने वाले प्रभाव के प्रति भी सचेत हैं.

हालांकि, उनका कहना है कि ओडिशा सरकार को आंध्र प्रदेश द्वारा प्रस्तावित विकल्पों का लाभ उठाना चाहिए.

पहला विकल्प यह है कि आंध्र प्रदेश, ओडिशा के संवेदनशील क्षेत्रों को जलमग्न होने से बचाने के लिए बाढ़ तटबंधों का निर्माण करने के लिए तैयार है.

दूसरे विकल्प के लिए, आंध्र प्रदेश ने डूब की भरपाई करने की अपनी मंशा जाहिर की है.

आंध्र प्रदेश के सिंचाई अधिकारियों का कहना है कि ओडिशा सरकार ने अभी तक उनके प्रस्ताव पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है. ओडिशा सरकार ने अभी तक इस मुद्दे पर सार्वजनिक सुनवाई नहीं की है, जिससे उसे इस मुद्दे को हल करने के लिए प्रस्ताव तैयार करने में मदद मिलनी चाहिए.

आंध्र प्रदेश के अधिकारियों का कहना है कि एक बार ओडिशा जवाब दे देता है, तो उम्मीद है कि छत्तीसगढ़ भी अपने प्रस्ताव पेश करेगा.

आंध्र प्रदेश का कहना है कि तेलंगाना की कुछ निचले इलाकों के डूब जाने की उसकी शिकायत इसलिए है क्योंकि छोटी धाराएँ खासकर बाढ़ के दौरान, गोदावरी नदी में नहीं जा पा रही हैं.

अधिकारियों का कहना है कि यह इसलिए होता है क्योंकि नदी का जल स्तर धाराओं के स्तर से ऊपर उठ जाता है. चूंकि यह एक प्राकृतिक घटना है, इसलिए इस मुद्दे को हल करने के लिए बहुत कुछ करने की गुंजाइश ही नहीं है.

आंध्र प्रदेश का कहना है कि एक बार नदी में जल स्तर कम हो जाने पर, धाराओं का पानी नदी में बह जाएगा और निचले इलाकों में बाढ़ नहीं आएगी.

ख़तरे में दोरला आदिवासी

आंध्र प्रदेश के पोलावरम इंदिरा सागर बांध को लेकर बस्तर के सुकमा जिले के कोंटा ब्लाक के हजारों ग्रामीण चिंतित हैं.

आदिवासियों का कहना है कि पोलावरम बांध छत्तीसगढ़ के हजारों आदिवासियों के लिए तबाही का सबब बन सकता है.

गोदावरी नदी पर बन रहे इस बांध के बन जाने से कोंटा के बंजाममुड़ा, मेटागुंडा, पेदाकिसोली, आसीरगुंडा, इंजरम, फंदीगुंडा, ढोढरा, कोंटा और वेंकटपुरम समेत 18 ग्राम पंचायत डुबान क्षेत्र में आ जाएंगे. लेकिन बरसात के साथ ही इन गांवों में बांध का पानी भर गया है.

माना जा रहा है कि इस बांध के कारण इलाके के 40 हजार से अधिक की आबादी को अपनी जमीन और घर छोड़कर विस्थापित होना पड़ेगा.

हालांकि आबादी के अनुमान का यह आंकड़ा बहुत पुराना है.

दावा तो ये है कि सरकारी अनुमान से कहीं दोगुना हिस्सा इस डैम में डूबेगा और दोगुनी से अधिक आबादी इससे प्रभावित होगी.

छत्तीसगढ़ में दोरला आदिवासियों की सबसे बड़ी आबादी इसी इलाके में बसती है.

स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ताओं और सरकारी अधिकारियों का कहना है कि इस बांध के साथ दोरला आदिवासी, उनकी संस्कृति और सभ्यता भी हमेशा-हमेशा के लिए डूब जाएगी.

2001 के सरकारी दावे के अनुसार इस बांध से आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़ और ओडिशा के 371 से अधिक गांव, टोला और लगभग 4000 हेक्टेयर जंगल डूब जाएंगे.

सरकार का दावा है कि इस बांध से 1,06,006 परिवारों को विस्थापित होना पड़ेगा. इसमें से 53.3 फ़ीसदी यानी 56,504 आदिवासी परिवार हैं.

विस्थापित होने वाले इन आदिवासियों की संख्या 1,64,752 है.

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