छत्तीसगढ़ विशेष

पोलावरम बांध: दहशत में छत्तीसगढ़ के आदिवासी

रायपुर। संवाददाताः आंध्र प्रदेश के पोलावरम इंदिरा सागर बांध को लेकर बस्तर के सुकमा जिले के कोंटा ब्लाक के हजारों ग्रामीणों की चिंता एक बार फिर बढ़ गई है. पोलावरम बांध छत्तीसगढ़ के हजारों आदिवासियों के लिए तबाही का सबब बन सकता है.

बरसात की शुरुआत के साथ ही इस इलाके के डूबने का खतरा मंडराने लगा है.

गोदावरी नदी पर बन रहे इस बांध के बन जाने से कोंटा के बंजाममुड़ा, मेटागुंडा, पेदाकिसोली, आसीरगुंडा, इंजरम, फंदीगुंडा, ढोढरा, कोंटा और वेंकटपुरम समेत 18 ग्राम पंचायत डुबान क्षेत्र में आ जाएंगे. लेकिन बरसात के साथ ही अभी से इन गांवों में बांध के पानी के भरने की आशंका जताई जा रही है.

इसके कारण इस इलाके के 40 हजार से अधिक की आबादी को अपनी जमीन और घर छोड़कर विस्थापित होना पड़ेगा. हालांकि आबादी के अनुमान का यह आंकड़ा बहुत पुराना है.

दावा तो ये है कि सरकारी अनुमान से कहीं दोगुना हिस्सा इस डैम में डूबेगा और दोगुनी से अधिक आबादी इससे प्रभावित होगी.

छत्तीसगढ़ में दोरला आदिवासियों की सबसे बड़ी आबादी इसी इलाके में बसती है.

स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ताओं और सरकारी अधिकारियों का कहना है कि इस बांध के साथ दोरला आदिवासी, उनकी संस्कृति और सभ्यता भी हमेशा-हमेशा के लिए डूब जाएगी.

2001 के सरकारी दावे के अनुसार इस बांध से आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़ और ओडिशा के 371 से अधिक गांव, टोला और लगभग 4000 हेक्टेयर जंगल डूब जाएंगे.

सरकार का दावा है कि इस बांध से 1,06,006 परिवारों को विस्थापित होना पड़ेगा. इसमें से 53.3 फ़ीसदी यानी 56,504 आदिवासी परिवार हैं.

विस्थापित होने वाले इन आदिवासियों की संख्या 1,64,752 है.

नंद कुमार साय के अनुसूचित जनजाति आयोग के अध्यक्ष रहते राष्ट्रपति को सौंपी गई आयोग की एक रिपोर्ट कहती है कि आदिवासियों के विस्थापन और पुनर्वास के मामले में आंध्र प्रदेश की सरकार पूरी तरह से असफल रही है.

26 से 28 मार्च 2018 को आयोग के अध्यक्ष नंदकुमार साय ने अनुसुइया उइके, जो बाद में छत्तीसगढ़ की राज्यपाल बनीं; समेत अन्य सदस्यों के साथ पोलावरम बांध प्रभावित इलाकों का दौरा किया था.

पोलावरम
पोलावरम बांध

शोक की नदी शबरी

हर वर्ष मानसून के समय शबरी नदी के उफान पर होने के कारण कोंटा क्षेत्र में बाढ़ की स्थिति बनती है.

अब पोलावरम बांध के बनने से बैक वाटर के कारण पूरा क्षेत्र ही पानी में डूब जाएगा.

इस आशंका में पूरे कोंटा क्षेत्र के लोग दहशत में हैं. क्षेत्र के लोग किसी भी हालत में अपनी जमीन, घर और जंगल छोड़कर जाना नहीं चाहते.

पोलावरम परियोजना को लेकर जब से काम चल रहा है, तब से कोंटा के सैकड़ों परिवारों की नींद-चैन गायब है.

लेकिन ताज़ा ख़बरों ने उनकी परेशानी बढ़ा दी है.

पोलावरम में चंद्रबाबू नायडू
पोलावरम में चंद्रबाबू नायडू

काम में तेजी लाने के निर्देश

आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू, शपथ ग्रहण के पांचवें दिन ही पोलावरम परियोजना का निरीक्षण करने पहुंचे थे. उन्होंने निर्माण कार्यों में तेजी लाने के निर्देश दिए हैं.

श्री नायडू ने कहा- ‘‘2014 से 2019 के बीच जब राज्य में उनकी पार्टी की सरकार थी, तब परियोजना का 70 प्रतिशत काम पूरा हो चुका था, लेकिन इसके बाद वाईएस राजशेखर रेड्डी की सरकार आने के बाद इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया गया और सारा काम ठप पड़ गया. यदि समय पर काम होता तो अब तक परियोजना पूरी हो चुकी होती.”

मुख्यमंत्री के इस दौरे के बाद पोलावरम परियोजना के निर्माण कार्य में तेजी आने के संकेत हैं.

मुख्यमंत्री के इस दौरे के बाद कोंटा क्षेत्र के लोगों में दहशत का माहौल है.

क्या है पोलावरम परियोजना

इंदिरा सागर पोलावरम परियोजना आंध्रप्रदेश में पश्‍चिमी गोदावरी जिले के पोलावरम मंडल के रम्‍मय्यापेट के निकट गोदावरी नदी पर स्‍थित है.

यह बहुउद्देश्‍यीय प्रमुख परियोजना आंध्रप्रदेश के पूर्वी गोदावरी, विशाखापट्टनम, पश्‍चिमी गोदावरी और कृष्‍णा जिलों में सिंचाई, जल विद्युत विकसित करने और पेयजल सुविधा प्रदान करने के लिए है.

सरकार का दावा है कि परियोजना से 2.91 लाख हेक्टेयर यानी 7.2 लाख एकड़ क्षेत्र को सिंचाई का लाभ मिलेगा. यहां 960 मेगावाट विद्युत उत्पादन किया जा सकेगा. इसके अतिरिक्‍त 540 गांवों को पेयजल सुविधा भी प्राप्त होगी. यह विशाखापत्तनम शहर के लिए 23.44 टीएमसी पानी की आपूर्ति करेगा.

परियोजना के तहत गोदावारी-कृष्‍णा नदियों को आपस में जोड़ने का कार्य किया जा रहा है.

परियोजना में गोदावरी के अधिशेष जल को कृष्णा नदी में छोड़ने की योजना है. इसके तहत 80 टीएमसी पानी कृष्णा नदी बेसिन में छोड़ा जाएगा.

गोदावरी जल विवाद अधिकरण (जीडब्लूडीटी) के निर्णय के अनुसार आंध्रप्रदेश को 45 टीएमसी और कर्नाटक व महाराष्‍ट्र को 35 टीएमसी के अनुपात में पानी का बंटवारा होगा.

परियोजना के तहत निर्माण कार्य 2004 में प्रारंभ किया गया था, जिसे अब 2025 में पूर्ण करने की तैयारी है.

पोलावरम
पोलावरम बांध

समझौते का उल्लंघन

छत्तीसगढ़ सरकार ने पोलावरम परियोजना को लेकर 7 अगस्त 1978 को हुए समझौते के उल्लंघन का आरोप आंध्रप्रदेश सरकार पर लगाया था.

इससे संबंधित कागजात मांगते हुए छत्तीसगढ़ ने जनसुनवाई की मांग रखी थी.

अविभाजित मध्यप्रदेश के समय तत्कालीन जनता पार्टी की सरकार ने पोलावरम परियोजना के लिए समझौता किया था.

समझौते के तहत बांध का अधिकतम डुबान आरएल 150 फीट रखा जाना था. लेकिन बांध की ड्राइंग-डिजाइन में अधिकतम डुबान आरएल 177.44 फीट तक पहुंच गया.

इस पर आपत्ति जताते हुए छत्तीसगढ़ सरकार ने 2011 में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी, जिसके बाद अप्रैल 2013 में बांध के निर्माण का काम बंद हो गया था.

लेकिन केंद्र सरकार ने 2014 में बांध की ऊंचाई 177 फीट करने के साथ ही निर्माण को मंजूरी दे दी.

2016 में छत्तीसगढ़ सरकार ने बांध की ऊंचाई 150 फीट से अधिक नहीं करने को लेकर विधानसभा में सर्व सम्मति से अशासकीय संकल्प पारित किया था.

राज्य सरकार ने बांध की ऊंचाई न बढ़ाने को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर रखी है.

मामला अभी विचाराधीन है.

पोलावरम
पोलावरम बांध

छत्तीसगढ़ सरकार ने कराया सर्वे

छत्तीसगढ़ जल संसाधन विभाग ने 2018-19 में विस्थापितों को लेकर एक सर्वे कराया था, जिसके बाद 289 करोड़ रुपए का प्रस्ताव तैयार किया गया गया था.

इसमें बांध से प्रभावित लोगों को उचित मुआवजा, नए घर व स्कूल, हॉस्पिटल, सड़क, बिजली आदि की व्यवस्था की जानी है.

विस्थापन को लेकर कई बार जनसुनवाई हो चुकी है, लेकिन ग्रामीण अपनी जमीन और घर छोड़ कर जाने को तैयार नहीं हैं.

जनसुनवाई में डुबान क्षेत्र के लोगों को दो विकल्प दिए गए थे.

पहला विकल्प, डुबान क्षेत्रों के लोग अपना सैकड़ों साल पुराना अपना घर, पूजा स्थल, ज़मीन छोड़कर विस्थापित हो जाएं और मुआवजा लेकर अन्यत्र बसने की तैयारी करें.

जबकि दूसरा विकल्प है कि डुबान क्षेत्र में लगभग 13 किलोमीटर लम्बा प्रोटेक्शन बण्ड (रिटेनिंग वॉल) का निर्माण किया जाए, जिसकी ऊंचाई लगभग 30 से 40 फीट होगी, जिससे बांध का पानी गांवों में न घुस पाए.

अब जबकि डुबान क्षेत्र के लोग अपनी जमीन और घर छोड़कर नहीं जाना चाहते ऐसे में सरकार पर दूसरे विकल्प को अपनाने का दवाब बढ़ गया है.

सांसद बोले- शासन स्तर पर होगी चर्चा

बस्तर के नव-निर्वाचित सांसद महेश कश्यप भी सोमवार को सुकमा पहुंचा थे.

पत्रकारों से चर्चा करते हुए उन्होंने पोलावरम परियोजना प्रभावितों की समस्या के निवारण की बात कही.

उन्होंने कहा- पोलावरम बांध को लेकर शासन स्तर पर चर्चा की जाएगी और इस संबंध में जो भी समस्या आ रही है, उसका जल्द निराकरण किया जाएगा.

लेकिन बांध से प्रभावित होने वाले आदिवासियों को सांसद के कहे पर बहुत अधिक भरोसा नहीं है.

अभी तो डुबान के आदिवासी, पानी और पानी की धार देखने की आशंका में डूबे हुए हैं.

error: Content is protected !!