छत्तीसगढ़

वित्तीय प्रबंधन में छत्तीसगढ़ देश में नंबर वन

रायपुर | संवाददाता: छत्तीसगढ़ सरकार ने वित्तीय प्रबंधन में देश में नंबर वन होने का दावा किया है. नीति आयोग द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार वित्तीय प्रबंधन में छत्तीसगढ़ देश के सभी 29 राज्यों में प्रथम स्थान पर है. वर्ष 2015 की तुलना में छत्तीसगढ़ ने दो स्थानों का सुधार किया है. वर्ष 2015 में छत्तीसगढ़ तीसरे स्थान पर था.

नीति आयोग द्वारा सोमवार को नई दिल्ली के प्रवासी भारतीय केन्द्र में आयोजित राज्यों के मुख्य सचिवों के राष्ट्रीय सम्मेलन में ये आंकड़े प्रस्तुत किए गए. इस सूची में उत्तरप्रदेश दूसरे, तेलंगाना तीसरे और आंध्रप्रदेश चौथे स्थान पर है. नीति आयोग द्वारा ‘भारत को रुपांतरित करने वाले अग्रणी राज्य’ (स्टेट्स एज ड्राइवर्स फॉर ट्रांसफार्मिंग इंडिया) विषय पर यह सम्मेलन आयोजित किया गया था.

नीति आयोग ने राज्यों को वित्तीय व्यय की कर्ज पर निर्भरता को नियंत्रित करने, सामाजिक क्षेत्र में व्यय में उच्च दर पर वृद्धि करने, पूंजीगत व्यय में वृद्धि की गति को बनाए रखने का सुझाव दिया है.

इस अवसर पर नीति आयोग के उपाध्यक्ष अरविंद पानगड़िया ने कहा कि शिक्षा, स्वास्थ्य, बुनियादी ढांचा जैसी सामाजिक प्राथमिकताओं में व्यय आर्थिक वृद्धि में तेजी लाकर ही बढ़ाया जा सकता है. उन्होंने कहा कि छठी आर्थिक जनगणना के मुताबिक कुल 47 करोड़ कर्मचारियों में सिर्फ 2.08 करोड़ कर्मचारी ही ऐसे हैं तो 10 या इससे ज्यादा कर्मचारियों वाले उद्यम में लगे हैं. इस तरह से देखें तो 44.2 करोड़ कामगार या कुल कामगारों के 91.2 प्रतिशत कृषि या ऐसे उद्यमों में लगे हुए हैं, जिनमें 9 या इससे कम कर्मचारी काम करते हैं. अगर दूसरे पहलू से देखें तो कुल 5.85 करोड़ प्रतिष्ठानों में से सिर्फ 1.37 प्रतिशत ही ऐसे हैं जिनमें 10 या इससे ज्यादा कर्मचारी काम करते हैं.

पानगड़िया ने कहा कि उत्पादकता बढ़ाने के लिए नीतिगत वातावरण बनाने की जरूरत होती है, जिससे हमारे उद्योगों को तेजी से बढऩे में मदद मिलेगी. हमारे यहां उद्यमों की कमी नहीं है. कमी बड़े उद्यमों की है. हमें इसे ध्यान में रखते हुए नीति तय करना होगा. सूक्ष्य उद्योग छोटे, छोटे उद्यम मझोले और मझोले उद्योग बड़े उद्योग में तब्दील किए जाएं. यदि हम कृषि क्षेत्र में प्रति श्रमिक उत्पादन को एक मानते हैं तो उद्योग में यह प्रति श्रमिक पांच और सेवा क्षेत्र में 3.8 है.

उन्होंने कहा कि हर क्षेत्र में उत्पादकता के मौजजूदा स्तर पर भी कृषि से उद्योग में एक प्रतिशत श्रमिकों के चले जाने से जीडीपी में 1.5 प्रतिशत तक वृद्धि हो सकती है.

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