छत्तीसगढ़ में मनरेगा का हे राम
रायपुर | संवाददाता: छत्तीसगढ़ में राष्ट्रपिता गांधीजी के नाम पर शुरु की गई रोजगार गारंटी योजना ने ‘हे राम’ बोल दिया है. 2012-13 में 27 लाख 26 हजार 377 परिवारों ने इस योजना में काम मांगा था. जिसमें से केवल 2 लाख 39हजार 43 परिवारो को ही पूरे सौ दिनो का काम छत्तीसगढ़ में मिल पाया. इस कानून के प्रावधानों के अनुसार ग्रामीण क्षेत्रो में प्रत्येक परिवारो के एक सदस्य को साल में सौ दिनों का रोजगार देना सरकार की जिम्मेदारी है.
इस कानून के कई सामाजिक एवं आर्थिक पहलू भी हैं. एक तो इससे ग्रामीण क्षेत्रो में रोजगार मिलेगा. जिसका सीधे तौर पर उसके परिवार को फायदा पहुचेगा. जब घर में पैसा आयेगा तो इससे उस परिवार की कई जरूरतें पूरी होंगी. कम से कम खाने को तो मिलेगा ही. दूसरा, जब पैसा गाँवों में आयेगा तो ग्रामीण भारत की क्रय शक्ति में बढ़ोतरी होगी. इससे लोग खरीदारी कर सकेंगे, जिससे व्यापार भी बढ़ेगा. इससे आस-पास के उद्योगों को अपने माल के लिये खरीदार मिलने लगेंगे. विशेषज्ञ मानते हैं कि मनरेगा को इस व्यापक अर्थ में देखा जाना चाहिये.
सरकारी आंकड़े बताते हैं कि 2012-13 में छत्तीसगढ़ के 43 लाख 92 हजार 798 परिवारों के पास मनरेगा का जाँब कार्ड था. जिसमें से 27 लाख 26 हजार 377 परिवारो ने काम मांगा था. कुल 26 लाख 26 हजार 54 परिवारो को काम मिल सका. लेकिन पूरे सौ दिनों का कार्य केवल 2 लाख 39हजार 43 परिवारों को ही मिल पाया.
इन आंकड़ों में जोड़ घटाव करके देखें तो छत्तीसगढ़ में मनरेगा के ढोल की पोल और साफ हो जाती है. 2012-13 में 43 लाख 92 हजार 798 परिवारों के पास मनरेगा का जाँब कार्ड था. 2012-13 में मनरेगा की मजदूरी थी एक सौ पचपन रुपये प्रति दिन. यदि इन्हें नियमानुसार सौ दिनो का काम मिलता तो इससे इन परिवारो को अड़सठ अरब (68,08,83,69,000) रुपये मिलते. लेकिन कार्य की मांग की थी 27 लाख 26 हजार 377 परिवारो ने. यदि इन सभी को सौ दिनों का रोजगार मिलता तो छत्तीसगढ़ में आते बयालिस अरब (42,25,88,43,500) रुपये. लेकिन केवल 2 लाख 39हजार 43 परिवारों को ही सौ दिनों का काम मिल पाया था. जिससे छत्तीसगढ़ में आये केवल तीन अरब (3,67,41,66,500) रुपये.
मतलब ये कि छत्तीसगढ़ में 2012-13 में तीन अरब रुपयों से ज्यादा की आमदनी हुई थी, जो कि जाहिर है कि अड़सठ अरब से बहुत कम थी. अब आप अंदाजा लगा सकते हैं कि छत्तीसगढ़ के ग्रामीण क्षेत्रों में किस प्रकार क्रय शक्ति का हास हुआ. जिसका सीधा लाभ जनता तथा व्यापारियों को हो सकता था.
इससे पहले कैग की रिपोर्ट में भी मनरेगा की हालत को लेकर प्रतिकूल टिप्पणी की गई थी. कैग की सार्वजनिक हुई रिपोर्ट के अनुसार छत्तीसगढ़ में 2007 से 2012 के बीच केवल 55 प्रतिशत कार्य ही हुये हैं. इसके अलावा किये हुए कार्यों में से केवल 37.85 प्रतिशत कार्य का ही सामाजिक अंकेक्षण कराया गया है.
कैग की रिपोर्ट के अनुसार छत्तीसगढ़ में 4,799.07 करोड़ रुपयों के काम को स्वीकृत किया गया था, वहां केवल 2,404.51 करोड़ रुपयों के काम ही कराये जा सके.
कैग की पड़ताल से उजागार हुआ कि महासमुंद एवं कांकेर में क्रमश: 1 करोड़ व 22 लाख की रकम को मनरेगा के खाते में जमा ही नही कराया गया. इसी तरह बस्तर में 46 लाख रुपयों से 150 कंम्प्यूटर खरीदे गये परन्तु उन्हें ग्राम पंचायतों को वितरीत नही किया गया. 10 ग्राम पंचायतो में 10,041 लोगों को बेरोजगारी भत्ते का भुगतान नही किया गया. मनरेगा के खिलाफ 475 शिकायते दर्ज हुईं, जिसमें से केवल 51 शिकायतों का ही निराकरण हुआ. जशपुर जिले में मनरेगा के भुगतान की रसीदों से छेड़छाड़ पाई गई. 69.90 करोड़ रुपये तो सरपंचो के खातो में सीधे तौर पर जमा करने का मामला सामने आया है.
इस रिपोर्ट से पता चलता है कि बस्तर में 4.30 करोड़ के 154 कार्य पूर्ण ही नहीं हुए लेकिन कागजों में उसे पूरा दर्शाया गया है. दो जिलो में 902.37 करोड़ रुपये काम न होने के बावजूद अन्य एजेंसियो के पास जमा हैं. 1.69 करोड़ रुपये तो गैरकानूनी तरीके से बाउन्ड्री वाल बनाने में फूंक दिये गये.