छत्तीसगढ़

खामोश! शौचालय नहीं तो शौच भी नहीं

रायपुर | संवाददाता: छत्तीसगढ़ के एक गांव में खुले में शौच जाने वाली महिलाओं से बाल्टी छिनने की खबर है. जांजगीर-चांपा जिले के मालखरौदा के गांव छपोरा में गुरुवार को खुद जनपद सीईओ ने सुबह खुले में शौच जा रही महिलाओं की बाल्टी से पानी फिंकवा दी ताकि वे खुले में शौच न कर सके. घटना सामान्य सी जरूर लगती है परन्तु इससे जुड़ा अहम सवाल है कि क्या जिसकी शौचालय बनवाने की क्षमता नहीं है वह शौच करना बंद कर दे. मामला गांव के गरीबों के मानवाधिकार के हनन का भी है.

मीडिया की खबरों के अनुसार शौच मुक्त गांव बनाने की होड़ में मालखरौदा के जनपद सीईओ आरपी चौहान के निर्देश पर छपोरा गांव के महिलाओँ के बाल्टी से पानी फिकवाया गया. हालांकि जनपद पंचायत सीईओ का कहना है कि किसी की बाल्टी नहीं छिनी गई, लोगों को जागरूक करने के लिये समिति का गठन किया गया है.

उन्होंने राजनांदगांव का उदाहरण देते हुये कहा कि जब बकरी बेच कर शौचालय बनवाया जा सकता है तो जमीन गिरवी रखकर शौचालय क्यों नहीं बनवाया जा सकता. जनपद पंचायत सीईओ ने समाचारों के हवाले से बताया कि जब लोग बच्चा होने पर छठी करवा सकते हैं, मृत्यु होने पर दशगात्र तथा तेरहवीं करवा सकते हैं तो शौचालय क्यों नहीं बनवा सकते हैं. उन्होंने कहा कि सोने के आभूषण पहनने से बेहतर है कि शौचालय बनवाया जाये.

अध्यक्ष जनपद पंचायत मालखरौदा श्रीमती सावित्री रंजीत अजगल्ले ने समाचारों के हवाले से बताया कि सीईओ लिखित में कोई आदेश नहीं देते हैं तथा बाद में मुकर जाते हैं. उन्होंने कहा कि गुरूवार को मालखरौदा का उपसरपंच खुले में शौच कर रही महिलाओं की फोटो खींच रहा था. उनके पास शिकायत आने पर जनपद सीईओ को इसकी जानकारी दी गई.

प्रदेश कांग्रेस सचिव, एवं पूर्व जिला पंचायत सदस्य सुश्री नैन अजगल्ले ने कहा कि जम्मू कश्मीर से कमा खाकर लौटे ग्रामीणों को शौचालय बनाने के लिए दबाव बनाया जा रहा है. वे 8-10 हजार रूपये कमाकर लाये हैं उससे लोग शौचालय बनवायेंगे या घर का छप्पर ठीक करायेंगे. सीईओ कभी सुबह चार बजे गांव पहुंच जाते हैं तो कभी रात 9 बजे किसी को राशन कार्ड काटने की धमकी देते हैं तो किसी का पेंशन रोकने की. क्षेत्र की महिलाएं इनसे परेशान हैं. इसकी शिकायत महिला आयोग से भी की जायेगी.

केन्द्र सरकार की योजना खुले में शौच जाने के बजाये घर में ही शौचालय बनवाया जाये वाकई काबिले तारीफ है परन्तु क्या इसे जिस तरह से छत्तीसगढ़ के एक गांव में सरकारी अधिकारी द्वारा लागू करवाया जा रहा है वह आपातकाल के नसबंदी की याद नहीं दिला देता है? मामला शौचालय नहीं बनवाया तो शौच भी नहीं करने देंगे का है. जो कुछ गुरुवार को छपोरा गांव में हुआ उसे जन जागरूकता की संज्ञा तो हरगिज नहीं दी जा सकती है.

(संलग्न फोटो फाइल से)

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