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पितरों का तर्पण और जोगी कांग्रेस

दिवाकर मुक्तिबोध
पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी के नेतृत्व में गठित छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस प्राय: हर मौके को राजनीतिक दृष्टि से भुनाने की फिराक में रहती है. कह सकते हैं, एक ऐसी राजनीतिक पार्टी जिसे अस्तित्व में आए अभी 6 माह भी नहीं हुई हैं, के लिए यह स्वाभाविक है कि वह जनता के सामने आने का, उनका समर्थन हासिल करने का तथा उनके बीच अपनी पैठ बनाने का कोई भी अवसर हाथ से जाने न दें. लेकिन ऐसा करते वक्त एक चिंतनशील राजनेता को यह भी देखने की जरूरत है कि मानवीय संवेदनाओं की आड़ में उनकी राजनीति क्या तर्कसंगत और न्यायोचित कही जाएगी और क्या इस तरह की राजनीति पार्टी के लिए फायदेमंद होगी?

यह ठीक है कि अजीत जोगी हर सूरत में वर्ष 2018 में होने वाले विधानसभा चुनाव में अपनी दमदार उपस्थिति दिखाना चाहते हैं और इसके लिए वे हर किस्म की कवायद के लिए तैयार हैं, आगे-पीछे नहीं सोच रहे हैं.

बीते महीनों के कुछ ऐसे उदाहरण हैं जो तार्किक दृष्टि से राजनीति करने के लिए उचित नहीं ठहराए जा सकते अथवा सवालिया निशान खड़े करते हैं. ताजातरीन दो मामले सामने हैं- राजधानी के सेरीखेड़ी में चार बच्चों की दुर्घटना में अकाल मौत और दूसरी पितरों की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध पक्ष के अंतिम दिन तर्पण की घोषणा. जोगी कांग्रेस ने इस तर्पण कार्यक्रम के लिए बाकायदा समाज विशेष से अनुमति हासिल की. पार्टी का आरोप है कि राज्य सरकार की जनविरोधी नीतियों के चलते किसान आत्महत्या कर रहे हैं. नक्सली घटनाओं में बेगुनाह नागरिक मारे जा रहे हैं. मुठभेड़ों में राज्य पुलिस व अर्द्धसैनिक बलों के जवान भी शहीद हो रहे हैं. पुलिस प्रताडऩा से हिरासत में निरपराध युवकों की मौतों की घटनाएं बढ़ रही हैं आदि-आदि.

चूंकि मृत व्यक्तियों की आत्माएं कथित रूप से भटक रही हैं अत: उनकी शांति के लिए पितृपक्ष के अंतिम दिन तर्पण, हवन-पूजन का आयोजन जरूरी है. इसके बाद गांधी जयंती के दिन उन्हें श्रद्धांजलि और उपवास. ऐसा पहली बार हुआ है जब मुद्दों की तलाश में किसी राजनीतिक पार्टी ने इतनी दूर तक सोचा हो. यह सचमुच हैरतअंगेज ख्याल है कि पितृपक्ष को भी राजनीतिक तौर पर भुनाया जा सकता है. जोगी कांग्रेस ऐसा कर रही है. क्या यह उसकी उपलब्धि है अथवा राजनीतिक प्रपंच? इसे जनता ही तय करेगी जो बहुत समझदार है.

बहरहाल, पहली घटना जिसमें चार बच्चे अकाल मौत के शिकार हुए, दर्दनाक और दुर्भाग्यजनक है. सड़क दुर्घटनाएं आम तौर पर चालकों की लापरवाही के परिणामस्वरूप घटित होती हैं. दुर्घटनाएं प्राय: रोज होती हैं जिसमें लोग मारे जाते हैं या घायल होते हैं. लेकिन प्रत्येक घटना के विरोध में सड़क पर एलाने-जंग नहीं होता. अलबत्ता गंभीर हादसों में गुस्साए लोगों की स्वाभाविक प्रतिक्रिया के रूप में चक्काजाम या शव के साथ प्रदर्शन जरूर होता रहा है.

सेरीखेड़ी की घटना गंभीर थी लिहाजा जनता का गुस्सा स्वाभाविक था. जोगी कांग्रेस ने इसे राजनीतिक रंग देने की कोशिश की. वह इसमें कूद पड़ी. राजमार्ग पर घंटों चक्काजाम किया गया. खुद जोगी सड़क पर लेट गए. चक्काजाम खोलने पुलिस को हस्तक्षेप करना पड़ा. गिरफ्तारियां करनी पड़ी. जोगी ने पीडि़त परिवार की मांग का समर्थन किया कि मृतकों के परिवार को 25-25 लाख का मुआवजा दिया जाए. जोगी पीडि़त परिवार से मिले तथा उन्हें सांत्वना दी. यानी राजनीति के साथ-साथ संवेदनशीलता भी प्रदर्शित की.

अब सवाल है क्या सड़क दुर्घटनाओं को भी राजनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है? क्या इससे पार्टी का कद ऊंचा होता है? क्या जनता के बीच अच्छा संदेश जाता है? क्या ऐसा करना सकारात्मक राजनीति है? क्या ऐसे आंदोलन से जनाधार मजबूत होता है? क्या मानवीय संवेदनाओं से जुड़े मुद्दों पर राजनीतिक हस्तक्षेप तर्कसंगत है? अगर इन सभी सवालों का जवाब हां में है तो प्रत्येक सड़क दुर्घटना के बाद जिसमें मौते होती हैं, सरकार के खिलाफ धरना-प्रदर्शन, सड़कजाम किया जाना चाहिए. क्या जोगी कांग्रेस ऐसे आंदोलनों के लिए तैयार है?

यह भी प्रश्न है कि तब उसका रुख क्या होगा जब किसी सड़क दुर्घटना में हुई मौतों के लिए पार्टी के कार्यकर्ता जिम्मेदार होंगे? 26 सितम्बर को राजमार्ग 353 पर महासमुंद के बेलसोंडा में उनकी पार्टी के कार्यकर्ता की जीप से कुचलकर दो बाइक सवार युवकों की मौत हो गई. अब जोगी कांग्रेस क्या करेगी? क्या मृतकों के परिवार को पार्टी फंड से पर्याप्त मुआवजा देगी? तथा न्यायसंगत कार्रवाई के लिए सरकार के साथ सहयोग करेगी.

दरअसल प्रत्येक घटना-दुर्घटना जनसमर्थन के विस्तार का आधार नहीं बन सकती. सड़क दुर्घटनाएं भी इसी श्रेणी में है. इसी तरह पितरों का तर्पण राजनीतिक नाटकीयता से अधिक कुछ नहीं है. एक राजनीतिक स्टंट. इससे जोगी कांग्रेस की आत्मा को शांति मिल सकती है, पितरों को नहीं.

प्रबुद्ध जनता भी ऐसी नाटकीयता से प्रभावित नहीं होती लिहाजा यह कवायद आत्मसंतुष्टि दे सकती है, पार्टी को ऊंचाई नहीं. पार्टी को ऐसे कार्यक्रमों से बचने की कोशिश करनी चाहिए जो नकारात्मक मूल्यों का बायस बनते हैं. जोगी कांग्रेस ने अपने अस्तित्व में आने के चंद महीनों के भीतर ही समूचे राज्य में जिस तेजी से अपनी उपस्थिति दर्ज की है, वह काबिले तारीफ है और ऐसा इसलिए संभव हुआ है क्योंकि पार्टी ने लगातार जनता के मुद्दे उठाए हैं, जनआंदोलन किए हैं.

जब पार्टी स्वयं को कांग्रेस व भाजपा के बाद तीसरे विकल्प के रूप में जनता के मन में विश्वास पैदा करना चाहती है तो ‘स्तरहीन राजनीति’ किस लिए? राज्य में जनता से जुड़े मुद्दों की कमी नहीं है किंतु मानवीय संवेदनाओं से जुड़े सवालों पर गंभीर रहने की जरूरत है, राजनीति की नहीं.

*लेखक हिंदी के वरिष्ठ पत्रकार हैं.

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