छत्तीसगढ़: झोलाछाप डाक्टर के भरोसे ईलाज
रतनपुर | उस्मान कुरैशी: वनांचल में कथित झोलाछाप डाक्टर ने फिर एक आदिवासी महिला की जान ले ली है. अस्पताल में डाक्टर के नहीं होने से परिजनों ने महिला का गांव के ही एक कथित डाक्टर से उपचार कराया जिसके सुई लगाने के कुछ घंटे बाद महिला की मौत हो गई. स्वास्थ्य अमला अब इस मामले की लीपापोती करने में लगा हुआ है. इधर ग्रामीणों नें इसे कथित डाक्टर की लापरवाही मानते हुए कार्रवाई की मांग की है.
छत्तीसगढ़ में बिलासपुर जिले के कोटा ब्लाक में ग्राम पंचायत केन्दा के बंधवा पारा में झोलाछाप डाक्टर के ईलाज से एक आदिवासी महिला सेमवती की मौत हो गई है वह अपने भतीजे प्रेमलाल कोल के साथ रहती थी. मंगलवार को उसकी तबियत बिगड़ गई . उसके सीने में दर्द होने की शिकायत थी. प्रेमलाल यहां के प्राथमिक स्वास्थ्य गया. जहां डाक्टर के नहीं होने पर वह अपनी चाची का ईलाज कराने गांव के ही झोलाछाप डाक्टर आनंद कुमार राय को घर ले गया. प्रेमलाल कोल के मुताबिक गांव के चांदसी डाक्टर राय ने सुई लगाई जिसके दो घंटे बाद ही उसकी चाची की मौत हो गई.
गांव के ही मनमोहन दास मानिकपुरी कहते हैं कि यहां के प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र में डाक्टर के पदस्थ होने की बात तो कही जाती है पर 80 फीसदी लोगों को यहां के डाक्टर रहने की जानकारी नहीं है. अस्पताल में डाक्टर के कभी दर्शन ही नहीं होते है. वे सवाल उठाते है कि यहां के अस्पताल में डाक्टर की तैनाती के बाद भी क्यों लोग झोला छाप डाक्टरों के पास उपचार कराने के लिए मजबूर है. वे नाराजगी जताते कहते हैं कि कड़ी कार्रवाई नहीं होने से झोला छाप डाक्टरों के हौसले बुलंद है और वे गलत उपचार कर लोगों की जान लेने से भी परहेज नही कर रहे है. मनमोहन मांग करते हैं कि ऐसे डाक्टरों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए.
मामले पर प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र केन्दा में आरएमए के पद पर कार्यरत आशीष अग्रवाल कहते है कि अस्पताल में डाक्टर के रूप में विनीता पाण्डेय की तैनात है. जो बीते शनिवार को ड्यूटी पर आई थी. उसके बाद नहीं आई है. वो हप्ते में एक बार हर शनिवार को आती है. महिला की मौत पर वे कहते है कि हमारी ओर से जानकारी बीएमओ को दे दी गई है.
मामले पर कोटा बीएमओ डाक्टर ध्रुव कहते है कि घटना की जानकारी मिलने के बाद मामले की जांच कराई जा रही है. जांच रिपोर्ट के बाद दोषी के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी.
प्रशासन के दावों की खुली पोल
नशबंदी कांड और नवजात शिशुओं की मौत के बाद प्रशासन ने झोलाछाप डाक्टरों पर रोक लगाने के बड़ें-बड़ें दावे किये है. लेकिन एक आदिवासी महिला की हुई मौत नें इन दावों की पोल खोल कर रख दी है. इस मामले में अब तक न तो पुलिस में किसी भी प्रकार की शिकायत हुई है. छत्तीसगढ़ के शहरों से निकलकर यदि गांवों की ओर रुख करेंगे तो इन झोलाछाप डॉक्टरों के भरोसे ही लोगों को पायेंगे.
एक तरफ सरकारी डॉक्टर अपनी ड्यूटी से गायब रहते हैं तो दूसरी तरफ ये झोलाछाप डॉक्टर मरीजों को घर पहुंच सेवा देते हैं. कईयों के पास तो फर्जी डिग्रियां तक नहीं है. गांवों में इन झोलाछाप डॉक्टरों को देवता माना जाता है तथा इनकी पहुंच छुटभैये नेताओं तक होती है जिसके भरोसे ये बच निकलते हैं. जान जाती है भोले-भाले गांववालों की. आखिरकार इनके पनपने के पीछे एक कारण यह भी है कि सरकारी डॉक्टर समय पर मिलते नहीं हैं दूसरी ओर सरकारी डॉक्टरों के गांवों में रहने के लिये समूची व्यवस्था भी नहीं होती है.