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अपने ख़िलाफ़ पैरवी से राज्यपाल ‘घोर अप्रसन्न’

रायपुर | संवाददाता:छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में राज्यपाल की पैरवी के बजाय, उनके ख़िलाफ़ पैरवी किये जाने पर राज्यपाल ने ‘घोर अप्रसन्नता’ व्यक्त की है. राज्यपाल के सचिव ने राज्य के मुख्य सचिव को एक पत्र लिख कर राज्य के महाधिवक्ता को लेकर कड़ी टिप्पणी की है.

गौरतलब है कि दिसंबर में राज्य सरकार द्वारा पारित आरक्षण संबंधी विधेयक हस्ताक्षर के लिए राज्यपाल के पास लंबित है.

इस मामले में दायर एक याचिका में राज्यपाल के सचिवालय, को छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने नोटिस जारी किया है.

इस याचिका पर बहस के दौरान छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के महाधिवक्ता ने राज्यपाल के खिलाफ़ पैरवी की थी.

अब राज्यपाल के सचिव ने इस संबंध में छत्तीसगढ़ सरकार के मुख्य सचिव को पत्र लिख कर तीन दिन के भीतर जवाब तलब किया है.

क्या लिखा है पत्र में

“राज्यपाल महोदया को विभिन्न समाचार पत्रों एवं विभिन्न प्रिंट मीडिया के माध्यम से एवं माननीय उच्च न्यायालय की वेबसाइट के केस डिटेल से ज्ञात हुआ है कि, राज्य शासन ने माननीय राज्यपाल महोदया के सचिवालय के विरुद्ध रिट याचिका छत्तीसगढ़ लोक सेवा (अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और अन्य पिछड़े वर्ग के लिए आरक्षण) (संशोधन) विधेयक,2022 क्रमांक 19 एवं 19 सन् 2022) में माननीया राज्यपाल महोदया को निर्देश देने एवं माननीय राज्यपाल की अनुच्छेद 200 के तहत प्रदान की गई शक्तियों के संबंध में प्रस्तुत किए हैं.”

“उक्त रिट याचिका में राज्य शासन की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता श्री कपिल सिब्बल एवं राज्य के एडवोकेट जनरल श्री सतीश चंद्र वर्मा भी उपस्थित हुए.”

“राज्य शासन का माननीय राज्यपाल महोदया के विरुद्ध उक्त प्रकार से रिट याचिका प्रस्तुत करना और उसमें राज्य के एडवोकेट जनरल द्वारा माननीय राज्यपाल के विरुद्ध पैरवी करना माननीय उच्चतम न्यायालय की उक्त संवैधानिक पीठ द्वारा पारित निर्णय दिनांक 24 जनवरी 2006 के पैरा 173 के पूर्णतः विरुद्ध है. ऐसा अभिमत माननीया राज्यपाल का है.”

“उक्त संवैधानिक पीठ ने अपने निर्णय के पैरा 173 में यह अभिनिर्धारित किया है कि, यदि राज्यपाल के विरुद्ध कोई रिट याचिका प्रस्तुत होती है तो उसमें राज्यपाल की प्रतिरक्षा शासन द्वारा होती है. इस संबंध में संविधान का अनुच्छेद-361 भी अवलोकनीय है, जिसमें यह प्रावधान है कि, राज्य के राज्यपाल अपने पद की शक्तियों के प्रयोग और कर्तव्यों का पालन करते हुए अपने द्वारा किए गए या किये जाने के लिए तात्पर्यापित किसी कार्य के लिए किसी न्यायालय को उत्तरदायी नहीं होगा.”

“उक्त संदर्भित संवैधानिक पीठ के निर्णय एवं संविधान के अनुच्छेद 361 को न केवल राज्य शासन ने विचार में लिया है और न ही राज्य के महाधिवक्ता ने विचार में लिया है. अतः महाधिवक्ता द्वारा राज्यपाल या उनके सचिवालय के विरुद्ध रिट याचिका प्रस्तुत करना माननीय राज्यपाल महोदया के अभिमत के अनुसार महाधिवक्ता के कदाचरण को दर्शाता है.”

“वर्ष 2012 में लागू किये गये 58 प्रतिशत आरक्षण के संबंध में माननीय उच्चतम न्यायालय में कुल 11 रिट याचिकायें प्रस्तुत की गई है, जिस पर निर्णय आना अभी शेष है, और ऐसी स्थिति में राज्य शासन द्वारा माननीय उच्च न्यायालय में रिट याचिका प्रस्तुत करना देश की संवैधानिक संस्थाओं की अवमानना एवं अपमान करने के बराबर भी है.”

“माननीया राज्यपाल महोदया ने राज्य शासन एवं राज्य के महाधिवक्ता के विरुद्ध घोर अप्रसन्नता (Grave Displeasure) व्यक्त की है. आप माननीय राज्यपाल महोदया के अवलोकनार्थ रखने हेतु राज्य के महाधिवक्ता से इस आशय की तीन दिन के अंदर टीप आहूत करें कि उन्होंने किन परिस्थितियों में माननीय राज्यपाल महोदया के विरुद्ध शासन की ओर से रिट याचिका प्रस्तुत की है.”

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