प्रसंगवश

यह साजिश हो या मूर्खता

सुरेश महापात्र
बस्तर के कद्दावर भाजपा नेता केदार कश्यप की धर्मपत्नी के नाम पर एमए अंतिम की परीक्षा में फर्जीवाड़ा जांच की जद में है. यह मामला प्रदेश में उच्च शिक्षा और स्कूल शिक्षा की पोल खोलता दिख रहा है. छत्तीसगढ़ बनने के बाद शुरूआती तीन साल में प्रदेश में कांग्रेस की सरकार थी तब मुख्यमंत्री अजित जोगी ने प्राइवेट विश्वविद्यालयों के लिए रास्ते खोले.

परिणाम यह हुआ कि एक-एक कमरे में भी ऐसे विश्वविद्यालय सक्रिय हो गए. इसके बाद सरकार बदली और शिक्षा को लेकर उसकी नीतियों में भी बड़ा बदलाव हुआ. परिणाम यह रहा कि ऐसे कई फर्जी किस्म में विश्वविद्यालयों में ताले लग गए. बीते 12 बरस से प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की सरकार है. उसकी ही नीतियों के मुताबिक पूरा प्रदेश चल रहा है. स्कूल और उच्च शिक्षा को लेकर प्रदेश सरकार ने कई बड़े फैसले लिए हैं जिसके अनुसार ही संस्थाएं संचालित हो रही हैं. पंडित सुंदरलाल शर्मा मुक्त विश्वविद्यालय उन्हीं संस्थाओं में से एक है जो गड़​बड़ियों का मायाजाल बुनते हैं.

लोहं​डीगुड़ा प्रकरण से दो बातें तो साफ हुई हैं पहली यह कि ऐसे मुक्त विश्वविद्यालयों की आड़ में शिक्षा का गोरखधंधा प्रदेश में खूब फल—फूल रहा है. दूसरी यह कि गड़बड़ी सरकार की शिक्षा संबंधी नीति में है. जिसका खामियाजा प्रदेश के उन युवाओं को भोगना पड़ रहा है जो डिग्री पाने के लिए जी जान लगाकर मेहनत करते हैं. इस बात का स्वागत किया जाना चाहिए कि कथित तौर पर एक साजिशकर्ता ने शिक्षा मंत्री को ही जद में लाकर प्रदेश में शिक्षा माफिया का खुलासा करने का ​बीड़ा उठाया है. इस मामले को लेकर कांग्रेस के आरोपों को देखें तो यह स्पष्ट है कि उन्हें राजनीति करनी है. उन्हें उस मुद्दे से मतलब है जिससे वे अपनी जमीन तैयार कर सकें. पुतला फूंककर, बंगला घेरकर अपनी टीआरपी बढ़ाना उसकी राजनैतिक मजबूरी है. इसका कोई बुरा नहीं मानता.

बड़ी बात यह है कि प्रदेश के शिक्षा म़ंत्री केदार कश्यप ने ज​ब यह बयान दिया कि उनकी पत्नी ने पं. सुंदरलाल शर्मा विश्वविद्यालय में इस साल फार्म ही नहीं भरा था. बावजूद इसके उनके नाम पर प्रवेश पत्र जारी हो गया और किसी दूसरे ने आंसर सीट लिखने का काम भी कर दिया. श्री कश्यप का यह बयान प्रदेश के उच्च शिक्षा विभाग को कठघरे में खड़ा करता दिख रहा है. यानी प्रदेश में उच्च शिक्षा के नाम पर जो कुछ भी हो रहा है उस पर सरकार और विभागीय मंत्री का कोई नियंत्रण ही नहीं है. सोशल मीडिया में इस मामले को लेकर पूरी सरकार पर कीचड़ फेंकने का काम चल रहा है. तंज कसे जा रहे हैं. इस मामले में जवाब देने के लिए कोई बड़ा नेता सामने नहीं आ रहा है. यह सब कुछ बता रहा है कि भीतरखाने में बहुत कुछ चल रहा है.

भाजपा इस मामले में अपने मंत्री को दोषी ठहरा ही नहीं सकती. क्योंकि जैसा कि मुख्यमंत्री ने साफ कर दिया है कि मंत्री केदार परीक्षा देने तो नहीं गए थे? ऐसे में किसी के नाम पर कोई भी बैठे मंत्री का क्या दोष? सही बात है. एक प्रकार से प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत के आधार पर सीएम का यह कथन सर्वथा उचित है. साथ ही सीएम साहब को यह भी बताना चाहिए कि जिस विभाग के मंत्री के अधीन उच्च शिक्षा की जिम्मेदारी है क्या उसे निर्दोष कहा जा सकता है?

साहब पूरे सिस्टम में खोट है. प्रदेश में शिक्षा का हाल-बेहाल है. स्कूली शिक्षा के नाम पर जो कुछ हो रहा है उसमें गुणवत्ता सबसे बड़ा प्रश्न है. इस साल स्कूल शिक्षा विभाग आवश्यकता के अनुसार पाठ्यपुस्तकें भी उपलब्ध कराने में नाकाम रहा. क्या इसकी जानकारी प्रदेश के शिक्षा मंत्री को है? शिक्षा के नाम पर किए जा रहे प्रयोगों में पैसे का दुरूपयोग के सिवाए कुछ भी दिख नहीं रहा. बस्तर में शिक्षा की बुनियाद ही हिली हुई है. अंदरूनी इलाकों में कहीं शिक्षक नहीं हैं तो कहीं भवन का अभाव मुंह चिढ़ाता है.

अनेक सरकारी स्कूलों के पांचवी, आठवीं के बच्चों को ठीक से पढ़ना व लिखना नहीं आता. बिना परीक्षा पास कर दिए जा रहे विद्यार्थी आगे जाकर ‘अपढ़ साक्षर’ बन रहे हैं. जो पढ़ लिखकर आगे निकल गए उनके लिए उच्च शिक्षा की व्यवस्था का कोई माई-बाप नहीं है. महाविद्यालय खोल दिए गए. प्राध्यापकों की पूर्ति नहीं है. कहीं लाइब्रेरियन, तो कहीं चपरासी पढ़ा रहा है. अपढ़ साक्षरों के लिए मुक्त विश्वविद्यालय की पोटली में डिग्री बंट रही है. फार्म किसने भरा, प्रवेश पत्र किसे मिला, परीक्षा किसी ने दी और फर्जी डिग्री ‘अपढ़ साक्षर’ के हवाले. आगे जाकर यही अपढ़ साक्षर स्कूली शिक्षा की बागडोर संभालेंगे और प्रदेश की शिक्षा को चार चांद लगेगा.

यह दीगर बात है कि बहस शिक्षा मंत्री की पत्नी की परीक्षा को लेकर चल रही है. विपक्ष की राजनीति इस बात पर टिकी है कि इस मामले में शिक्षामंत्री का दोष है या नहीं? मंत्री का त्यागपत्र सरकार लेती है या नहीं? सरकार इस बात पर अड़ी है कि सरकार और मंत्री निर्दोष हैं. मामले की जांच हो रही है. सरकार यह पता लगाकर रहेगी कि यह किसी की साजिश है या सरकार की मूर्खता….

यानी इस मामले में रमन सरकार ही फंसी है भले ही वह इस बात को स्वीकार ना करे पर सच यही है. अब भी वक्त है कि सरकार स्कूल शिक्षा और उच्च शिक्षा जैसे विभागों पर कड़ाई से काम करे. ‘अपढ़ साक्षर भारत’ बनाने से बेहतर होगा कि ‘निरक्षर भारत’ का ही परचम लहराता रहे.

*लेखक दंतेवाड़ा से प्रकाशित दैनिक ‘बस्तर इंपैक्ट’ के संपादक हैं.

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