छत्तीसगढ़: खर्च ज्यादा, शिक्षा कम
नई दिल्ली | विशेष संवाददाता: छत्तीसगढ़ शिक्षा पर अपने बजट से सबसे ज्यादा खर्च करता है. इसके बावजूद यहां के शिक्षा की हालत शोचनीय है. इससे जुड़ा हुआ सवाल यह है कि शिक्षा पर सबसे ज्यादा खर्च करने के बावजूद छत्तीसगढ़ के गांवों में स्कूली छात्र-छात्राओं का ज्ञान हास्यापद क्यों है. जाहिर है कि सरकार द्वारा शिक्षा को प्राथमिकता दिये जाने के बाद भी शिक्षा का स्तर इतना गिरा हुआ है कि गांवों के 8वीं कक्षा के 73.5 फीसदी छात्र-छात्रायें ही 2री कक्षा के पाठ पढ़ सकते हैं. इसी तरह से ग्रामीण छत्तीसगढ़ में 5वीं कक्षा के 56 फीसदी छात्र-छात्रायें ही 3री कक्षा के पाठ पढ़ सकते हैं.
जब साल 2000 में छत्तीसगढ़ अलग राज्य बना उस समय अपने बजट से शिक्षा के लिये खर्च करने वाला अग्रणी राज्य बिहार था. बिहार अपने बजट का 23.7 फीसदी शिक्षा पर खर्च करता था. महाराष्ट्र अपने बजट का 22.3 फीसदी, राजस्थान 18.8 फीसदी, तमिलनाडु 18 फीसदी खर्च करता था.
देश के 16 राज्यों में छत्तीसगढ़ उन राज्यों में शामिल था जो शिक्षा पर अपने बजट से सबसे कम खर्च करते थे. साल 2000-01 में छत्तीसगढ़ ने अपने बजट से शिक्षा पर महज 13.1 फीसदी ही खर्च किये थे. छत्तीसगढ़ से कम केवल गोवा ने 11.9 फीसदी खर्च किये थे.
पिछले 16 सालों में छत्तीसगढ़ में शिक्षा पर सरकार का बजटीय खर्च लगातार बढ़ता गया. पहले के 4 साल 2001-02, 2002-03, 2003-04 तथा 2004-05 में शिक्षा पर बजटीय आवंटन कम होता गया. लेकिन इसके बाद से शिक्षा पर खर्च लगातार बढ़ता गया.
साल 2013-14 में शिक्षा पर अपने बजट से महाराष्ट्र ने सबसे ज्यादा 20.5 फीसदी तथा बिहार ने 18.7 फीसदी खर्च किया था. उस समय छत्तीसगढ़ तीसरे नंबर था तथा छत्तीसगढ़ ने शिक्षा पर 18 फीसदी खर्च किया था. उसके बाद साल 2014-15 में छत्तीसगढ़ ने शिक्षा में सबसे ज्यादा 20.5 फीसदी खर्च किया. साल 2015-16 में भी छत्तीसगढ़ के बजट का शिक्षा पर आवंटन सबसे ज्यादा 19.4 फीसदी का रहा है.
हां, साल 2015-16 में विशेष श्रेणी के राज्य असम में शिक्षा पर बजट से 20.5 फीसदी तथा राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली ने 23.8 फीसदी आवंटित किया है.
राज्यों द्वारा अपने बजट से शिक्षा पर खर्च का राष्ट्रीय औसत साल 2013-14 में 16.5 फीसदी, 2014-15 में 15.9 फीसदी तथा साल 2015-16 में 16.4 फीसदी का रहा है. छत्तीसगढ़ ने इन तीनों ही साल शिक्षा पर राष्ट्रीय औसत से ज्यादा खर्च किये हैं.
इऩ तमाम सरकारी प्राथमिकता के बावजूद छत्तीसगढ़ के गांवों में शिक्षा की हालत शोचनीय है. गौरतलब है कि ग्रामीण छत्तीसगढ़ में 5वीं कक्षा के 56 फीसदी छात्र-छात्रायें ही 3री कक्षा के पाठ पढ़ सकते हैं. जिसमें से सरकारी स्कूलों के 51 फीसदी तथा निजी स्कूलों के 75.9 फीसदी ही 5वीं कक्षा के पाठ पढ़ सकते हैं. यह 2016 का आंकड़ा है. जबकि इसकी तुलना में 2010 में 5वीं कक्षा के 61.6 फीसदी छात्र-छात्रायें 3री कक्षा के पाठ सकते थे. इसका अर्थ यह हुआ कि पिछले 6 सालों में ग्रामीण शिक्षा के स्तर में गिरावट आई है.
इसी तरह से 8वीं कक्षा के 73.5 फीसदी छात्र-छात्रायें ही 2री कक्षा के पाठ पढ़ सकते हैं. जिसमें 70.9 फीसदी सरकारी स्कूलों के तथा 89.9 फीसदी निजी स्कूलों में पढ़ते हैं. यह 2016 का ताजा आंकड़ा है. इसकी तुलना में 2010 में 8वीं कक्षा के 92.7 फीसदी छात्र-छात्रायें 2री कक्षा के पाठ पढ़ सकते हैं. यहां भी शिक्षा के स्तर में गिरावट आई है.
इसी तरह से 3री कक्षा के 28.1 फीसदी छात्र-छात्रायें 2री कक्षा के पाठ पढ़ सकने की हालात में हैं. इसमें साल 2010 की तुलना में सुधार आया है. साल 2010 में मात्र 11.3 फीसदी ही 2री कक्षा के पाठ पढ़ने में सक्षम पाये गये थे.
जहां तक गणित का सवाल है यह पाया गया कि 3री कक्षा के 3.8 फीसदी छात्र-छात्रायें 1 से 9 तक की संख्या को नहीं पहचान पाते हैं. 38.6 फीसदी 9 तक की संख्या को पहचान पाते हैं परन्तु 99 तक की संख्या को वे नहीं पहचान पाते हैं. 37.6 फीसदी 99 तक की संख्या को पहचान पाते हैं परन्तु इन्हें घटाना नहीं आता है. 16.5 फीसदी को घटाना आता है परन्तु उन्हें विभाजन करना नहीं आता है.
कक्षा 5वीं के 23.1 फीसदी छात्र-छात्राओं को विभाजन आता है जबकि साल 2010 में इससे ज्यादा 38.9 फीसदी को विभाजन आता था. इसी तरह से कक्षा 8वीं के 28.1 फीसदी को विभाजन आता है जबकि साल 2010 में 77.6 फीसदी को विभाजन आता था. इस तरह से इस मामले में भी शिक्षा का स्तर गिरा है.
जहां तक अंग्रेजी पढ़ने की बात है 3री कक्षा के 22.8 फीसदी छात्र-छात्रायें अंग्रेजी का कैपिटल लेटर नहीं पढ़ पाते हैं. 23.2 फीसदी अंग्रेजी का कैपिटल लेटर पढ़ सकते हैं परन्तु स्माल लेटर नहीं पढ़ सकते हैं. सरकार द्वारा बजटीय आवंटन में प्राथमिकता दिये जाने के बावजूद जाहिर है कि शिक्षा विभाग का रिजल्ट खराब आ रहा है.