शहीदों के वर्दी की अभिलाषा क्या थी!
रायपुर | संवाददाता: छत्तीसगढ़ के सुकमा के शहीदों के वर्दियों के नसीब में कूड़े में पड़े रहना लिखा था. सोमवार को सुकमा के जंगलों में नक्सलियों की गोली जिन वर्दियों पर सीआरपीएफ के जवानों ने झेली थी उन्हें बुधवार को राजधानी रायपुर के अंबेडकर अस्पताल के कूड़ेदान में पड़ा हुआ पाया गया. कायदे से इन वर्दियों को शहीदों के साथ ताबूत में भेजा जाना चाहिये था परन्तु सीआरपीएफ या पुलिस के अफसरों को इसका ख्याल तक नहीं आया. नतीजन, पोस्टमार्टम के बाद इसे अन्य कपड़ों के समान कूड़े में फेंक दिया गया.
सेना तथा अर्धसैनिक बलों के जवानों को उनके प्रशिक्षण के समय बार-बार यह सिखाया जाता है कि वर्दी पर यदि छेद हो तो वह सामने से हो, पीठ पर गोली खाकर मत आना. बुधवार को अर्धसैनिक बल सीआरपीएफ के जवानों की वही वर्दिया कूड़े में पड़े-पड़े अपने अपमान को सहन कर रही थी. उल्लेखनीय है कि इन वर्दियों के लिये सरकार की तरफ से जवानों को मासिक भत्ते दिये जाते हैं, इनका स्टॉक रजिस्टर रखा जाता है तथा वर्दियों का निरीक्षण किया जाता है. इसके लिये बकायदा पुलिस एक्ट, 1954 में नियम बने हैं.
खबरों के अनुसार शहीद सीआरपीएफ जवानो तथा अधिकारियों के हथियार नक्सलियों ने लूट लिये यदि नहीं लूटे गये होते तो उन्हें सीआरपीएफ को बकायदा लौटा दिया जाता. हालांकि, वर्दियों के नसीब में कुछ और ही लिखा था.
छत्तीसगढ़ के सुकमा के शहीदों की वर्दियों को रायपुर के अंबेडकर अस्पताल के कूड़े में पड़ी होने की खबर पाकर कांग्रेस के विकास उपाध्याय ने उन्हें कांग्रेस भवन लाकर फूल तथा मालाएं पहनाई एवं सीआरपीएफ को सौंप दिया.
उल्लेखनीय है कि कवि माखनलाल चतुर्वेदी के पुष्प की अभिलाषा थी कि उन्हें उस पथ पर फेंद देना जिस पथ पर वीर अपने मातृभूमि के लिये शीश चढ़ाने जाते हैं. जाहिर है कि दूसरे राज्यों से छत्तीसगढ़ में आकर नक्सलियों से जूझते हुए अपने प्राणों की बलि देने वाले सीआरपीएफ के जवानों के वर्दियों से भी किसी ने नहीं पूछा कि उनकी अभिलाषा क्या है? कम से कम इन वर्दियों की अभिलाषा अंतिम समय तक शहीदों का साथ मिलने का तो जरूर था.