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गांवों की ओर भी झांकिए

दिवाकर मुक्तिबोध
सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति टी एस ठाकुर छत्तीसगढ़ की प्रगति से अभिभूत हैं. हाल में ही में वे रायपुर प्रवास पर थे. महत्वपूर्ण कार्यक्रमों में हिस्सा लेने के अलावा उन्होंने नई राजधानी का भी दौरा किया. मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह भी उनके साथ थे. यहां चमचमाती चौड़ी सड़कें, ऊंची-ऊंची खूबसूरत इमारतें, हरे-भरे पेड़-पौधे उन्हें आनंदित करने के लिए काफी थे. यह सब देखकर उनकी सकारात्मक प्रतिक्रिया स्वाभाविक थी- ”छत्तीसगढ़ को बाहर के लोग गरीब और पिछड़े राज्य के रूप में देखते हैं पर ऐसा नहीं हैं. राज्य तेजी से प्रगति कर रहा है और इसका श्रेय मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह को है.” अब अभिभूत होने की बारी मुख्यमंत्री रमन सिंह की थी. पर वे निर्विकार रहे दरअसल मुख्यमंत्री को अब इस तरह की कोई तारीफ प्रभावित नहीं करती.

देश की राजधानी दिल्ली या मेट्रो से जो भी अति महत्वपूर्ण व्यक्ति जिनमें केन्द्रीय मंत्री भी शामिल है, रायपुर आते हैं, विकास को देखकर गद्गद् हो जाते हैं. तारीफ के पुल बांधते हैं और इसका पूरा श्रेय राज्य की भाजपा सरकार और उसके मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह को देते हैं. और तो और केन्द्र में यूपीए सरकार के जमाने में भी छत्तीसगढ़ के दौरे पर आने वाले कांग्रेसी और गैरकांग्रेसी मंत्री भी मुख्यमंत्री और राज्य की प्रगति की तारीफ करते अघाते नहीं थे.

उनके इस रवैये से, प्रतिक्रियाओं से प्रदेश कांग्रेस के नेता परेशान रहते थे क्योंकि वे प्रतिपक्ष के नाते राज्य सरकार के खिलाफ मोर्चा खोलते थे. कुप्रशासन, भ्रष्टाचार, महंगाई, बेलगाम नौकरशाही, आम आदमी की परेशानी, किसानों की आत्महत्याएं, गरीबी, बेरोजगारी आदि मुद्दों पर मुख्यमंत्री को कटघरे में खड़ा करते थे, आरोपों की बौछार करते थे, सड़क की लड़ाई लड़ते थे पर उनके किए-धरे पर केन्द्रीय मंत्री पानी फेर देते थे. सर्टिफिकेट देकर जाते थे कि मुख्यमंत्री अच्छा काम कर रहे हैं, प्रदेश तेजी से प्रगति कर रहा है. प्रदेश के कांग्रेसी सख्त नाराज रहते थे कि केन्द्र में उनकी सरकार, उनके मंत्री पर रायपुर आकर भाजपा सरकार का गुणगान! यह कैसे राजनीति!

बहरहाल राजनीति अपनी जगह और काम अपनी जगह. इसमें क्या शक कि पिछले 12 वर्षों में यानी भाजपा सरकार के दौर में जो अभी जारी है, कम से कम रायपुर की तो कायापलट हो गई है. विवेकानंद एयरपोर्ट पर उतरते ही उसकी सुंदरता देखकर आंखें फट जाती हैं. गज़ब का विमानतल. बेहद सुंदर. फिर नया रायपुर के क्या कहने. ऐसी दिलकश आधारभूत संरचनाएं, जो भी देखता है, तारीफ किए बगैर नहीं रहता. नए के साथ पुराना रायपुर भी तो बदल गया है. लिहाजा रायपुर की मुकम्मल तस्वीर यही बनती है कि जिस प्रदेश की राजधानी इतनी खूबसूरत हो, वह पिछड़ा और गरीब कैसे हो सकता है.

पर यह पूरा सच नहीं हैं. आधा सच भी नहीं. रायपुर को देखकर पूरे प्रदेश के बारे में राय नहीं बनाई जा सकती. अंदर के हालात काफी खराब हैं. आंकड़े बताते हैं कि गरीबी बढ़ी है, बेरोजगारी बढ़ी है, किसानों की ऋणग्रस्तता, ऋण अदा न कर पाने की स्थिति, व्याप्त निराशा और आत्महत्याएं की घटनाएं भी बढ़ी हैं. उच्च और प्राथमिक शिक्षा की दुरावस्था की अनेक कहानियां हैं जो सच है. प्राथमिक स्वास्थ्य भी बेहाल है. अधोसरंचना का विकास केवल चंद बड़े शहरों तक सीमित हैं. गांव अभी भी विकास से कोसों दूर हैं. बस्तर अभी बरसों से नक्सल दहशत में है. नक्सलियों के मारे जाने या उनके सरकार के सामने शरणागत होने के जितने भी दावे किए जाएं, पर समस्या रंच मात्र भी कम नहीं हुई है.

पहुंचविहीन गांवों की लंबी फेहरिस्त है. जिस पीडीएस सिस्टम की देशव्यापी तारीफ हुई, वह किस कदर भ्रष्टाचार में आकण्ठ डूबा हुआ है, यह बहुचर्चित नान घोटाले से जाहिर है. बहुतेरे आदिवासियों का अभी भी राशन के लिए मीलों पैदल चलना पड़ता है, नदी-नाले और पहाडिय़ों लांघनी पड़ती हैं. केन्द्र व राज्य सरकार की जनकल्याणकारी योजनाएं किनका कल्याण कर रही है, यह सर्वविदित है. शासन-प्रशासन की बात करे तो मुख्यमंत्री संवेदनशील हो सकते हैं पर अफसरशाही नहीं, कामकाज में पारदर्शिता भी नहीं. राज्य में भ्रष्टाचार तो खैर चरम पर है. इतना सब होते हुए भी यह अलग बात है कि छत्तीसगढ़ को विभिन्न क्षेत्रों में उल्लेखनीय प्रगति के लिए राष्ट्रीय पुरस्कारों से नवाजा जाता रहा है. वर्ष 2015-16 की बात करें तो पुरस्कारों की झड़ी लगी हुई है. एक के बाद एक फिलहाल एक दर्जन से ज्यादा पुरस्कारों की प्राप्ति हो चुकी हैप् तो क्या इसे ही सच माना जाए ? कुछ भी मैनेजबल नहीं ? जैसा कि आमतौर पर पुरस्कारों के मामलों में देखा जाता रहा है.

दरअसल प्रगति की तस्वीर गांवों से बननी चाहिए. विशेषकर आदिवासी गांवों से. यह सवाल पूछा जाना चाहिए कि आजादी के 68 वर्षों के बाद भी छत्तीसगढ़ के गांव बदहाल क्यों है. एक पूरी पीढ़ी बदहाली में मर गई, दूसरी, तीसरी, चौथी भी अभावों में जी रही है. पिछले 12 वर्षों से मुख्यमंत्री एवं मंत्री गांवों का स्थिति का जायजा लेने हफ्ते दस दिन का सम्पर्क अभियान चलाते हैं पर क्या उन गांवों का हालत सुधरी? अब विधायकों एवं सांसदों को गांव एलाट किए गए हैं, लेकिन क्या उनकी तस्वीर थोड़ी बहुत बदली? सभी सवालों का जवाब है- कहीं कुछ-कुछ बदला, कहीं कुछ भी नहीं बदला, बदला तो केवल रायपुर बदला.

सोचे, एक आदर्श ग्राम की तस्वीर क्या हो सकती है. गांवों में भी पक्की सड़कें, नालियां, प्राथमिक अथवा उच्च माध्यमिक स्वास्थ्य केन्द्र, प्राथमिक व माध्यमिक शालाएं, उनके भवन, शुद्ध एवं स्वच्छ पेयजल की व्यवस्था, श्रमदान से बने तालाब, पहुंच मार्ग, बरसात में गांव टापू न बने ऐसी व्यवस्था और कुटीर उद्योग. क्या इतने बरसों में छत्तीसगढ़ के कुछ गांव ऐसी तस्वीर पेश नहीं कर सकते थे ? नहीं तो मंत्रियों, नेताओं व अफसरों के ग्राम जनसम्पर्क अभियान से क्या फायदा! क्या औचित्य.

अंत में एक बात और कही जा सकती है. क्या हमारी सरकार बाहर से आने वाले अति महत्वपूर्ण व्यक्तियों को नई राजधानी की सैर कराने के साथ-साथ ग्राम दर्शन भी करा सकती है ? कोई एक गांव! क्या सीएम साहब ऐसा साहस जुटा सकते हैं ? ऐसे दौरे से जो तस्वीर बनेगी वह सच्ची प्रगति की सूचक होगी. तब मेहमानों की वास्तविक प्रतिक्रिया सामने आएगी. फिर इस योजना से कम से कम इतना फायदा तो होगा, उस गांव का उद्धार हो जाएगा. वैसे ही जैसे जब राष्ट्राध्यक्ष या प्रधानमंत्री दौरे पर आते हैं और जिस मार्ग से गुजरने को होते हैं तो रातों-रात उसकी तस्वीर बदल जाती है. सड़कें चकाचक हो जाती हैं. हमारे गांव इस तरह भी बदले, तो क्या बुरा है.

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