छत्तीसगढ़ में कौन है प्रासंगिक ?
कोरबा | त्वरित टिप्पणी: राजनीति में सत्ता ही सब कुछ है, अंतिम लक्ष्य कुछ भी नहीं होता है. गत दिवस कोरबा में छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने पत्रकारों से जो कुछ कहा उसका यही निष्कर्ष निकाला जा सकता है. जिस जोगी को अंतागढ़ टेपकांड में रमन सिंह के साथ सांठगांठ के आरोप में कांग्रेस छोड़नी पड़ी, उन्होंने ही अब कहा है कि उनका निशाना सांप्रदायिक ताकतों को बढ़ावा देने वाली भाजपा से है. अजीत जोगी ने छत्तीसगढ़ की संपदा को लूटने का आरोप भी लगाया.
उन्होंने कहा, “महाभारत के अर्जुन की तरह मैं भी रमन-मुक्त छत्तीसगढ़ के लक्ष्य पर निशाना साध रहा हूं. मेरा एक सूत्री एजेंडा राज्य से भाजपा नीत भ्रष्ट सरकार को बाहर करना है जो निजी क्षेत्र को और चुनिंदा उद्योगपतियों से राज्य के मूल्यवान खनिजों की लूट करा रही है.”
इसी के साथ पत्रकारों के साथ संक्षिप्त बातचीत में उन्होंने कहा, “मैं इस राज्य से ताल्लुक रखता हूं. हम अगला विधानसभा चुनाव जीतने के बाद नयी सरकार बनायेंगे.”
अब भला अजीत जोगी को कांग्रेस में रहते हुये भाजपा से लड़ने से किसने रोका था. हां, यह जरूर है कि उन्हें पार्टी में वह अहमियत नहीं मिल पा रही थी जिसके हकदार वे खुद को मानते रहे हैं.
छत्तीसगढ़ के कोयले की खदानों की लूट केन्द्र में यूपीए सरकार के रहते ही शुरु हो चुकी थी तब अजीत जोगी ने न तो इसका विरोध किया और नही कोई आंदोलन खड़ा किया था. अजीत जोगी के पास समर्थकों की बड़ी फौज है इससे इंकार नहीं किया जा सकता है.
अब यदि जोगी जी छत्तीसगढ़ के बहुमूल्य संपदा की रक्षा करना चाहते हैं तो उन्हें बयान देने के अलावा एक सशक्त आंदोलन खड़ा करना पड़ेगा जिसके बलबूते पर 2018 के विधानसभाई चुनाव में कांग्रेस की उपेक्षा कर भाजपा को चुनौती दी जा सके. वैसे कोरबा में ही उन्होंने यह भी टिप्पणी की है कि कांग्रेस अब अप्रासंगिक हो चुकी है.
कांग्रेस के अप्रासंगिक हो जाने के आरोपों के बीच उन्हें खुद को प्रासंगिक साबित करना पड़ेगा. जाहिर है कि बिना जनता के बीच जाये तथा उनके मुद्दों को उठाये बगैर यह संभव नहीं है. राजनीति में सत्ता की राह जनता के बीच से होकर ही जाती है.