छत्तीसगढ़ में HIV-AIDS तो गये काम से
रायपुर | विशेष संवाददाता: छत्तीसगढ़ में एड्स की दवा उपलब्ध है पर ईलाज नहीं हो सकता है. छत्तीसगढ़ में सरकारी कार्यक्रम के तहत एचआईवी पीड़ित तथा एड्स के मरीजों के लिये एंटीरिट्रोवायरल दवा उपवब्ध है जिससे मरीज की जिंदगी को लंबा किया जा सकता है परन्तु यदि उसे डायलिसिस की जरूरत पड़े तो उसका मरना निश्चित है.
उल्लेखनीय है कि एचआईवी इंफेक्शन होने से मरीजों को एड्स की बीमारी हो जाती है. जिससे शरीर की रोगप्रतिरोधक क्षमता का क्रमशः हा्स होने लगता है. अंतर्राष्ट्रीय स्वास्थ्य आकड़ों के अनुसार इनमें से करीब 30 फीसदी के मूत्र में प्रोटीन की मात्रा सामान्य से बढ़ जाती है तथा करीब 10 फीसदी को किडनी का रोग हो जाता है. दोनों ही हालात में ऐसे एड्स तथा एचआईवी पीड़ितों के किडनी के डायलिसिस की आवश्यकता पड़ती है.
गौरतलब है कि छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री के निर्वाचन क्षेत्र, राजनांदगांव में ऐसा ही एक मामला सामने आया है. राजनांदगांव के एक व्यक्ति को एचआईवी इंफेक्शन से एड्स की बीमारी हो गई. जिसका पता 15 दिनों पहले ही चला था. उक्त मरीज को छत्तीसगढ़ के सबसे बड़े निजी अस्पताल कहे जाने वाले रामकृष्ण केयर अस्ताल में भर्ती कराया गया. जहां पर डाक्टरों ने जांच करके मरीज के परिजनों को बताया कि उस मरीज को डायलिसिस की जरूरत है. छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के रामकृष्ण केयर अस्पताल ने मरीज के परिजनों के इतला तो दे दी कि मरीज को डायलिसिस की जरूरत परन्तु उसका डायलिसिस करने में असमर्थता जाहिर की.
इसके बाद, मरीज के परिजनों ने मरीज को रायपुर के सरकारी अस्पताल, अंबेडकर अस्पताल में भर्ती कराया परन्तु वहां भी उसका डायलिसिस नहीं किया जा रहा है. चिकित्सकों ने मरीज के परिजनों के हवाले से बताया कि इस मरीज का डायलिसिस करने के बाद डायलिसिस मशीन को एचआईवी वायरस से मुक्त करने की सुविधा उपलब्ध नहीं है. इसलिये यदि इससे एड्स के मरीज का डायलिसि किया जाता है तो उसे अन्य मरीज का डायलिसिस करने से पहले उसकी सफाई नहीं हो सकेगी तथा किडनी के अन्य मरीजों का ईलाज रुक जायेगा. जाहिर है कि सरकारी अस्पताल में भी मरीज का डायलिसिस नहीं हो सका है.
मरीज की उम्र मात्र 35 वर्ष की है तथा उसकी पत्नी गर्भवती है जिसे पहले से एक लड़की भी है. ऐसे हालात में जब परिवार को पिता तथा पति की आवश्यकता है ऐसे में वही व्यक्ति लाचारी में सरकारी अस्पताल में अपने आने वाले मौत की प्रतीक्षा कर रहा है.
छत्तीसगढ़ में HIV-AIDS
राज्य एड्स नियंत्रण सोसाइटी के आकड़ों पर गौर करेंगे तो पायेंगे कि छत्तीसगढ़ में 16,325 एचआईवी के मरीज है. यह आकड़ा 2003 से लेकर दिसंबर 2013 तक का है. रायपुर में 9,825 मरीजों की जांच करने पर पता चला कि 466 मरीज एचआईवी से संक्रमित हैं. इसी प्रकार से दुर्ग में 15,055 मरीजों का परीक्षण करने से पता चला कि उनमें से 298 मरीजों को एचआईवी संक्रमण है. वहीं, बिलासपुर के 20,718 मरीजों की जांच करने पर पता चला कि उनमें से 288 एचआईवी से संक्रमित हैं.
छत्तीसगढ़ में डायलिसिस की आवश्यकता
सरकारी आकड़ों के आधार पर छत्तीसगढ़ में दिसंबर 2013 तक एचआईवी से संक्रमित 16,325 मरीज पाये गयें हैं. वैसे वास्तविक आकड़ा निश्चित तौर पर इससे काफी ज्यादा होगा क्योंकि लोगों में धारणा होती है कि एचआईवी-एड्स एक यौन रोग है तथा इसे छुपाया जाता है. बहरहाल, यदि सरकारी आकड़ों के अनुसार ही चले तो इन 16.325 में से 30 फीसदी अर्थात् 4,897 मरीजों के मूत्र में प्रोटीन की मात्रा ज्यादा हो सकती है तथा उनमें से 1,632 को किडनी का रोग होने की संभावना है. जिसमें रक्त का डायलिसिस करवाना अत्यंत आवश्यक होता है.
ऐसे में जरूरत इस बात की है कि रायपुर को स्मार्ट सिटी बनाने से पहले स्वास्थ्य के क्षेत्र में उसे और उन्नत बनाया जाये तथा कम से कम सरकारी अस्पतालों में एचआईवी-एड्स के मरीजों के लिये अलग डायलिसिस की मशीन हो तथा उसके सफाई की समुचित व्यवस्था हो. जाहिर सी बात है कि जब सरकार स्वंय के अस्पताल में एचआईवी के मरीज का डायलिसिस करने में असमर्थ हो तो ऐसी हालात में निजी क्षेत्र के कमाऊ अस्पताल क्यों ऐसा करने लगे?