कोल का निजीकरण रद्द हो
रायपुर | संवाददाता: सीबीए ने कोयला खनन और बिक्री का काम निजी कंपनियों को सौंपे जाने का विरोध किया है. छत्तीसगढ़ में छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन यानी सीबीए के संयोजक आलोक शुक्ला ने कहा है कि केंद्र सरकार को अपने इस निर्णय पर पुनर्विचार करना चाहिये.
आलोक शुक्ला ने एक बयान में कहा है कि कोयला उत्खनन को निजी हाथों में सौंपने के अपने पूर्व इरादे पर चलते हुए मोदी सरकार ने एक और कार्पोरेट परस्त निर्णय लेते हुए कॉमर्सियल माइनिंग में निजी कंपनियों को अनुमति प्रदान की है. इस निर्णय के अनुसार अब कोई भी निजी खनन कंपनी कोल ब्लॉक हासिल कर खुले बाजार में कोयला बेचने के लिए स्वतंत्र होगी. कोयला खनन (विशेष प्रावधान) अधिनियम 2015 में केंद्र सरकार ने कॉमर्सियल माइनिंग का प्रावधान किया था, जिसके तहत ही निजी कंपनियों को भी इसमें अनुमति प्रदान की गई हैं. इस निर्णय के बाद निजी कंपनियां कोयला उत्खनन कर देश के अन्दर तथा विदेशों में भी कोयला आपूर्ति कर सकेंगी.
आलोक शुक्ला ने कहा कि केंद्र सरकार के इस निर्णय का सीबीए पुरजोर तरीके से विरोध करता है. शुक्ला के अनुसार कोयला संसाधन एक जन-संपदा हैं जिनका उपयोग केवल जन-हित में होना चाहिए न कि निजी मुनाफे के लिए. इस निर्णय से एक तरफ तो सार्वजनिक क्षेत्र की खनन कम्पनी कोल इण्डिया को कमजोर कर कोयला उत्खनन निजी हाथों में सौंपने की तैयारी है, वहीं दूसरी और बहुमूल्य खनिज संपदा की लूट व व्यापार के आधार पर चुनिन्दा कार्पोरेट घरानों के मुनाफे को सुनिश्चित करने की दिशा में लिया गया निर्णय है.
सीबीए के बयान में कहा गया है कि कुछ दिन पूर्व ही केंद्र सरकार द्वारा तैयार किये गए अपने विजन डॉक्यूमेंट 2030 में कहा गया है कि सिर्फ पाइपलाईन की परियोजनाओं को ही आगे बढाया जायेगा, नई खनन परियोजनाओं की आवश्यकता नहीं है. फिर कोयला उत्पादन बढाने की ऐसी क्या जल्दी कि अंत-उपयोग को नजरंदाज कर कॉमर्सियल माइनिंग की अनुमति प्रदान की गईं ?
सीबीए ने आशंका जताई है कि इस निर्णय से छत्तीसगढ़ जैसे आदिवासी बहुल राज्यों में जहाँ पहले ही हजारों हेक्टेयर क्षेत्रों में खनन जारी हैं, में और अधिक नई कोयला खदाने शुरू होंगी, जिससे बड़े पैमाने पर घने जंगलों व पर्यावरण का विनाश होगा. इसके साथ ही पीढियों से निवासरत आदिवासी समुदाय जिनकी आजीविका पूर्णतः जंगल-जमीन पर आश्रित है, उनका भी विस्थापन बढेगा.
संयोजक आलोक शुक्ला ने कहा कि छत्तीसगढ़ में वर्तमान में दो बड़े कोयला क्षेत्र हैं-हसदेव अरण्य एवं मांड रायगढ़. ये दोनों आदिवासी बाहुल्य, सघन वन क्षेत्र हैं, जिसमे समृद्ध जैव विविधता वन्य प्राणियों का आवास और कई महत्वपूर्ण जलाशय और नदियों का केचमेंट हैं. पर्यावरणीय संवेदनशील इन क्षेत्रों के संरक्षण की प्राथमिकता को नजरंदाज कर सिर्फ कार्पोरेट मुनाफे के लिए कोल ब्लाकों का आवंटन किया जा रहा हैं. खनन का ही दुष्परिणाम हैं कि प्रदेश में सैकड़ो गाँव विस्थापित हो चुके हैं और वन्यप्राणी आवासीय क्षेत्रों में आकर ग्रामीणों को मार रहे हैं. आज लगभग 17 जिलों में गंभीर रूप से हाथी मानव संघर्ष की स्थिति है. आंदोलन ने केंद्र सरकार से पूरे मामले में पुनर्विचार की मांग की है.