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बुंदेलखंड: जितना श्रमदान, उतना ही पानी

भोपाल | एजेंसी: बुंदेलखंड के एक गांव में लोगों ने पानी की समस्या को आपसी सहयोग तथा संयुक्त प्रयास से हल कर लिया है. मामला जो जागत है वह पावत है वाली है. मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड में पानी के संरक्षण और संवर्धन के लिए तरह-तरह के प्रयोग हो रहे हैं, एक गांव के लोगों ने तो अजब फैसला कर डाला है कि जो व्यक्ति या परिवार तालाब की मरम्मत में जितना श्रमदान या अंशदान करेगा, उसे उसी के अनुपात में खेती की सिंचाई और दैनिक उपयोग के लिए पानी मिलेगा.

टीकमगढ़ जिले की ग्राम पंचायत है बनगांव, इस पंचायत में आता है एक मजरा शुक्लान टौरिया. यह गांव पहाड़ के किनारे बसा है, यहां तक पहुंचने के लिए सड़क भी नहीं है. इस मजरे में चंदेलकालीन तालाब है, मगर रिसाव के कारण हर वर्ष बारिश का पानी कुछ माह ही ठहर पाता है और गांव के लोगों से लेकर मवेशियों तक को पानी के लिए दर-ब-दर भटकना पड़ता है. गर्मी में तो हाल बेहाल हो जाता है. गांव के लोग अरसे से तालाब को सुधारने के लिए प्रयत्नशील थे, प्रशासन और सरकार से गुहार लगाई मगर बात नहीं बनी.

शुक्लान टौरिया के निवासियों ने आसपास के क्षेत्र में एकीकृत जल प्रबंधन मिशन के तहत चल रहे कार्यो के जरिए अपने गांव के तालाब की मरम्मत के प्रयास किए. सरपंच लीलावती शुक्ला ने कहा है कि उन्होंने तालाब मरम्मत में परमार्थ समाज सेवा संस्थान से सहयोग मांगा. संस्थान ने तालाब सुधार कार्य का स्टीमेट तैयार किया तो कुल खर्च साढ़े तीन लाख रुपये आंका गया. संस्थान की शर्त थी कि मरम्मत कार्य में सामुदायिक हिस्सेदारी आवश्यक है. इसके लिए गांव के लोग मरम्मत पर आने वाले कुल खर्च की दस प्रतिशत राशि के बराबर श्रमदान या अंशदान करें.

इस गांव में ब्राह्मण, पिछड़ा और दलित वर्ग के कुल 80 परिवार निवास करते है और तालाब से लगभग 70 एकड़ जमीन की सिंचाई होती है. श्रमदान व अंशदान के मसले पर गांव के लोगों की बैठक बुलाई गई.

धनीराम अहिरवार ने बताया कि बैठक में तय हुआ कि श्रमदान का तो हिसाब रखना मुश्किल होगा, लिहाजा मरम्मरत पर खर्च होने वाली कुल राशि का 10 प्रतिशत 30 हजार रुपये आपस में इकट्ठा किए जाएं. इसके लिए खेती की जमीन पर प्रति एकड़ 412 रुपये की राशि तय की गई.

बैजनाथ पाल बताते हैं कि गांव के सभी लोग 412 रुपये प्रति एकड़ के मान से राशि जमा करने तैयार हो गए, जिसकी जितनी खेती की जमीन है, उसने उसी अनुपात में राशि जमा की है. तालाब की मरम्मत हो रही है, उम्मीद है कि बारिश का पानी इस बार बर्बाद नहीं जाएगा और खेती व दैनिक उपयोग के पानी के लिए भटकना नहीं पड़ेगा.

बुजुर्ग मुन्ना लाल कहते हैं कि गांव की पूरी खेती वर्षा पर आधारित है, जब अच्छा पानी बरस जाता है तो पैदावार अच्छी हो जाती है, जिस वर्ष बारिश अच्छी नहीं होती तो फसल चौपट हो जाती है. अगर तालाब में पानी रुकने लगा तो किसानों की अच्छी पैदावार होना तय है, क्योंकि यहां की मिट्टी उपजाऊ है.

परमार्थ के प्रमुख संजय सिंह ने कहा है कि गांव वालों से 10 प्रतिशत राशि सामुदायिक हिस्सेदारी बनाए रखने के लिए ली गई है. यही कारण है कि गांव के लोग तालाब के मरम्मत कार्य पर न केवल नजर रखे हुए है, बल्कि गुणवत्ता को भी बनाए रखने में सहायक बन रहे हैं.

सिंह का कहना है कि जब किसी कार्य मे जनसामान्य की भागीदारी बढ़ जाती है तो गबड़ियों की गुंजाइश कम हो जाती है. गांव के लोगों की पानी जरूरत है और उन्होंने उसके लिए अंशदान भी किया है, वे स्वयं खर्च का लेखा-जोखा रखते हैं. अगर विकास कार्य में समुदाय की हिस्सेदारी तो भ्रष्टाचार की कहीं कोई संभावना बचती ही नहीं है.

शुक्लान टौरियो गांव के लोगों ने तालाब की मरम्मत के लिए अंशदान कर विकास में सामुदायिक हिस्सेदारी की वह इबारत लिखने की कोशिश की है, जो आने वाले समय में दूसरे गांव के लिए प्रेरणा का कारण बन सकती है.

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