गरीबों का ‘चने का साग’
बांदा | एजेंसी: महंगाई की जबर्दस्त मार बुंदेलखंड के गरीबों को झेलना पड़ रहा है, यहां अगर मौसमी ‘चने का साग’ न हो तो गरीब के हक में सिर्फ सूखी रोटी ही दोनों वक्त आए. इस समय चने का साग ही महंगी सब्जी से राहत दिलाने में सहायक सिद्ध हो रहा है.
बुंदेलखंड में सब्जियां इतनी महंगी हैं कि गरीब चाहकर भी एक पाव हरी सब्जी नहीं खरीद सकते, भले ही नमक खाकर गुजारा करें. यहां नया आलू 25 रुपये प्रति किलोग्राम, पुराना 20 रुपये, प्याज 45 रुपये, लौकी 20 रुपये, बैगन 32 रुपये, टमाटर 40 रुपये, अदरक 125 रुपये, हरा मिर्च 42 रुपये और हरी धनिया की पत्ती 70 से 80 रुपये प्रति किलोग्राम फुटकर बिक रही है, जिसे खरीद पाना गरीब के बूते की बात नहीं है.
गांव-देहात में इस समय रबी की फसल में चने का साग आसानी से मिल रहा है. इसकी साग दो वक्त खाकर गरीब गुजारा कर रहे हैं.
बांदा जिले के बाघा गांव की बुजुर्ग महिला रमिनिया रविवार की शाम नगला पुरवा के पास वाले खेत में चने का साग तोड़ने में मशगूल थी, उसने बताया कि वह पिछले एक पखवाड़े से शाम-सबेरे चने का साग तोड़ कर ले जाती है. यही परिवार के लिए एक सालन बचा है, बांकी सभी सब्जियां इतनी मंहगी है कि उनका स्वाद चखना भूल गए हैं.
इसी जिले के गोबरी-गोड़रामपुर की रहने वाली आदिवासी महिला फुलमतिया बताती है कि चने का साग बाजारों में महंगा बिकता है, उसका परिवार रोजाना साग तो खाता ही है, चित्रकूट और अतर्रा की बाजार 30 से 40 रुपये प्रति किलोग्राम दर से बेचकर आटा-चावल का भी इंतजाम कर रहा है. वह बताती है कि दो हफ्ते से उसके घर में ‘साग’ के अलावा अन्य कोई सब्जी नहीं बन रही है.
कुल मिलाकर महंगाई के इस दौर में यहां के गरीबों को चने का साग न मिले तो वह सूखी रोटी को खाने के लिए मजबूर हो जाएं, हालांकि उच्च और मध्यम वर्ग के लिए यह साग हरी सब्जी से कम नहीं है इसे वह लोग महंगे दाम में शौक से खरीद भी रहे हैं.