कलारचना

….अश्लीलता या नारी स्वतंत्रता

नई दिल्ली | विशेष संवाददाता: देह प्रदर्शन अश्लीलता है नारी स्वतंत्रता का घोतक है?
यह बहस आजकल आम हो गई है. सोशल मीडिया में अक्सर बॉलीवुड की अभिनेत्रियां वक्ष प्रदर्शन करने वाले फोटो अपलोड करती रहती हैं. कई इसका मजाक बनाते हैं, कुछ भद्दे-भद्दे कमेंट करके अपनी मानसिकता का प्रदर्शन करते हैं तो दूसरी तरफ अभिनेत्रियों के बीच ‘रेजर’ लिये फोटो पोस्ट करने की होड़ लग गई है. दरअसल, ‘रेजर’ पुरुषों को दिखाया जा रहा है कि वे अपनी सोच की हजामत करा लें. जाहिर है कि जमाने के साथ बदलती सोच व मानसिकता के साथ अश्लीलता तथा नारी स्वतंत्रता की परिभाषा भी बदल गई है.

नारी स्वतंत्र है क्या इसके लिये उसे देह दिखाना चाहिये या इसे पुरुषवादी सोच पर नग्न प्रहार माना जाना चाहिये? सबकी अपनी-अपनी राय हो सकती है. समाज के अलग-अलग पायदान पर नग्नता, अश्लीलता तथा शालीनता का अलग-अलग पैमाना होता है. समाज के आर्थिक रूप से के निचले वर्ग में सेक्स तथा शादी को लेकर खुलापन देखा जाता है. उन्हें अक्सर सरकारी नल में नहाते देखा जा सकता है. चाहे पुरुष हो या नारी कम कपड़े में ही नहाते दिखते हैं. इस बीच कुछ बेसुरे बिड़ी सुलगाते हुये नैनसुख लेते हुये भी दिखाई देते हैं. ज्यादा चू-चपड़ की तो महिलायें ही ऐसे भद्दे-भद्दे गाली देने से पीछे नहीं रहती जिसे सुनकर पुरुषों का सारा ‘जोश’ ठंडा पड़ जाता है.

आर्थिक रूप से निचले वर्ग के पास ढ़ंग से शरीर ढ़ंकने के लिये भी कपड़े नहीं होते हैं. ना तो वे सोशल मीडिया में सक्रिय होते हैं और ना ही इन्टरनेट का खर्च उठाने की क्षमता रखते हैं. उनके बीच की बेबस नग्नता उन्हीं के आसपास तक सिमटकर रह जाती है. इन दृश्यों को बॉलीवुड फिल्मों में दिखाता है जिसका मकसद समाज की बेबसी दिखाने से ज्यादा भीड़ खींचने की गरज होती है.

उसी तरह से आर्थिक रूप से उच्च वर्ग में देह प्रदर्शन पर विशेष ध्यान नहीं दिया जाता है. वहां इसे आम जाना जाता है. पार्टियों में कौन कितना दूसरों को आकर्षित कर सकता है इसकी होड़ लगी रहती है. हाल ही में सोनम कपूर एक समारोह में इस ढ़ंग से पहुंची कि नारी सौंदर्य का पर्याय माने जाने वाले उपरी अंग का सहज ही दर्शन हो रहा था. इसका फोटो खींचकर उसका प्रकाशन करने वाले पर सोनम ने कड़ी टिप्पणी की है. अब दोष सोनम कपूर का है या उस फोटोग्राफर का इसे किस नजरिये से तय किया जाये, यही समस्या है. सोनम ही क्यों, दीपिका पादुकोण ने काफी पहले ही चुनौती वाले अंदाज में कहा था उसे अपने ‘क्लीवेज’ पर गर्व है.

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बेशक, सुंदर होने के लिये शरीर का सुंदर होना पहली शर्त मानी जाती है. लेकिन क्या अपने सुंदरता पर जनता की सहमति का ठप्पा लगवाने के लिये उसके सार्वजनिक प्रदर्शन को उचित ठहराया जा सकता है? कई बार तो ऐसा लगता है कि बॉलीवुड की कुछ अभिनेत्रियों का मकसद ‘फैन’ की संख्या में इज़ाफा करना होता है. किसी ने सही कहा है, ‘बॉलीवुड के बाज़ार में जो दिखता है वहीं बिकता है’.

वैसे इस पर बहस की जा सकती है कि मधुबाला या मीना कुमारी ने कितना अंग प्रदर्शन किया था. उसके जवाब में मुमताज, जीनत अमान से लेकर परवीन बॉबी तक का उदाहरण दिया जा सकता है. इसमें नोट करने वाली बात यह है कि इन सब ने फिल्म की कहानी की मांग के अनुसार कैमरे का सामना किया. परन्तु आज तो खाली-पीली इंस्टाग्राम पर नग्न या उत्तेजक फोटो पोस्ट किये जा रहें हैं. इन्हें किस तरह से सही ठहराया जा सकता है. नारी स्वतंत्रता के नाम पर नंगेपन को कहां तक उचित ठहराया जा सकता है.

परन्तु मध्यम वर्ग, जिसके बारें में कहा जाता है कि उसका ‘पैर निम्न वर्ग में तथा सिर उच्च वर्ग’ में होता है, सेक्स और शादी के खुलेपन पर नाक-भौंह सिकोड़ी जाती है. यही वह वर्ग है जो उच्च वर्ग के देह प्रदर्शन से नैनसुख लेने के बाद उसकी आलोचना करता है. अरे भाई, जब मालूम है कि राखी सावंत, पूनम पांडेय तथा सोफिया हयात इंस्टाग्राम पर ‘गरम-गरम’ परोसती है तो आपने उनके अकाउंट में झांका ही क्यों? क्या आजकल के सोशल मीडिया में लोग सहज तौर पर पोर्न फोटो की तलाश करते हैं. उसके बाद अपनी हताशा तथा कुंठा को उस पर भद्दे कमेंट करके दबाने की कोशिश करते हैं.

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दरअसल, मुद्दा नारी की स्वतंत्रता का है. जिसे नंगेपन को सामाजिक स्वीकृति देकर नहीं नारी को सही मायने में स्वतंत्रता देकर करनी पड़ेगी. इसकी शुरुआत घर से करनी पड़ेगी. नारी के हर रूप को- बेटी, बहन, पत्नी तथा मां को स्वतंत्रता देनी पड़ेगी. अपने शिक्षा के चयन की, जीवन साथी के चयन की, साथ सोने या न सोने की इच्छा के इज़हार की तथा मां को केवल खाना बनाने वाली तथा घर संभालने वाली से ज्यादा मान्यता देनी पड़ेगी. नारी तभी स्वतंत्र मानी जायेगी जब उसे पुरुषों से बिना पूछे अपने फैसले खुद लेने की स्वतंत्रता मिले. उसे अपने जीवन जीने के ढ़ंग का फैसला लेने की स्वतंत्रता मिले.

इस बीच ‘रेजर’ मुहिम को सांकेतिक विरोध माना जाना चाहिये. कम से कम नारी ने पुरुषवादी सोच को आयना तो दिखाया है. जहां तक वक्ष प्रदर्शन, नाभि दर्शना साड़ी का सवाल है उसे आप अपनी सोच के अनुसार दर्जा दे दीजिये, इसके लिये नारी तथा पुरुष दोनों स्वतंत्र हैं.

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