छत्तीसगढ़

छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल चुनाव हारे

रायपुर | संवाददाताः छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल राजनांदगांव संसदीय क्षेत्र से चुनाव हार गए हैं. भाजपा के संतोष पांडेय ने उन्हें 44,411 मतों से शिकस्त दी.

संतोष पांडेय राजनांदगांव से पिछली बार भी सांसद चुने गए थे. भाजपा ने उन पर दोबारा भरोसा जताते हुए मैदान में उतारा था.

श्री पांडेय को कुल 7,12,057 हासिल हुए, वहीं भूपेश बघेल को कुल 6,67,646 मत प्राप्त हुए.

2019 लोकसभा चुनाव में संतोष पांडेय को कुल 6,62, 387 वोट प्राप्त हुए थे, वहीं उनके निकटतम प्रतिद्वंदी कांग्रेस के भोलाराम साहू को कुल 5,50,421 वोट मिले थे. जीत का अंतर 1,11,966 रहा था.
हालांकि पिछली बार के मुकाबले इस बार जीत का अंतर कम हुआ है.

लेकिन इस बार उनके सामने चुनावी मुकाबले में पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल थे, जिनकी पकड़ ग्रामीण क्षेत्रों में मजबूत बताई जा रही थी.
ऐसे में इस जीत को अहम माना जा रहा है.

छत्तीसगढ़ की 11 लोकसभा सीटों में दो सीटें, राजनांदगांव और दुर्ग ऐसी थी, जहां निवर्तमान सांसदों को दोबारा मौका मिला था. दोनों ने ही फिर से जीत दर्ज की है.

तीसरी बार लोकसभा चुनाव हारे भूपेश

भूपेश बघेल के लिए लोकसभा चुनाव में यह पहली हार नहीं है. यह तीसरा अवसर है, जब उन्हें लोकसभा चुनाव में हार का सामना करना पड़ा है.

पहली बार 2004 में उन्हें दुर्ग लोकसभा संसदीय क्षेत्र से शिकस्त मिली थी. भाजपा के ताराचंद साहू ने उन्हें 61,468 मतों से हराया था.

ताराचंद साहू को कुल 3,82,757 वोट प्राप्त हुए थे, वहीं भूपेश बघेल को 3,21,289 वोट मिले थे.

2009 में भूपेश बघेल को फिर से लोकसभा की टिकिट मिली. पार्टी ने उन्हें रायपुर लोकसभा सीट से चुनाव मैदान में उतारा था.

लेकिन यहां भी उन्हें हार का सामना करना पड़ा.

2009 के लोकसभा चुनाव में उनका सामना रमेश बैस से था. रमेश बैस को चुनाव में कुल 3,64,943 वोट मिले थे, वहीं भूपेश बघेल को कुल 3,07,042 प्राप्त हुए.

भूपेश बघेल यह चुनाव 57,901 वोट से हार गए थे.

भूपेश की जिम्मेवारी वाले अधिकांश राज्यों में हारी कांग्रेस

भूपेश बघेल को जिन-जिन राज्यों में चुनाव की जिम्मेदारी सौंपी गई, कांग्रेस को करारी हार का सामना करना पड़ा.

हिमाचल प्रदेश को अगर छोड़ दिया जाए तो बाकी राज्यों में कांग्रेस का प्रदर्शन बेहद कमजोर रहा.

बिहार की कुल 243 विधानसभा सीटों में से कांग्रेस ने 70 सीटों पर चुनाव लड़ा और महज 19 पर ही जीत हासिल कर पाई. 51 सीटों पर हार का सामना करना पड़ा.

असम की कुल 126 विधानसभा सीटों में कांग्रेस को केवल 29 ही मिल पाई.

उत्तरप्रदेश की स्थिति तो बेहद ही खराब रही.

मुख्यमंत्री रहते भूपेश बघेल और उनकी टीम के विश्वस्त लोगों ने महीनों तक तन, मन, धन का सहयोग करते हुए उत्तर प्रदेश में जीत का दावा किया था.

लेकिन उत्तर प्रदेश की कुल 403 विधानसभा सीटों में से कांग्रेस केवल 2 सीट ही जीत पाई.

उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का प्रदर्शन पिछले विधानसभा चुनाव से भी ज्यादा खराब रहा.

2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को कुल 7 सीटें मिली थीं.

छत्तीसगढ़ में भी 2023 का विधानसभा चुनाव भूपेश बघेल के ही नेतृत्व में लड़ा गया है, जहां कांग्रेस को बुरी तरह से हार का सामना पड़ा.

ईवीएम बदलने का लगाया आरोप

मतगणना के कुछ घंटे पूर्व भूपेश बघेल ने आरोप लगाया कि उनके संसदीय क्षेत्र में ईवीएम को बदला गया है.

श्री बघेल ने सोशल मीडिया साइट एक्स पर लिखा “ चुनाव आयोग ने चुनाव में प्रयुक्त होने वाली मशीनों के नंबर दिए थे. इसमें बैलेट यूनिट, कंट्रोल यूनिट और वीवीपैट शामिल है.
मेरे चुनाव क्षेत्र राजनांदगांव मतदान के बाद फार्म 17सी में जो जानकारी दी गई है उसके अनुसार बहुत सी मशीनों के नंबर बदल गए हैं.
जिन बूथों पर नंबर बदले हैं उससे हजारों वोट प्रभावित होते हैं और भी कई लोकसभा क्षेत्रों में यही शिकायतें मिली हैं.
हम राज्य निर्वाचन पदाधिकारी से शिकायत कर रहे हैं.
इलेक्शन कमीशन को जवाब देना चाहिए कि किन परिस्थितियों में मशीनें बदली गईं और चुनाव परिणाम पर होने वाले असर के लिए कौन जिम्मेदार होगा ?
बदले हुए नंबरों की सूची बहुच लंबी है पर एक छोटी सूची आप सबके अवलोकनार्थ संलग्न है.”

निर्वाचन आयोग ने भूपेश बघेल के आरोप पर जवाब दिया.

आयोग ने कहा, “राजनांदगांव संसदीय क्षेत्र के कांग्रेस उम्मीदवार के साथ साझा किए गए ईवीएम नंबरों में कथित विसंगति तथ्यों पर आधारित नहीं हैं.
मतदान के दौरान उपयोग की जाने वाली ईवीएम बिल्कुल चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों के साथ रैंडमाइजेशन के बाद रिटर्निंग ऑफिसर द्वारा साझा की गई मशीनों की सूची के अनुसार होती हैं.”

राजनांदगांव में छठवीं बार जीती बीजेपी

राजनांदगांव संसदीय सीट में छठवीं बार बीजेपी ने जीत दर्ज की है. हालांकि 2007 के उप चुनाव में कांग्रेस को जीत मिली थी.

1999 में इसी सीट से डॉ. रमन सिंह चुनाव जीते थे. 2004 में प्रदीप गांधी को जीत हासिल हुई थी.

2007 के उपचुनाव में कांग्रेस के देवव्रत सिंह चुनाव जीते थे. उनके मुकाबले में यहां भाजपा ने लीलाराम भोजवानी को मैदान में उतारा था.

2009 में मधुसूदन यादव यहां से सांसद बने.

फिर 2014 में पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के बेटे अभिषेक सिंह यहां से सांसद बने. 2019 में बीजेपी ने संतोष पांडे को मौका दिया और वह सांसद बने.

2024 के चुनाव में संतोष पांडेय ने एक बार फिर जीत हासिल की.

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