अमित करेंगे भाजपा का कायाकल्प
नई दिल्ली | संवाददाता: भाजपा संगठन नये युग में प्रवेश करने जा रहा है. अब यह तय हो गया है कि पार्टी के महासचिव अमित शाह, भाजपा के नये अध्यक्ष के रूप में जिम्मेदारी संभालने वाले हैं. समाचारों के हवाले से खबर है कि संघ ने भी आखिरकार अमित शाह के नाम पर अपनी सहमति दे दी है. गुजरात के बाद उत्तरप्रदेश में अपने सांगठनिक क्षमता के प्रदर्शन के बाद, प्रबंधीय क्षमता से भरपूर अमित शाह अध्यक्ष के अध्यक्ष बनने से भाजपा संगठन का कायाकल्प होना निश्चित है.
वैसे भी देश के राजनीतिक इतिहास में भाजपा, पहले जनसंघ के नाम से जाना जाने वाला राजनीतिक दल पहली बार अपने बूते पर सत्ता में आया है. जाहिर है कि इस नये राजनीतिक धरातल पर खड़ी भाजपा को नये स्वरूप में अपने-आप को ढालना पड़ेगा. जिसके लिये अमित शाह सबसे बेहतरीन शख्स हैं इसमें कोई दो मत नहीं है. अध्यक्ष बनते के बाद अमित शाह पार्टी का कायाकल्प करेंगे क्योंकि उन्होंने इसका परिचय लोकसभा चुनाव के समय ही दे दिया था.
श्यामा प्रसाद मुखर्जी से लेकर, अटल बिहारी , आडवाणी, वैंकेया नायडू तथा राजनाथ सभी पारंपारिक ढ़ंग से पार्टी को चलाते आये हैं. इसके विपरीत मोदी ने भाजपा की पुरानी परंपरा से हटकर चुनाव प्रचार किया तथा जीतकर दिखाया. उनके इस मुहिम में अमित शाह, उनके खास सिपहसलार रहें हैं. वास्तव में मोदी के चुनाव के प्रचार की कमान महासचिव अमित शाह के हाथों में ही थी.
इस बार के भाजपा के चुनाव प्रचार में सभी उपलब्ध तकनीक का भरपूर दोहन किया गया था. सोशल मीडिया से लेकर 3-डी चुनाव प्रचार तक जिसकी पारंपरिक भाजपा आदी नहीं थी. यहां तक की जिस उत्तरप्रदेश की राजनीति दो क्षेत्रीय दल बसपा तथा सपा के बीच तक सीमित होकर रह गई थी वहां भी मोदी के चुनाव सभा के समय लाखों की भीड़ इकठ्ठा हो जाया करती थी. यह दिगर बात है कि अटल बिहारी को भी सुनने के लिये लोग स्वंमेय आया करते थे परन्तु मोदी के चुनावी सभा में भीड़ को लाना अमित शाह की सांगठनिक क्षमता का ही परिचायक है, वह भी मोदी के प्रधानमंत्री बनने के पहले.
नमो को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी बनाने में अमित शाह ने जरूरी संशाधनों का भी बखूबी जुगाड़ किया था अन्यथा क्या यह आसान बात है कि मोदी का चुनाव प्रचार तत्कालीन सत्तारूढ़ कांग्रेस से ज्यादा आक्रमक तथा खर्चीला था. इस दौरान गांधीनगर में अमित शाह के नेतृत्व में ही एक बड़ी टीम का गठन किया गया था जो मोदी को चुनाव प्रचार के लिये हर एक क्षण ब्रीफिंग दिया करता था. जिसमें विरोधी पार्टी की गतिविधि से लेकर किसने क्या कहा तथा उसका कौन सा जवाब होगा. यहां तक की मोदी के चुनाव प्रचार की तुलना अमरीकी राष्ट्रपति के चुनाव प्रचार से की जा रही थी.
मोदी ने अगर परंपरा से हटकर प्रचार किया तो उसकी कमान उनके खास सिहसलार अमित शाह के हाथ में ही थी. ऐसे में तय माना जा रहा है कि अमित शाह यदि भाजपा के अध्यक्ष बनते हैं तो पूरे पार्टी को आधुनिक बनाने के लिये कोई कसर नहीं रख छोड़ेंगे. कारर्पोरेट प्रबंधन के समान समय पर सूचना प्राप्त करने तथा उसे आगे देने की पाबंदी तथा उसके अनुरूप रणनीति बनाने की कला से भाजपा के पुराने कार्यकर्ताओं को निपुण होना पड़ेगा. इसकी झलक इसी बात से मिल जाती है कि अमित शाह ने उत्तरप्रदेश के खांटी भाजपाईयों को किनारे कर अपनी टीम के बल पर 80 में से 73 सीटें जीती है. जिसकी कल्पना परंपरागत ढ़ंग से तल रही भाजपा कर ही नहीं सकती है.
यदि अमित शाह भाजपा के अध्यक्ष बनते हैं तो पार्टी के पुराने कार्यकर्ताओं को अपने आप को नये माहैल के अनुसार ढ़ालना पड़ेगा जिसकी अमित शाह को जरूरत है तथा वह इसके आदी भी हैं.