अथ: छात्र संघ चुनाव कथा
छत्तीसगढ़ में इन दिनों छात्र संघ चुनाव शुरु हैं. राजनीतिक पार्टियों के नाम और स्थानीय मुद्दों को छोड़ दें तो पूरे देश भर में छात्र संघ चुनावों का हाल एक जैसा है. पंजाब विश्वविद्यालय की शोध छात्रा दिव्या कपूर ने जो अपने यहां देखा-समझा, उसे लिख भेजा है. पाठक अपनी सुविधा अनुसार पंजाब विश्वविद्यालय की जगह छत्तीसगढ़ के किसी विश्वविद्यालय का नाम रख सकते हैं या देश के किसी दूसरे विश्वविद्यालय का नाम. हालात तो सब जगह एक से हैं.
दिव्या कपूर
पंजाब विश्वविद्यालय में छात्र संघ चुनाव को गुजरे अभी सप्ताह भर होने को आये हैं लेकिन इस छात्र संघ चुनाव की धमक अब तक खत्म नहीं हुई है. संकट इतना भर है कि इस चुनाव से पहले और इस चुनाव के बाद कई सवाल हवा में अब भी तैर रहे हैं और इन सवालों का जवाब देने वाला कोई नहीं है.
पिछले कुछ दिनों में सभी छात्र संगठनों ने जीत हासिल करने के लिए अपना पूरा जोर लगा रखा था. हर तरह के गठ्बंधन के बाद मुख्य तौर पर तीन गठ्बंधन सामने आये, जिनके बीच चुनाव होना था. ये थे- स्टूडेंट आर्गेनाइजेशन ऑफ़ इंडिया ग्रुप (SOI+GGSU+INSO+NSO+YOI+HIMSU), पंजाब यूनिवर्सिटी स्टूडेंट यूनियन ग्रुप (PUSU+ABVP+SAP), नेशनल स्टूडेंट यूनियन ऑफ़ इंडिया ग्रुप (NSUI+HSA+HPSA+HPSU).
इसी बीच यौन प्रताड़ना के खिलाफ ‘स्टूडेंटस फॉर सोसाइटी’ के मार्गदर्शन में छात्रों के रोष और विरोध को देखते हुए विश्वविद्यालय प्रबंधन ने विश्वविद्यालय परिसर में चारपहिया वाहनों को बंद करने की मांग पर चुनाव के समांतर जनमत संग्रह कराने का वादा कर फ़ैसला छात्रों पर छोड़ दिया. अब चुनाव के दो मुददे थे- एक ‘छात्र संघ का चुनाव’ और दूसरा महाविद्यालय क्षेत्र में चारपहिया वाहनों के प्रवेश का सवाल.
यौन प्रताड़ना के मुद्दे को चुनावी स्टंट के तौर पर उपयोग करने के आरोपों को गलत साबित करते हुए ‘स्टूडेंटस फॉर सोसाइटी’ ने इस साल चुनाव में भाग न लेने का ऐलान किया और कैंपस में यौन प्रताड़ना के मुद्दे को तवज्जो देते हुए उसी के लिए प्रचार-प्रसार किया.
सभी तरह के राजनीतिक दाव-पेंच के साथ पिछले दो दिन चुनाव के लिए बेहद महत्वपूर्ण रहे. एक तरफ सभी पार्टियाँ लिंगदोह कमेटी के सभी नियमों को ताक पर रख धन और बल के जरिये अपने प्रचार में लगी रही. तो दूसरी तरफ चंडीगढ़ पुलिस पैदल, घुड़सवार और दमकल की गाड़ियों की टीम के साथ सुरक्षा के नाम पर कैंपस में अपनी शक्ति प्रदर्शन में लगी थी. आखिर के दो दिन पूरे कैंपस में पुलिस ‘फ्लैग मार्च’ देख कई बार सवाल उठता था कि ‘हम विश्वविद्यालय में रह रहे हैं या जंग के मोर्चे पर’.
चुनाव से पहले के दो दिन लगातार कई बार लड़कियों के छात्रावास में लड़को का प्रवेश बंद हुआ. पर हकीकत यह भी थी कि जब भी कोई बड़ा नेता प्रचार करने आता तो सुरक्षा गार्ड की एक न चलती और उन्हें मजबूरन गेट खोलने पड़ते. कई बार यह तर्क देकर लड़कियों को उन्हीं के हॉस्टल के गेट के आसपास खड़े होने से रोका गया कि ‘आप यहाँ खड़ी होती हैं तभी लड़के आते हैं तो आप लोग अंदर बैठें’.
सड़कों पर पार्टी प्रचार के रंगबिरंगे स्टीकर ऐसे बिछे थे, मानों सड़कों ने अपना रूप बदलकर स्टीकरो को ही अपना परिधान चुन लिया हो और छात्रावासों में बिखरे स्टीकर को देख लगता था जैसे फूल, पत्ते, फर्श, बगीचे सभी पार्टी प्रचार की कुरूपता में अपने अस्तित्व को भूल गयी हों.
चुनाव की सुबह जहाँ एक तरफ छात्र-छात्रायें पार्टियों को वोट के जरिये जनादेश सुनाने जा रहे थे, वहीं दूसरी तरफ विश्वविद्यालय के सफाई कर्मचारी विश्वविद्यालय के आदेशानुसार सड़कों को साफ करने में पसीना बहा रहे थे. ये जानते हुए कि जीत के बाद एक बार फिर सड़कें वैसी ही हो जाएंगी और अगले दिन उन्हें फिर से किसी और की करनी का दंड अतिरिक्त कार्य करके भुगतना होगा.
इसी बीच सभी विभागों से मतदान खत्म हुआ और परिणाम का इंतजार शुरू हुआ. छात्रों को सुरक्षा देने के नाम पर पुलिस कैंपस की सड़कों पर अपनी ताक़त दिखा रही थी. उधर पहले की अव्यवस्था से सीख लेते हुए प्रबंधन ने वोटों की गिनती के स्थान तक को बदल दिया. लम्बे इंतजार के बाद शाम 5 बजे परिणाम घोषित हुए. जिसमें सोई पार्टी के गठबंधन को जीत हासिल हुई और चारपहिया वाहनों के सवाल के परिणाम को बाद के लिए छोड़ दिया गया.
थोड़ी ही देर में चारों और जीत की ख़ुशी का शोर सुनाई पड़ने लगा. ढ़ोल से लेकर रंगों, मिठाइयों, तक से ख़ुशियां व्यक्त की गयीं. इसी बीच स्टूडेंट सेंटर, जो पंजाब यूनिवर्सिटी का दिल माना जाता है; पर छात्रों की भीड़ के बीच बुलेट घुमाने का प्रदर्शन शुरु हुआ, तरह- तरह के स्टंट किये गये. विश्वविद्यालय के रैली ग्राउंड में गाड़िया ऐसे घुमाई गयीं मानो विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों ने छात्र संगठनों को नहीं, गुंडा-राज को जीता दिया हो. देर रात तक सड़कों पर आम छात्रों का चलना मुश्किल था. दूर-दूर तक शोर करती गाड़िया लाइन में लगी अब अपनी शक्ति का प्रदर्शन करती पुलिस के फ्लैग मार्च को बौना करती नज़र आ रही थीं.
इन सब के बीच कुछ महत्वपूर्ण सवाल जो विश्वविद्यालय में लोकतंत्र के लिये स्थान, छात्राओं की आजादी और साथ ही साथ विश्वविद्यालय के माहौल पर भी उठते हैं. आज के समय में सभी छात्र-चुनाव लिंगदोह कमेटी के नियमानुसार होते हैं. हालांकि ये एक बड़ा और गंभीर सवाल है कि छात्र-चुनाव लिंगदोह नियमों के अनुसार होने चाहिए या नही. परन्तु जब लिंगदोह के अनुसार चुनाव करवाने के दावे किये जाते हैं तो ये समझ लेना जरूरी है कि इन नियमों का हवाला सिर्फ अपनी सहुलियत के हिसाब से ही तो नही दिये जा रहे हैं. सभी विश्वविद्यालयों को स्वायत्ता का दर्जा प्राप्त है, फिर विश्वविद्यालय के अपने सुरक्षा जवान के होते हुये पुलिस का विश्वविद्यालय को छावनी में तब्दील करना कहां तक ठीक है. प्रचार में किये गये बेहिसाब खर्च को नज़र-अंदाज़ करना और छात्राओं की आज़ादी के सवाल को सिर्फ राजनीतिक फायदे के लिए उपयोग करना विश्वविद्यालय प्रबंधन पर गंभीर सवाल उठाता है.
लेकिन लाख टके का मसला तो इतना भर है कि चुनाव परिणाम की घोषणा के बाद छात्र-नेताओं का बार-बार देश की बड़ी पार्टियों के नेताओं को धन्यवाद देना अपने आप में बहुत कुछ कह जाता हैं.