26 अगस्त, महिला समानता दिवस
नई दिल्ली | एजेंसी: छत्तीसगढ़ में महिलाए किसी भी क्षेत्र में पीछे नही हैं. दुर्ग की सरोज पांडे सांसद हैं, राजधानी रायपुर की मेयर किरणमयी नायक तथा बिलासपुर की मेयर वाणी राव हैं. महिलाएं आज हर मोर्चे पर पुरुषों को टक्कर दे रही हैं. चाहे वह राजनीति का क्षेत्र हो या फिर घर संभालने का मामला, यहां तक कि सैन्य और सुरक्षा क्षेत्र में भी महिलाओं का दखल बढ़ा है.
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से 70 किलोमीटर दूर बेमेतरा के बाबा मोहतरा में कुछ दिनों पहले महिलाओं और मगरमच्छ के बीच जमकर जंग हुई थी जिसमें महिलाओं ने 110 वर्ष के मगरमच्छ को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया था. एक महिला को मगरमच्छ का निवाला बनने से पहले ही तीन महिलाओं ने उसे बचा लिया था. उनकी इस बहादुरी का सभी ने लोहा माना था. जिस काम को करने में शायद पुरुष पीछे हट जाते, छत्तीसगढ़ की महिलाओं ने वह कर दिखाया है.
महिलाओं ने हर क्षेत्र में खुद को साबित किया है, बावजूद इसके आज भी महिलाओं को पुरुषों के सामान दर्जा हासिल नहीं हो पाया है. हर साल 26 अगस्त को महिला समानता दिवस मनाया जाता है, लेकिन दूसरी ओर महिलाओं के साथ दोयम दर्जे का व्यवहार भी जारी है. यही वजह है कि कई क्षेत्रों में महिलाओं की भागीदारी और प्रतिशत कम है.
देश में प्रधानमंत्री के पद पर इंदिरा गांधी और राष्ट्रपति के पद पर प्रतिभा देवी सिंह पाटील रह चुकी हैं वहीं मौजूदा दौर में दिल्ली में शीला दीक्षित, तमिलनाडु में जयललिता और पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी राज्य की बागडोर संभाल रही हैं. कांग्रेस प्रमुख सोनिया गांधी हैं तो बहुजन सामाज पार्टी (बसपा) की अध्यक्ष मायावती हैं.
संसद में लोकसभा अध्यक्ष के पद पर मीरा कुमार आसीन हैं, तो विपक्ष की नेता के पद पर सुषमा स्वराज. इसके अलावा कॉरपोरेट और बैंकिंग क्षेत्रों में इंद्रा नूई और चंदा कोचर जैसी महिलाओं ने अपना लोहा मनवाया है.
समाज का दूसरा पहलू यह है कि विज्ञान और प्रौद्योगिकी के इस दौर में भी लड़कियों को बोझ माना जाता है. आए दिन कन्या भ्रूणहत्या के मामले गैरकानूनी होने के बावजूद सामने आते रहते हैं. ऐसा तब है जब मौका मिलने पर लड़कियों ने हर क्षेत्र, हर कदम पर खुद को साबित किया है, फिर भी महिलाओं की स्थिति और उनके प्रति समाज के रवैये में ज्यादा फर्क नहीं आया है.
प्रगति और विकास के मामले में दक्षिण अफ्रीका, नेपाल, बांग्लादेश एवं श्रीलंका भले ही भारत से पीछे हों, परंतु स्त्रियों और पुरुषों के बीच सामनता की सूची में इनकी स्थिति भारत से बेहतर है. स्वतंत्रता के छह दशक बाद भी ग्रामीण और शहरी दोनों ही क्षेत्रों में महिलाओं को दोयम दर्जे की मार से जूझना पड़ रहा है.
देश की चंद महिलाओं की उपलब्धियों पर अपनी पीठ थपथपाने की बजाय हमें इस पर भी ध्यान देना चाहिए कि हमारे देश में महिलाएं न केवल दफ्तर में भेदभाव का शिकार होती हैं, बल्कि कई बार उन्हें यौन शोषण का भी शिकार होना पड़ता है. सार्वजनिक जगहों पर यौन हिंसा के मामले आए दिन सुर्खियों में आते रहते हैं.
यूनीसेफ की रिपोर्ट यह बाताती है कि महिलाएं नागरिक प्रशासन में भागीदारी निभाने में सक्षम हैं. यही नहीं, महिलाओं के प्रतिनिधित्व के बगैर किसी भी क्षेत्र में काम ठीक से और पूर्णता के साथ संपादित नहीं हो सकता.