छत्तीसगढ़ वेतन देने में फिसड्डी
बिलासपुर । संवाददाता: छत्तीसगढ़ राज्य वेतन देने के मामले में फिसड्डी साबित हुआ है. हाल ही में दावा किया गया है कि राज्य में सबसे कम बेरोजगारी है. लेकिन इसके उलट हाल ये है कि राज्य में सबसे कम वेतन मिलता है.
देश के 35 राज्यों तथा केन्द्र शासित प्रदेशों में अकुशल कामगारों को वेतन देने के मामले में छत्तीसगढ़ 22वें पायदान पर खड़ा है. छत्तीसगढ़ में अकुशल कामगारों को प्रतिदिन 104.60 से 151.04 रुपये गुजर-बसर करने के लिये मिलता है.
जबकि राष्ट्रीय औसत 166.00 रुपये प्रतिदिन का है. इस बात को दोहराने की आवश्यकता नहीं है कि इन्हीं पैसो से जीवन-यापन का स्तर तय होता है. इसका अर्थ यह हुआ कि छत्तीसगढ़ के कामगारों की हालात देश में 22वें नंबर पर है. यहां के औसत परिवार के प्रति सदस्य के लिये 37.75 रुपये प्रतिदिन का वेतन मिल पाता है.
छत्तीसगढ़ की तुलना में भाजपा शासित मध्यप्रदेश में 146.49 से 174.80 रुपये, गुजरात में 150.00 से 157.00 रुपये प्रतिदिन मिलता है. यानी छत्तीसगढ़, भाजपा शासित राज्यों में भी फिसड्डी है. यहां तक कि केन्द्र शासित प्रदेशों में भी छत्तीसगढ़ की तुलना में ज्यादा वेतन दिया जाता है. अंडमान-निकोबार में यह वेतन 220.00-280.00 रुपये, चंडीगढ़ में 219.00 रुपये, दादरा और नागर हवेली में 156.20 रुपये, दिल्ली में 279.00 रुपये, लक्षद्वीप में 200.00 रुपये तथा पांडिचेरी में 100.00-205.00 रुपये है.
आंध्रप्रदेश में अकुशल कामगारों का न्यूनतम वेतन है 69.00-231.71 रुपये प्रतिदिन, अरुणाचल प्रदेश में 134.62-153.85 रुपये, गोवा में 150-157 रुपये, हरियाणा में 100.00-181.80 रुपये, कर्नाटक में 130.08-220.73 रुपये, केरल में 85.20-353.00 रुपये, महाराष्ट्र में 146.49-174.80 रुपये, मिजोरम में 100.00-248.15 रुपये, पंजाब में 170.00 रुपये, तमिलनाडु में 88.29-222.35 रुपये, उत्तरप्रदेश में 100.00-171.20 रुपये, उत्तराखंड में 110.64-218.30 रुपये, पश्चिम बंगाल में 112.50-169.30 तथा पांडिचेरी में 100.00-205.00 रुपये है.
मामला इतना भर ही नहीं है. छत्तीसगढ़ में राष्ट्रपिता गांधीजी के नाम पर शुरु की गई रोजगार गारंटी योजना ने का भी हाल बुरा है. सरकारी आंकड़े बताते हैं कि 2012-13 में छत्तीसगढ़ के 43 लाख 92 हजार 798 परिवारों के पास मनरेगा का जाँब कार्ड था. जिसमें से 27 लाख 26 हजार 377 परिवारो ने काम मांगा था. कुल 26 लाख 26 हजार 54 परिवारो को काम मिल सका. लेकिन पूरे सौ दिनों का कार्य केवल 2 लाख 39 हजार 43 परिवारों को ही मिल पाया.