पेगासस जासूसी की जांच करेंगे जज
नई दिल्ली | डेस्क: भारतीय पत्रकारों, समाजसेवियों और प्रतिष्ठित लोगों की पेगासस जासूसी की जांच सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त जज करेंगे. यह आदेश सुप्रीम कोर्ट ने दिया है.
केंद्र सरकार ने इससे पहले इस मामले की जांच की ज़रुरत से इंकार किया था.
सुप्रीम कोर्ट ने #PegasusSnoopgate की जाँच के आदेश की शुरुआत नोवलिस्ट जार्ज औरवेल की इस पंक्ति से की-“अगर आप कोई रहस्य रखना चाहते हैं तो उसे अपने आप से भी छिपाना होगा.”
Kudos to the SC for a fine judt appointing an independent fact finding committee in the Pegasus snoopgate case, headed by retd SC Raveendran J. The SC rejected the govt's plea of non interference on ground of national security as well as its attempt to appoint its own expert body
— Prashant Bhushan (@pbhushan1) October 27, 2021
ट्विटर पर कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने लिखा, “डरपोक फासीवादियों के लिए सब जगह छद्मराष्ट्रवाद अंतिम पनाहगाह होता है.”
“राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर बचने और ध्यान भटकाने की सरकार की कोशिश के बीचपेगासस स्पाइवेयर के दुरुपयोग की जांच के लिए विशेष समिति के गठन के सुप्रीम कोर्ट के आदेश का स्वागत है. सत्यमेव जयते.”
बीबीसी के अनुसार सुप्रीम कोर्ट ने पेगासस जासूसी मामले की जांच के लिए एक तीन सदस्यीय समिति का गठन किया है. इस समिति में सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज आरवी रविंद्रन, आलोक जोशी और संदीप ओबेरॉय होंगे.
सुप्रीम कोर्ट ने ये फ़ैसला कई याचिकाओं के जवाब में दिया है जिनमें कोर्ट से पेगासस जासूसी मामले में अदालत की निगरानी में स्वतंत्र जांच की मांग की गई थी.
कोर्ट ने ये भी कहा कि निजता के अधिकार का हनन नहीं किया जा सकता है. निजता का अधिकार और नागरिक स्वतंत्रता को बरकरार रखने की ज़रूरत है. इस दौरान उन्होंने ये भी कहा कि पत्रकार का सोर्स नहीं बताया जा सकता.
सुप्रीम कोर्ट के चीफ़ जस्टिस की अध्यक्षता वाली पीठ ने पेगासस स्पाइवेयर मामले में सभी याचिकाओं की सुनवाई के बाद 13 सितंबर को अपना फ़ैसला सुरक्षित रख लिया था.
आठ हफ़्ते के बाद इस मामले की फिर सुनवाई होगी. यानी आठ हफ़्ते में यह कमेटी सुप्रीम कोर्ट को अपनी अंतरिम रिपोर्ट सौंपेगी.
पेगासस मामला
इसराइल की सर्विलांस कंपनी एनएसओ ग्रुप के सॉफ्टवेयर पेगासस का इस्तेमाल कर कई पत्रकारों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, नेताओं, मंत्रियों और सरकारी अधिकारियों के फ़ोन की जासूसी करने का दावा किया था.
50 हज़ार नंबरों के एक बड़े डेटा बेस के लीक की पड़ताल द गार्डियन, वॉशिंगटन पोस्ट, द वायर, फ़्रंटलाइन, रेडियो फ़्रांस जैसे 16 मीडिया संस्थानों के पत्रकारों ने की.
इसी मामले की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं दायर की गई थीं.
एनएसओ समूह की ओर से ये साफ़ कहा जा चुका है कि कंपनी अपने सॉफ्टवेयर अलग-अलग देश की सरकारों को ही बेचती है और इस सॉफ्टवेयर को अपराधियों और आतंकवादियों को ट्रैक करने के उद्देश्य से बनाया गया है.