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छत्तीसगढ़ में सरकारी ज़मीनों की नीलामी, हाईकोर्ट ने मांगा जवाब

बिलासपुर | संवाददाता: छत्तीसगढ़ के अलग-अलग ज़िलों में सरकारी ज़मीन की नीलामी को लेकर हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से जवाब तलब किया है.

हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से चार सप्ताह के भीतर नीलामी से संबंधित तमाम ब्यौरा मांगा है. इस मामले के याचिकाकर्ता सुशांत शुक्ला ने कहा है कि देश के सबसे बड़े ज़मीन घोटाले का राज फाश होगा.

आरोप है कि राज्य भर में प्रभावशाली लोगों ने कौड़ियों के मोल सरकारी ज़मीनें ख़रीद ली हैं. एक लोक कल्याणकारी राज्य में सरकारी ज़मीनों की बिक्री को लेकर पहले भी सवाल उठे थे.

अब हाईकोर्ट में मुख्य न्यायाधीश प्रशांत मिश्रा की पीठ ने राज्य सरकार से नीलाम की गई ज़मीन और हितग्राहियों से संबंधित विस्तृत विवरण मांगा है.

क्या था भूपेश बघेल सरकार का फ़ैसला

पिछले साल जून में राज्य की भूपेश बघेल की सरकार ने शहरी इलाकों में सरकारी ज़मीन पर कब्जा जमाए लोगों के साथ ही दूसरे लोगों को भी सरकारी ज़मीन आवंटित करने का फ़ैसला लिया था.

इसके तहत शासकीय भूमि के आवंटन एवं व्यवस्थापन के संबंध में राज्य शासन द्वारा छत्तीसगढ़ राजस्व पुस्तक परिपत्र के खण्ड चार-एक एवं खण्ड चार-2 के प्रावधानों में आंशिक संशोधन करते हुए कलेक्टर को अधिकार प्रत्यायोजित किए गये थे.


शहरी क्षेत्रों में 7500 वर्गफीट तक शासकीय भूमि का 30 वर्षीय पट्टे पर आवंटन तथा अतिक्रमित शासकीय भूमि के व्यवस्थापन का अधिकार भी कलेक्टरों को दिया गया था. 7500 वर्गफीट से अधिक शासकीय भूमि के आवंटन तथा अतिक्रमित शासकीय भूमि के व्यवस्थापन का अधिकार राज्य सरकार को दिया गया था.

किसी शासकीय भू-खण्ड के आवंटन हेतु दो या दो से अधिक व्यक्ति अथवा संस्था का आवेदन प्राप्त होने पर प्रचलित गाईडलाईन के दर पर निर्धारित की गई प्रीमियम दर को आफसेट मानते हुए नीलामी के माध्यम से सर्वाधिक बोली लगाने वाले को देने के प्रावधान थे.

राज्य सरकार के इस फ़ैसले के साथ ही राज्य के अलग-अलग शहरों में भारी मात्रा में सरकारी ज़मीन का आवंटन और उसकी नीलामी की गई थी. इसमें व्यापारियों के अलावा राजनेताओं ने भी भाग लिया था.

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