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सिद्धू और नफरतजीवी

सुनील कुमार
पाकिस्तान के नए प्रधानमंत्री और वहां के पुराने क्रिकेट कप्तान इमरान खान के शपथग्रहण में पहुंचकर भारत के पंजाब के एक मंत्री, पुराने क्रिकेटर, और मशहूर टीवी कलाकार नवजोत सिंह सिद्धू ने हिन्दुस्तान में नफरतजीवियों की जिंदगी थोड़ी सी बढ़ा दी. ढेर से लोगों को उन्हें गद्दार कहने का मौका मिला जिनको कि पिछले कुछ दिनों में हिन्दुस्तान में किसी को गद्दार करार देने का मौका न मिलने पर बड़ी बेचैनी थी.

बहुत से हिन्दुस्तानियों को यह लगा कि किसी हिन्दुस्तानी को ऐसे पाकिस्तानी के शपथग्रहण पर क्यों जाना चाहिए था जिसका मुल्क सरहद पर भारत के खिलाफ हमले करते ही रहता है. बहुत से लोगों को यह शिकायत हुई कि सिद्धू को आजाद कश्मीर नाम के पाक अधिकृत कश्मीर के मुखिया के बगल में बिठाया गया, और सिद्धू को इसमें कुछ बुरा नहीं लगा. बहुत से लोगों को यह बात खली कि सिद्धू ने वहां के फौजी जनरल कमर बाजवा को गले लगाया.

काफी अरसे से नफरतजीवी निराश और हताश थे कि किसी खास इंसान को देश का गद्दार करार देने का मौका आया नहीं था. ऐसे में दो-तीन छोटी-छोटी बातों में इनको निराशा की गहराई से निकालकर नफरत की सांस लेने का मौका दिया. बिहार के मोतिहारी में एक कॉलेज प्रोफेसर ने फेसबुक पर किसी और की लिखी एक बात को दुबारा पोस्ट किया या पसंद किया कि अटल बिहारी वाजपेयी के साथ फासीवाद के एक युग की समाप्ति. अटलजी अनंत यात्रा पर निकले.

इस एक लाईन पोस्ट करने के बाद इस प्रोफेसर को शहर के मवालियों ने उन्हें फोन पर धमकी दी और शायद इसी वजह से उनके घर घुसकर उन्हें घर से निकालकर बुरी तरह से मारा, और उन पर पेट्रोल छिड़ककर आग लगाने की भी कोशिश की. वैसे यह भी कहा जा रहा है कि उनके विश्वविद्यालय में वे कुलपति के खिलाफ एक आंदोलन में शामिल थे, और हमले की एक वजह यह भी हो सकती है. दिलचस्प बात यह है कि देश के एक सबसे बड़े अखबार का मोतिहारी का ब्यूरोचीफ अपने फेसबुक पेज पर इस प्रोफेसर को आतंकवादी लिखते आ रहा था, और इस हमले और हिंसा में भी वह शामिल था, और उसे भी पुलिस ने गिरफ्तार किया है.

उधर महाराष्ट्र के औरंगाबाद में म्युनिसिपल कार्पोरेशन में जब अटलजी को श्रद्धांजलि देने का प्रस्ताव कुछ पार्षदों ने रखा तो एक मुस्लिम पार्टी के एक पार्षद ने इसका विरोध किया. इस पर प्रस्ताव रखने वाले पार्षदों ने एकजुट होकर जिस तरह सदन के भीतर ही उस मुस्लिम पार्षद को घेरकर मारा, टेबिलों पर चढ़कर लातों से मारा, जमीन पर गिराकर मारा, उसका वीडियो दिल दहलाने वाला है.

अब नवजोत सिंह सिद्धू को गद्दार कहकर उस पर हमला करने वाले लोगों को, और अटल बिहारी वाजपेयी के हिमायती बनकर उनके आलोचकों पर या उनसे असहमति रखने वालों पर हमला करने वाले लोगों को कुछ पढ़ाई-लिखाई की जरूरत है. अटलजी ने अपने प्रधानमंत्री रहते हुए देश के करोड़ों नफरतजीवियों की मर्जी के खिलाफ, अपनी पार्टी के बहुत से लोगों के मर्जी के खिलाफ बस लेकर पाकिस्तान तक जाना तय किया था, और वे गए थे. उनकी बस में बैठी हुई तस्वीरें ऐतिहासिक हैं, और बाद का इतिहास भी सरल हिन्दी भाषा में भी दर्ज है ताकि नफरतजीवी उसे ठीक से पढ़ सकें. इस दिल्ली-लाहौर बस को सदा-ए-सरहद नाम दिया गया था, और ऐसी पहली बस लेकर 19 फरवरी 1999 को अटलजी पाकिस्तान गए थे, और जब कारगिल की जंग चल रही थी तब भी यह बस जारी रखी गई थी.

लोगों को यह भी याद रखने की जरूरत है कि पाकिस्तान के एक फौजी तानाशाह जनरल परवेज मुशर्रफ ने बाद में खुलासे से यह मंजूर किया था कि किस तरह उन्होंने हिन्दुस्तान के कारगिल पर हमला किया था, कब्जा किया था, और इस जंग की शुरुआत की थी. और ऐसी जंग के चलते हुए भी अटलजी ने आम हिन्दुस्तानियों और पाकिस्तानियों के आने-जाने की इस बस को बंद करने का सोचा नहीं था.

जिन लोगों के लिए आज नफरत को उगलना रोजाना का एक जरूरी शगल है, उन लोगों को कुछ ताजा बातें भी याद रखनी चाहिए कि पिछले आम चुनाव में पूरे वक्त पाकिस्तान के खिलाफ बड़े-बड़े फतवे जारी करने वाले, और एक के बदले दस सिर काटकर लाने की मुनादी करने वाले नरेन्द्र मोदी ने भी पाकिस्तान के प्रधानमंत्री को अपने शपथग्रहण में बुलाया था.

और इतना ही नहीं, दूसरे देश से हिन्दुस्तान लौटते हुए मोदी ने अचानक यह तय किया था कि वे पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के जन्मदिन पर उनके घर जाकर उन्हें मुबारकबाद देंगे, और वे अचानक पाकिस्तान में उतरे, नवाज शरीफ के घर गए, उनके परिवार से मिले, परिवार में होने जा रही एक शादी की मिठाई खाई, परिवार को तोहफे दिए, और सबको हक्का-बक्का छोड़कर हिन्दुस्तान लौटे.

दिलचस्प बात यह है कि नवाज शरीफ का जन्मदिन 25 दिसंबर को था, और उसी दिन अटल बिहारी वाजपेयी का भी जन्मदिन था और उसी दिन पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना का भी जन्मदिन था जो कि पाकिस्तान में राष्ट्रीय दिवस के रूप में मनाया जाता है. और उस दिन जिन्ना की 140वीं सालगिरह थी और पूरे पाकिस्तान में वह दिन बड़ा खास मनाया जा रहा था. इसके बाद भी मोदी और शरीफ परिवारों के बीच तोहफों और मिठाईयों का लेन-देन हुआ, एक-दूसरे की मां के लिए शॉल भेजी गईं और दूसरे तोहफे भी.

यह सब उस वक्त हुआ जब कुछ महीने पहले तक मोदी एक शहीद हिन्दुस्तानी सैनिक के बदले दस पाकिस्तानी सैनिकों के सिर काटकर लाने की कसम मंच और माईक से खा रहे थे.

आज नवजोत सिंह सिद्धू के खिलाफ जहर उगलने वाले और उन्हें गद्दार कहने वाले लोगों को पिछले कुछ बरसों का अटल बिहारी वाजपेयी और नरेन्द्र मोदी के भारत के प्रधानमंत्री रहते हुए किए गए इन कामों को याद रखना चाहिए. नफरतजीवियों को यह भी याद रखना चाहिए कि चाहे पाकिस्तान हो या कि कोई और पड़ोसी देश, उससे नफरत और दुश्मनी रखने का मतलब जंग की तैयारियों पर इतना फिजूलखर्च करना होता है कि अपने देश के सबसे गरीब बच्चों के मुंह का निवाला छिनता है और अपने मरीजों से दवाईयां छिनती हैं और अपनी स्कूलों से दोपहर का खाना छिनता है.

इस कीमत पर नफरत को पालना और बढ़ाना जिन लोगों को ठीक लगता है, उनको यह भी नहीं दिखता कि पाकिस्तान में पहली बार एक ऐसा फौजी जनरल, कमर बाजवा, आया है जो खुलकर भारत के साथ अमन की वकालत करता है.

एक अखबारनवीस ने आज ही फेसबुक पर एक पोस्ट में यह याद दिलाया है कि अफ्रीका के कांगो में भारत के पूर्व सेनाध्यक्ष मेजर जनरल विक्रम सिंह के मातहत 2012 से 2014 के बीच यूएन शांति सेना में कमर बाजवा ने काम किया था, और उन दोनों के बीच अच्छे रिश्ते थे. उनकी काबिलीयत को देखकर विक्रम सिंह ने सार्वजनिक रूप से उनकी तारीफ की थी. कांगो मिशन के बाद 2016 में कमर बाजवा को पाकिस्तानी सेना का चीफ ऑफ स्टाफ बना दिया गया था.

आज पाकिस्तान में सेना का सबसे बड़ा अफसर अगर पाकिस्तानी सेना की पुरानी साख को तोड़ते हुए एक से अधिक बार सार्वजनिक रूप से हिन्दुस्तान के साथ अमन के रिश्तों की वकालत करता है, तो हिन्दुस्तान को भी इस बात को समझना चाहिए, खासकर हिन्दुस्तान के उन नफरतजीवियों को जिनको अटल बिहारी वाजपेयी और नरेन्द्र मोदी की असाधारण पहल को अनदेखा करने में मजा आता है.

कहने के लिए तो ये लोग, ऐसे लोग, वाजपेयी और मोदी के नाम पर मरने-मारने की बात करते हैं, हिंसा पर उतर आते हैं, लेकिन जिनको भारत के इन दोनों प्रधानमंत्रियों की पहल भी याद नहीं है, या इसे वे कोशिश करके भुलाकर रखते हैं.
* लेखक वरिष्ठ पत्रकार और शाम के अखबार छत्तीसगढ़ के संपादक हैं.

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