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पानी किसान बचाये और आप?

देविंदर शर्मा
कुछ साल पहले की बात है, मैं जल संकट और जलवायु परिवर्तन पर एक कॉन्फ्रेंस में शामिल हुआ था. भारत में पांच सितारा होटलों की चेन चलाने वाली एक बड़ी भारतीय कंपनी के उच्च अधिकारी समझा रहे थे कि उनकी कंपनी सामाजिक सरोकारों को लेकर किस कदर जागरुक है. उन्होंने बताया कि उनकी कंपनी ने गुड़गांव में एक अभियान शुरू किया है जिसमें घरों में काम करने वाली मेड को सिखाया जाता है कि किस तरह बर्तन धोते समय पानी की बचत की जा सकती है. इस पर जमकर तालियां बजीं. आखिर कंपनी घरों में काम करने वाली बाइयों के भीतर सामाजिक जिम्मेदारी की भावना जगा रही थी! अगर आप एक बाल्टी पानी में से एक मग पानी भी बचा लेते हैं तो अंदाजा लगाइए कि गुड़गांव जैसा शहर कितना पानी बचा लेगा.

जब मेरी बोलने की बारी आई तो मैंने उस कंपनी के उच्च अधिकारी की इस बात के लिए तारीफ की कि उन्होंने यह बात बहुत अच्छी तरह से समझाई कि सभी लोग पानी बचाएं और यह कितना जरूरी है. फिर मैंने उन सज्ज्न से पूछा, “जब पानी बचाना इतना महत्वपूर्ण है तो फाइव स्टार होटलों के बाथरूम में बाथटब क्यों नहीं हटा देते? इन अमीर और रसूखदार लोगों से बाथटबों के बिना काम चलाने को क्यों नहीं कहा जाता? किसी मेड को एक मग पानी की बचत सिखाने का क्या फायदा है, जब हम सैकड़ों लीटर पानी महज इसलिए नाली में बहने देते हैं क्योंकि कुछ लोग उसके लिए पैसा खर्च करने की क्षमता रखते हैं?”

एक आम बाथटब, जो 30 इंच चौड़ा और 60 इंच लंबा हो, उसमें 300 लीटर तक पानी आता है. अगर एक लग्जरी होटल में औसतन 100 कमरे हों तो आप अंदाजा लगा सकते हैं कि हर रोज महज नहाने के लिए 30 हजार लीटर पानी बहा दिया जाता है. अमीरों को इस शाहखर्ची की आजादी देकर हम गरीबों को बलिदान करने को मजबूर नहीं कर सकते.

कुछ महीनों पहले मैंने अलमाटी, कजाकिस्तान में आयोजित एक यूरोएशियन कॉन्फ्रेंस में भी यही सवाल उठाया था. जब भी मैं किसी बहस को सुनता हूं या किसी राष्ट्रीय या अंतरराष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस में विश्वव्यापी जल संकट पर बात कर रहा होता हूं, तो हर बार मुझे बताया जाता है कि किस तरह पानी की सबसे ज्यादा खपत कृषि सेक्टर में होती है. मोटे तौर पर खेती में 70 फीसदी पानी का इस्तेमाल होता है, इसलिए सबका फोकस खेती में पानी का इस्तेमाल कम करने पर रहता है.

ऐसे समय में जब ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं, नदियां मर रही हैं और भूजल इतनी तेजी से खींचा जा रहा है कि भूमिगत भंडार खाली होते जा रहे हैं, जल संकट तमाम संघर्षों की वजह बन रहा है. पानी के लिए आदमी आदमी से झगड़ रहा है, देशों की एक दूसरे से ठन गई है. भारत में ही अगले 15 बरसों में देश का अनाज का कटोरा कहे जाने वाले पंजाब और हरियाणा पूरी तरह से सूख जाने वाले हैं.

सेंट्रल ग्राउंड वॉटर बोर्ड की 2007 की रिपोर्ट में कहा गया है कि 2025 तक सिंचाई के लिए भूजल बचेगा ही नहीं. उदाहरण के लिए पंजाब पहले ही से भूमिगत जल का हद से ज्यादा दोहन कर रहा है. एक आंकड़े के मुताबिक, हर साल प्रकृति भूमिगत जल के भंडार को जितना रीचार्ज कर पाती है पंजाब हर साल उससे 45 फीसदी ज्यादा पानी का दोहन कर रहा है.

पानी का संकट
पानी का संकट
अमरीकन अंतरिक्ष एजेंसी नासा की ताजा रिपोर्ट के बाद यह अध्ययन और अधिक अहम हो जाता है. नासा ने अपने जुड़वां उपग्रह ग्रेस की मदद से जो आंकड़े जुटाए हैँ उनसे पता चलता है कि पंजाब, हरियाण और राजस्थान पिछले छह साल में 109 क्यूबिक किलोमीटर पानी इस्तेमाल कर चुके हैं. देश के उत्तर पश्चिमी इलाके के 38,061 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में धान उगाया जाता है, इसकी सिंचाई की वजह से हर साल जल स्तर लगभग एक फुट और नीचे चला जा रहा है.

नासा ने गंगा के इलाके में एक और अध्ययन किया था, इससे पता चलता है कि 1990 के दशक के मुकाबले इस दशक में भूजल का दोहन 70 फीसदी ज्यादा हुआ है. साल दर साल हालात और खराब हुए हैं. 2014 और 2015 के खराब मानसून ने स्थिति और बिगाड़ दी है. मैं हमेशा से कहता आ रहा हूं कि मौजूदा सूखे (और बाढ़) के लिए खराब मानसून सिर्फ 30 फीसदी जिम्मेदार है बाकी 70 फीसदी जिम्मेदारी इंसानी गतिविधियों की है. बुनियादी तौर पर हम सूखे जैसे हालात बढ़ाने के लिए जिम्मेदार हैं क्योंकि पिछले कई बरसों से हम खुशीखुशी पानी का अंधाधुंध दोहन कर रहे हैं. पर क्या हमने इससे कोई सबक सीखा? क्या हम हालात को सुधारने के लिए कुछ परेशानियां उठाकर जरूरी कदम उठाने के इच्छुक हैं? उत्तर है, नहीं.

इसलिए संसद में दिए गए सरकार के एक जवाब को पढ़कर बड़ी खुशी हुई. हाल ही में, सरकार ने संसद में यह जानकारी दी कि सरकार फसल विकास कार्यक्रमों के जरिए विभिन्न फसल प्रणालियों को बढ़ावा देने पर जोर दे रही है. ये फसल पद्धतियां इलाके की कृषि-जलवायु स्थिति, भूमि और जल संसाधानों की उपलब्धता, बाजार, किसानों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति वगैरह पर निर्भर करती हैं. पानी की बचत करने वाले उपायों जैसे स्प्रिंकलर, ड्रिप और रेनगन इत्यादि इस्तेमाल करने पर प्रोत्साहन राशि दी जाती है. पर सरकार की गतिविधियां यहीं रुक जाती हैं.

पानी की उपलब्धता और उपभोग पर आधारित फसल पद्धतियों के पुनर्निर्धारण के लिए कृषि-जलवायु क्षेत्र का खाका फिर से तैयार करना पड़ता है. मैं काफी समय से फसल पद्धति बदलने के लिए अनुरोध करता रहा हूं. एक लेख में मैंने लिखा था, “इसका कोई मतलब नहीं है कि सूखे इलाकों में अधिक पानी वाली फसलें लगाई जाएं. ऐसी फसलें जमीन को बंजर कर देंगी.”

मुझे राजस्थान के अर्द्धशुष्क वातावरण में बहुत ज्यादा पानी खींचने वाली गन्ने की फसल लगाने का औचित्य समझ नहीं आता. इसी तरह बुंदेलखंड के सूखे इलाकों में मैंथा उगाने की क्या जरूरत है जिसमें से एक किलो तेल निकालने के लिए 1.25 लाख लीटर पानी चाहिए. हमारा सामान्य बोध बताता है कि सूखे इलाकों में ऐसी फसलें उगाई जानी चाहिए जिन्हें कम पानी की जरूरत होती हो. आप यह जानकर हैरान रह जाएंगे कि हम सूखे इलाकों में संकर फसलों की खेती का प्रचार कर रहे हैं. संकर चावल, संकर मक्का, संकर कपास और संकर सब्जियों को उगाने के लिए अधिक उपज देने वाली प्रजातियों की तुलना में डेढ़ से दो गुना ज्यादा पानी की जरूरत पड़ती है.

ऊपर से सरकार इस समय जीएम फसलों को बढ़ावा देने में व्यस्त है. पहले इसने बीटी कपास को बढ़ावा दिया जिसे संकर फसलों की तुलना में भी 10 से 20 फीसदी ज्यादा पानी की जरूरत होती है. जेनेटिक इंजीनियरिंग अप्रूवल कमिटी जीएम सरसों को वाणिज्यिक स्तर पर उगाने के प्रस्ताव के पास होने का इंतजार कर रही है.

मुझे निश्चित रूप से पता नहीं है कि जीएम सरसों को कितने पानी की जरूरत पड़ेगी लेकिन बीटी कपास के अपने अनुभव के आधार पर मैं कह सकता हूं कि अगर इसे मंजूरी मिलती है तो जीएम सरसों को भी कम से कम 20 फीसदी ज्यादा पानी की जरूरत पड़ेगी. क्या हमें अपने भूमिगत जल का इसी तरह से इस्तेमाल करना चाहिए? अगर सरकार अपने सुझावों को लागू करने के लिए कदम नहीं उठा सकती तो उसे फिर बाजार की शक्तियों को दोष भी नहीं देना चाहिए. खतरे की घंटी बहुत देर से बज रही है.

अब केवल किसानों से ही बलिदान मांगने से काम नहीं चलेगा, अमीर वर्ग को भी मिसाल पेश करनी होगी. मेरे ख्याल से लग्जरी होटलों में बाथटब पर प्रतिबंध लगाना अच्छी शुरूआत होगी. इससे न केवल किसानों को प्रोत्साहन मिलेगा बल्कि शहरों में रहने वाले भी पानी की बरबादी रोकने की सोचेंगे.

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