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एससी एसटी एक्ट में केवल 25% मामलों में सजा

नई दिल्ली | संवाददाता: देश भर में एससी एसटी एक्ट के तहत औसतन 25 फीसदी से भी कम मामलों में सज़ा हो पाती है. दलित आंदोलन और एससी एसटी एक्ट के बीच एनसीआरबी के आंकड़े बताते हैं कि इन कानूनों के तहत अधिकांश मामलों में आरोपी छूट जाते हैं.

सरकार के आंकड़े बताते हैं कि आदिवासियों से जुड़े मामलों में तो यह आंकड़ा 21 प्रतिशत से भी कम है. आरोप पत्रित मामलों के आंकड़े देखें तो पता चलता है कि यह आंकड़ा 70 से 80 फीसदी के बीच में है.

भारत सरकार के आंकड़ों के अनुसार अनुसार अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 तथा अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के प्रति अपराध संबंधी कानून की विभिन्न धाराओं में हर साल लगभग 40 से 47 हजार मामले दर्ज किये जाते हैं.

आंकड़ों के अनुसार अनुसूचित जाति से जुड़े 33,593 मामले 2012 में, 39,346 मामले 2013 में, 40,300 मामले 2014 में, 38,564 मामले 2015 में और 40,774 मामले 2016 में दर्ज किये गये. इनमें से 70.6 से 78.3 प्रतिशत तक आरोप पत्र पेश किये गये. लेकिन इन मामलों में सज़ा का प्रतिशत बहुत कम है.

आंकड़ों के अनुसार 2012 से 2016 तक क्रमशः 24.1%, 23.9%, 28.4%, 27.2% और 25.8 प्रतिशत मामलों में ही सज़ा हो पाई है.

इसी तरह अनुसूचित जनजाति से जुड़े मामलों को देखें तो 2012 में 5,920, 2013 में 6,768, 2014 में 6,826, 2015 में 6,275 और 2016 में 6,564 मामले दर्ज किये गये थे. इनमें से जितने मामलों में सज़ा मिली है, उनके आंकड़े चौंकाने वाले हैं. सरकार के आंकड़े बताते हैं कि 2012 में 22.6%, 2013 में 16.5%, 2014 में 30.9%, 2015 में 19.8% और 2016 में महज 20.8% मामलों में ही आरोपियों को सज़ा मिल पायी. यानी 2016 के आंकड़े देखें तो लगभग 79% मामलों में आरोपियों को बाइज्जत बरी कर दिया गया.

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