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SC ST एक्ट के खिलाफ देश बंद

नई दिल्ली | संवाददाता: देश भर में SC ST एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ बंद का असर नजर आ रहा है. उत्तरप्रदेश और हरियाणा समेत कई राज्यों में तोड़-फोड़ की खबरें सामने आ रही हैं. एससी/एसटी एक्ट में बदलाव के खिलाफ आयोजित इस बदलाव में कहीं-कहीं पथराव की भी खबरें हैं. हालांकि छत्तीसगढ़ में सर्व आदिवासी समाज ने इस मामले पर फिर से विचार की बात कही है.

पुलिस के अनुसार मेरठ में कंकरखेड़ा थाने की शोभापुर पुलिस चौकी को प्रदर्शनकारियों ने आग लगा दी है. इसके अलावा कई वाहनों में भी आगजनी की गई है. प्रदर्शनकारियों को रोकने गई पुलिस पर भी पथराव की खबर है. कुछ जगहों पर पुलिस द्वारा भी बल प्रयोग की खबर है.

पंजाब, हरियाणा, बिहार, उत्तरप्रदेश में कई जगहों पर सड़कों पर यातायात रुका हुआ है. कई जगहों पर रेल को भी रोकने की कोशिश की गई है. झारखंड के पलामू में भी भारी झड़प और रेल रोकने की खबर है.

इस बीच केंद्र सरकार द्वारा इस पूरे मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लेकर पुनर्विचार याचिका दायर किये जाने की खबर है. सरकारी तर्क ये है कि कोर्ट के फैसले से एससी और एसटी ऐक्ट 1989 के प्रावधान कमजोर हो जाएंगे. याचिका में सरकार यह भी तर्क दे सकती है कि कोर्ट के मौजूदा आदेश से लोगों में कानून का भय खत्म होगा और इस मामले में और ज्यादा कानून का उल्लंघन हो सकता है.

इधर छत्तीसगढ़ में सर्व आदिवासी समाज के अध्यक्ष बीपीएस नेताम ने कहा है कि एट्रोसिटीज एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट कै फैसले को लेकर चल रहा हंगामा ऐसा है कि मीडिया ने खबर फैला दी कौवा आपका कान लेकर जा रहा है तो अपना कान छूने की जगह सब लोग कौवे के पीछे दौड़ पड़े हैं. छत्तीसगढ़ सर्व आदिवासी समाज के अध्यक्ष ने शनिवार को आदिवासी युवाओं की एक चर्चा में कहा कि विरोध प्रदर्शन से पहले एक एक व्यक्ति को अपनी समझ से एक लिस्ट बनानी चाहिए कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले में कौन सी लाइन हटाने और एक्ट को कठोर/ प्रभावी बनाने के लिए कौन से नए प्रावधान जोड़ने चाहिए?? ठोस कार्यनीति बनाने की ओर बढ़ें. जोश में हवाई बातें/काम करने से समाज का हित नहीं होता.

छत्तीसगढ़ सर्व आदिवासी समाज के विधिक सलाहकार ने स्पष्ट किया है कि इस फैसले से एक्ट के क्रियान्वयन को मजबूती मिलेगी. आजकल एफआईआर दर्ज कराने को कई चक्कर लगाने पड़ रहे थे लेकिन इस फैसले से डीएसपी की मजबूरी होगी कि वह अधिकतम 7 दिन में लिख कर दे कि एफआईआर दर्ज कर रहे हैं या नहीं, और क्यों. देरी की वजह दैनिक डायरी में लिखना पड़ेगा और कोताही करने पर विभागीय कार्र्वाई भी होगी और अवमानना का केस भी बनेगा. जिले के एसपी को भी इसी तरह गिरफ्तारी करने या नहीं करने की वजह लिखित में बतानी पड़ेगी. इससे केस में अभियुक्त को सजा मिलने की संभावना बढ़ेगी.

समाज के विधिक सलाहकार ने कहा कि एक्ट में कहीं नही लिखा है कि आटोमैटिक अरेस्ट होगा, एैसा हो भी नहीं रहा था और बिना पर्याप्त वजह (पुलिस के मुताबिक गिरफ्तारी की मजबूरी के कारण) के एैसा करना असंवैधानिक भी है. समाज का जोर इस बात पर होना चाहिए कि हर एक अभियुक्त को सजा सुनिश्चित हो न कि सिर्फ गिरफ्तारी कराके मन को संतोष दिया जाए. किसी भी अभियुक्त को गिरफ्तार किए बिना उस केस की जांच या मुकद्दमा चलाने में क्या बाधा होगी यह दर्ज करना पुलिस और मजिस्ट्रेट का फर्ज है, इसी बात को सुप्रीम कोर्ट ने फिर से स्पष्ट भर किया है. एंटीसिपेटरी बेल पर सुप्रीम कोर्ट ने अपने क्षेत्राधिकार से बाहर जाकर टिप्पणी की है लेकिन वह संविधान के अध्यापकों की चिंता का विषय है, समाज की चिंता का विषय सिर्फ न्याय हो, तकनीकी बिंदु नहीं.

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