क्यों हमें 6 दिसंबर याद करना चाहिए
बाबरी मस्जिद के विध्वंस के बाद जो गतिविधियां शुरू हुईं, वे अब तक चल रही हैं यह हिंदू ब्रिगेड के लिए किसी आह्वान से कम नहीं है. 24 नवंबर, 2017 को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने घोषणा की कि राम मंदिर आयोध्या में ही बनेगा. उन्होंने कहा, ‘यह एक कटु सत्य है और यह बदलने नहीं जा रहा. इसे सच्चाई में बदलने का वक्त नजदीक है और हमें इस काम को पूरा करने के लिए कोशिशें करनी चाहिए.’
यह बयान हैरान करने वाला नहीं है. न ही स्थान जहां यह बयान दिया गया. विश्व हिंदू परिषद से कर्नाटक के उडुपी में धर्म संसद आयोजित किया था और वहीं भागवत ने यह बयान दिया. बयान देने के लिए चुना गया समय महत्वपूर्ण है. 6 दिसंबर को बाबरी मस्जिद विध्वंश के 25 साल पूरे हो रहे हैं. इसके कुछ दिनों पहले भागवत ने यह बयान दिया. कुछ ही दिनों में उच्चतम न्यायाल में इस मामले पर इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ सुनवाई शुरू होने वाली है. अदालत ने आदेश दिया था कि 2.77 एकड़ की विवादित संपत्ति का सुन्नी वक्फ बोर्ड, राम लला और निर्मोही अखाड़ा के बीच तीन हिस्से में बंटवारा होना चाहिए.
गुजरात चुनावों के ठीक पहले राम जन्मभूमि का मुद्दा उठाकर संघ प्रमुख ने भाजपा को यह संदेश दे दिया है कि संघ इस मुद्दे को नहीं भूलने वाला और इसी मुद्दे पर सवार होकर भाजपा का प्रसार हुआ है. 2014 में सत्ता में आने के बाद भाजपा ने कभी इस मुद्दे को चुनावों में इस्तेमाल नहीं किया. लेकिन अगर विकास की रणनीति नहीं काम करती है तो फिर भाजपा इस मुद्दे पर आएगी. भागवत के बयान से यह भी स्पष्ट है कि राम मंदिर को लेकर भाजपा और संघ में कोई मतभेद नहीं है. 6 दिसंबर, 1992 को पुलिस, नेताओं और मीडिया के सामने हजारों कारसेवकों ने बाबरी मस्जिद को ढहा दिया था. उस वक्त उनका दावा था कि वे ऐतिहासिक गलती को सुधार रहे हैं. लेकिन उन लोगों ने आजाद भारत के समकालीन इतिहास को ही बदल डाला.
उस घटना के बाद कई घटनाएं हुईं जिसकी वजह उस विध्वंश को माना जाएगा. उस वक्त निजी समाचार चैनल नहीं थे. लेकिन बीबीसी ने लाइव तस्वीरें प्रसारित की थीं. इससे पूरे देश में मुश्किलों का संदेह पैदा हुआ. लेकिन उस वक्त यह नहीं महसूस किया गया था कि इतिहास की गलती को ठीक करने के लिए किया गया यह काम दशकों तक नफरत और इस पर आधारित एक विभत्स तस्वीर की पटकथा लिख देगा.
मुंबई के लिए विध्वंश के बाद का वक्त बहुत बुरा था. यहां के बारे में यह धारणा थी कि यहां हिंदू-मुस्लमान मिलकर रहते हैं. लेकिन इस शहर ने सबसे अधिक झेला. 6 दिसंबर के बाद यहां दंगे हुए. लेकिन विध्वंश के 25 साल बाद भी इसे अंजाम देने वाले और इससे जुड़े षडयंत्रकारियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की जा सकी है. कई सरकारें आई और गईं लेकिन किसी में भी इतनी राजनैतिक इच्छाशक्ति नहीं थी कि कसूरवारों के खिलाफ कार्रवाई सुनिश्चित करे. इस वजह से पिछले 25 साल में सांप्रदायिकता का बीज लगातार गहराता गया.
इन 25 सालों में सिर्फ भाजपा का विस्तार नहीं हुआ बल्कि सांप्रदायिकता भी बढ़ी और ऐसी स्थिति बन गई कि मुस्लिम समुदाय के लोग अपनी पहचान से जुड़ी किसी चीज के प्रदर्शन से डरने लगे. पिछले हफ्ते ही पश्चिम उत्तर प्रदेश में नमाज की टोपी पहनकर जा रहे तीन मुस्लिम युवकों को पीटा गया. उन पर हमला करने वालों ने कहा, ‘तुम टोपी पहनते हो? हम बताते हैं कि टोपी कैसे पहनी जाती है.’ हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि कुछ समय पहले 16 साल के जुनैद खान की हत्या सिर्फ इसलिए कर दी गई थी कि वह मुस्लिम था. विध्वंश का उत्सव मनाने से लेकर अल्पसंख्यकों के लिए दमनकारी माहौल बनाने तक की यात्रा बेहद खतरनाक है.
ऐसे समय में इस बारे में विचार करना जरूरी है जब सांस्कृतिक स्मृति, परंपरा और ऐतिहासिक तथ्यों को मिटाने की कोशिश की जा रही हो. इतिहासकार हरबंश मुखिया ठीक ही कहते हैं कि इस सोच को स्थापित करने वाली प्रक्रिया की बाबरी मस्जिद की जगह राम मंदिर था, पारंपरिक और ऐतिहासिक प्रमाणों के बीच धुंधली लकीर खींचने वाली है. राजनीतिक विज्ञानी जोया हसन कहते हैं कि उस घटना के बाद से हिंदू बहुसंख्यकों की प्रधानता और अल्पसंख्कों के प्रति भेदभावपूर्ण और उन्हें हीन समझने का रवैया बढ़ा. मुंबई में एक न्यायिक समिति ने जिस पार्टी को हिंसा के लिए जिम्मेदार ठहराया था, वह सत्ता में है और उस हिंसा में शामिल किसी व्यक्ति को सजा नहीं मिली. 6 दिसंबर के बाद की स्थितियां बरकरार हैं.
1960 से प्रकाशित इकॉनामिक एंड पॉलिटिकल विकली के नये अंक का संपादकीय