नोटबंदी से बढ़ी ईमानदारी-राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद
नई दिल्ली | संवाददाता: नोटबंदी के बाद से देश में ईमानदारी की प्रवृत्ति को बढ़ावा मिला है. ईमानदारी की भावना दिन-प्रतिदिन और मजबूत हो, इसके लिए हमें लगातार प्रयास करते रहना होगा. राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने स्वतंत्रता की 70वीं वर्षगांठ पर राष्ट्र के नाम संदेश में यह विचार व्यक्ति किये.
राष्ट्रपति ने आज़ादी की दुश्वारियों को याद करते हुये कहा कि हमारे लिए यह समझना बहुत जरूरी है कि स्वतंत्र भारत का उनका सपना, हमारे गांव, गरीब और देश के समग्र विकास का सपना था. आजादी के लिए हम उन सभी अनगिनत स्वतंत्रता सेनानियों के ऋणी हैं जिन्होंने इसके लिए कुर्बानियां दी थीं. कित्तूर की रानी चेन्नम्मा, झांसी की रानी लक्ष्मीबाई, भारत छोड़ो आंदोलन की शहीद मातंगिनी हाज़रा जैसी वीरांगनाओं के अनेक उदाहरण हैं. मातंगिनी हाज़रा लगभग 70 वर्ष की बुजुर्ग महिला थीं. बंगाल के तामलुक में एक शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व करते समय ब्रिटिश पुलिस ने उन्हें गोली मार दी थी. ‘वंदे मातरम्’ उनके होठों से निकले आखिरी शब्द थे और भारत की आज़ादी, उनके दिल में बसी आखिरी इच्छा.
राष्ट्रपति ने कहा कि देश के लिए जान की बाजी लगा देने वाले सरदार भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खां, तथा बिरसा मुंडा जैसे हजारों स्वतंत्रता सेनानियों को हम कभी नहीं भुला सकते. उनका उद्देश्य सिर्फ राजनीतिक स्वतंत्रता प्राप्त करना नहीं था. महात्मा गांधी ने समाज और राष्ट्र के चरित्र निर्माण पर बल दिया था. गांधीजी ने जिन सिद्धांतों को अपनाने की बात कही थी, वे हमारे लिए आज भी प्रासंगिक हैं. राष्ट्रव्यापी सुधार और संघर्ष के इस अभियान में गांधीजी अकेले नहीं थे. नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने जब ‘तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हे आजादी दूंगा’ का आह्वान किया तो हजारों-लाखों भारतवासियों ने उनके नेतृत्व में आजादी की लड़ाई लड़ते हुए अपना सब कुछ न्योछावर कर दिया.
देश के पहले राष्ट्रपति पंडित जवारहरलाल नेहरु को याद करते हुये राष्ट्रपति ने कहा कि नेहरूजी ने हमें सिखाया कि भारत की सदियों पुरानी विरासतें और परंपराएं, जिन पर हमें आज भी गर्व है, उनका टेक्नॉलॉजी के साथ तालमेल संभव है, और वे परंपराएं आधुनिक समाज के निर्माण के प्रयासों में सहायक हो सकती हैं. सरदार पटेल ने हमें राष्ट्रीय एकता और अखंडता के महत्व के प्रति जागरूक किया; साथ ही उन्होंने यह भी समझाया कि अनुशासन-युक्त राष्ट्रीय चरित्र क्या होता है. बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर ने संविधान के दायरे मे रहकर काम करने तथा ‘कानून के शासन’ की अनिवार्यता के विषय में समझाया. साथ ही, उन्होंने शिक्षा के बुनियादी महत्व पर भी जोर दिया.
मोदी सरकार की उपलब्धियों का जिक्र करते हुये राष्ट्रपति ने कहा कि सरकार के स्वच्छ भारत अभियान, संचार ढांचा को मजबूत करना, बेटी बचाओ-बेटी बढ़ाओ, भ्रष्टाचार की समाप्ति, जीएसटी जैसी चीजों को सरकार लागू कर रही है लेकिन उनका क्रियान्वयन हम सब की जिम्मेवारी है. उन्होंने कहा कि सन् 2022 में हमारा देश अपनी आजादी के 75 साल पूरे करेगा. तब तक ‘न्यू इंडिया‘ के लिए कुछ महत्वपूर्ण लक्ष्यों को प्राप्त करने का हमारा ‘राष्ट्रीय संकल्प’ है. ‘न्यू इंडिया’ हमारे डीएनए में रचे-बसे समग्र मानवतावादी मूल्यों को समाहित करे. ये मानवीय मूल्य हमारे देश की संस्कृति की पहचान हैं. यह ‘न्यू इंडिया’ एक ऐसा समाज होना चाहिए, जो भविष्य की ओर तेजी से बढ़ने के साथ-साथ, संवेदनशील भी हो.
नोटबंदी का जिक्र करते हुये राष्ट्रपति ने कहा कि नोटबंदी के समय जिस तरह आपने असीम धैर्य का परिचय देते हुए कालेधन और भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई का समर्थन किया, वह एक जिम्मेदार और संवेदनशील समाज का ही प्रतिबिंब है. नोटबंदी के बाद से देश में ईमानदारी की प्रवृत्ति को बढ़ावा मिला है. ईमानदारी की भावना दिन-प्रतिदिन और मजबूत हो, इसके लिए हमें लगातार प्रयास करते रहना होगा.
राष्ट्रपति ने सैनिकों, पुलिस और अर्धसैनिक बल के जवानों, सेवाभावी नागरिक और किसानों के निःस्वार्थ सेवा भाव को आत्मसात करने की जरुरत भी जताई. कोविंद ने कहा कि प्रधान मंत्री की एक अपील पर, एक करोड़ से ज्यादा परिवारों ने अपनी इच्छा से एल.पी.जी. पर मिलने वाली सब्सिडी छोड़ दी. ऐसा उन परिवारों ने इसलिए किया ताकि एक गरीब के परिवार की रसोई तक गैस सिलेंडर पहुंच सके और उस परिवार की बहू-बेटियां मिट्टी के चूल्हे के धुँए से होने वाले आंख और फेफड़े की बीमारियों से बच सकें. मैं सब्सिडी का त्याग करने वाले ऐसे परिवारों को नमन करता हूं. उन्होंने जो किया, वह किसी कानून या सरकारी आदेश का पालन नहीं था. उनके इस फैसले के पीछे उनके अंतर्मन की आवाज थी.