मेरी पहली कोयला मंत्री ममता बनर्जी : सादगी के दूसरी तरफ
प्रकाश चन्द्र पारख | अुनवादः दिनेश कुमार माली
कोयला घोटाले पर कोयला मंत्रालय के पूर्व सचिव प्रकाश चन्द्र पारख की किताब क्रूसेडर ऑर कान्सपिरेटर यूं तो उनके जीवन और भारतीय लोकतंत्र के कई पहलुओं को सामने लाता है. लेकिन देश के बहुचर्चित कोल घोटाले को लेकर उनकी लेखनी ने पहली बार कई राज भी सामने लाये. यहां हम उनकी किताब के कुछ अंश प्रस्तुत कर रहे हैं. हिंदी में शिखर तक संघर्ष शीर्षक से प्रकाश्य इस किताब का अनुवाद दिनेश कुमार माली ने किया है.
मुझे अट्ठावन साल पूरे होने जा रहे थे, मात्र दो साल बचे थे नौकरी पूरी होने में. इन दो सालों में क्या कुछ हो जाएगा, यह किसी त्रिकालदर्शी भविष्यवक्ता के सिवाय और कौन जान सकता है? क्या इन दो सालों की नौकरी पिछली चौंतीस साल की नौकरी को टक्कर दे देगी या मुझे ऐसे जाल में फँसा देगी, जिसकी मैंने कभी सपने में कल्पना नहीँ की होगी? मैं सत्य के रास्ते पर लगातार चलता जा रहा था, इधर-उधर दाएं-बाएं देखे बिना. हो सकता है मेरी जीवनी आने वाली पीढ़ी का मार्ग प्रशस्त करेगी कि कितने भी दबाव झेलने के बावजूद भी मनुष्य को अपनी आत्मा की आवाज सुनकर अपने पथ से विचलित नहीँ होना चाहिए.
दूसरे बैचमेटों के साथ मेरा नाम भारत सरकार में सचिव की पोस्ट के लिए पैनल में चयनित हुआ, मैं जानता था कि सरकार में सीनियर पोस्टों के लिए लॉबी की जरूरत होती है.राज्य सरकार में मैं मुख्य सचिव की रैंक में आ गया था और विशेष मुख्य सचिव और मुख्य भू-प्रशासन आयुक्त के पद पर काम कर रहा था. यह राज्य सरकार में दूसरी उच्चतम पोस्ट थी और साधारण मुख्य भू प्रशासन आयुक्त ही अगले मुख्य सचिव बनते हैं.मैं अपने आप में पूर्णतया संतुष्ट था.
यह भी मैं जानता था कि मेरे इनफ्लेक्सिबल नेचर के कारण से मेरे लिए राज्य-सरकार में मुख्य सचिव का काम करना थोड़ा मुश्किल होगा. वहां थोड़ा-बहुत लचीलापन जरूरी है.मैं आंध्रप्रदेश के मुख्य भू-प्रशासन आयुक्त के पद से सेवानिवृत्त होने पर खुश रहता. फिर भी कुछ दोस्तों की सलाह पर मैंने दिसम्बर 2005 में सेंट्रल डेपुटेशन के लिए स्वीकृति दे दी.
फरवरी 2004 में मुझे कोल-सेक्रेटरी पद पर नियुक्ति के आदेश प्राप्त हुए. यह मंत्रालय दूसरे मंत्रालयों की तुलना में ज्यादा लुभावना माना जाता है. मार्च 2004 के दूसरे सप्ताह में मैंने सचिव का पदभार ग्रहण किया. उस समय कोयला मंत्रालय में सुश्री ममता बनर्जी कैबिनेट कोयला मंत्री और बीजेपी के श्री प्रहलाद सिंह राज्य मंत्री थे.
जिस समय मैंने पदभार ग्रहण किया, ममता बनर्जी कोलकाता में थी. मैं सीआईएल के कार्यवाहक चेयरमैन शशि कुमार के साथ उनके घर गया. उनका घर देखकर मैं अचंभित था,कोलकाता के निम्न मध्यम वर्गीय परिवेश में एक छोटा-सा घर था. लकड़ी के पलंग पर रुई के गद्दे बिछे हुए थे और उसके पास में रखी हुई थी प्लास्टिक की दो कुर्सियाँ.
राजनेताओं के जीवन में मैंने इतनी सादगी पहले कभी नहीं देखी. सुश्री ममता बनर्जी मुस्कराते हुए उस कमरे में आई और हमारा अभिवादन स्वीकार किया. औपचारिक बातचीत करने के बाद मैंने चेयरमैन की नियुक्ति के विषय में उनसे विचार विमर्श किया. मैंने उन्हें बताया,“पूर्व चेयरमैन श्री एन के शर्मा नौ महीने से निलंबित है और चेयरमैन की पोस्ट इतने लंबे समय तक खाली रखना कंपनी के हित में नहीं है.”
उन्होंने मेरी सारी बातें ध्यानपूर्वक सुनी, मगर जवाब में कुछ नहीँ कहा. बस, यही थी मेरी उनसे पहली और आखिरी मुलाकात. अप्रैल के आरंभ में संसदीय चुनाव की घोषणा हो गई. वह कोलकाता में चुनाव प्रचार में व्यस्त हो गई और दिल्ली नहीं आई. चुनाव में उनकी पार्टी बुरी तरह हार गई,टीएमसी से केवल वह अकेली ही जीती. एनडीए की भी चुनाव में हार हुई और ममता बनर्जी और कोयला मंत्री नहीँ रही. जब वह दिल्ली आई तो मैंने उनके फेयरवेल के लिए संदेश भेजा. मगर उन्होंने मना कर दिया.
उनकी व्यक्तिगत सत्यनिष्ठा और ईमानदारी के बारे में बहुत कुछ सुन रखा था, और उनसे मुलाकात होने के बाद उसमें किसी प्रकार का संदेह नहीँ रहा. किन्तु वह स्वयं अपनी पार्टी के हितार्थ सरकारी तंत्र का दुरुपयोग करने से अपने आपको दूर नहीं रख पाई. अपनी पार्टी के पचास कार्यकर्त्ताओं को नार्दन र्इस्ट कोलफील्डस में सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी देने के लिए उन्होंने कार्यकारी चेयरमैन श्री शशि कुमार पर दबाव डाला. बिना किसी विज्ञापन, बिना किसी टेस्ट, बिना किसी इंटरव्यू और बिना किसी प्रणाली का पालन करते हुए उन्हें नौकरी दे दी गई.
वह लोग केवल हाजरी लगाने ऑफिस आते थे और बाकी समय पार्टी का काम करते थे.
शिबू सोरेनः आया राम गया राम
कैप्टिव कोल ब्लॉकों का आवंटन
कोल ब्लॉक और प्रधानमंत्री द्वारा हस्तक्षेप
कोल घोटालाः सीएजी सही और पीएम गलत क्यों
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कोयला खदान, गैंग ऑफ वासेपुर और सांसद जी
कोयला खदान और छठी का दूध
शिबू सोरेन पर्सनल एजेंडा वाले मंत्री
सीआईएल में ऐसे पहले से ही सरप्लस श्रमिक है . एक तरफ स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति के माध्यम से उन्हें उन्हें कम किया जा रहा था और दूसरी तरफ मंत्री लोक प्रबंधन पर दबाव डालकर नई-नई भर्ती करवा रहे थे.मुझे बाद में बताया गया कि पहले वाले कोयला-मंत्री भी ऐसा ही करते थे.
और भी कई मामलों में उन्होंने चेयरमैन पर दबाव डाला.वे चाहती थी कि कोल इंडिया कोलकाता में एक सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल बनाए. कोलकाता म्यूनिसिपल कॉर्पोरेशन की जमीन पर से झुग्गी–झोंपड़ियाँ हटाने के लिए 25 लाख रुपये का अनुदान देने के लिए सीआईएल चेयरमैन पर दबाव डाला गया. कितनी असंगत बात थी! सीआईएल के वर्कफोर्स का 0.25 प्रतिशत ही कोलकाता में नहीं रहता है.
पहली बात तो सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल बनाना और चलाना कोल इंडिया का काम नहीं है और अगर ऐसा हॉस्पिटल बनाना भी था तो फिर झारखंड में बनाना चाहिए था, जहां सीआईएल के 50% से भी ज्यादा श्रमिक काम करते हैं. कई एनजीओ को डोनेशन देने के लिए चेयरमैन पर दबाव डाला गया. हद तो तब हो गई,जब उन्होंने अपनी पार्टी के साधारण कार्यकर्त्ताओं को नेवेली लिग्नाइट कॉर्पोरेशन में स्वतंत्र निदेशक बनाने के लिए तत्कालीन सचिव को अपने निर्देश दिए.
चुनाव के बाद जब सुश्री बनर्जी कोयला मंत्री के पद से हटी,तब सीआईएल प्रबंधन ने तृणमूल कांग्रेस पार्टी के कार्यकर्त्ताओं को नौकरी से टर्मिनेट कर दिया गया और फिर कोलकाता में सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल बनाने का प्रस्ताव भी निरस्त कर दिया गया. उनके नामित व्यक्ति को नेवेली लिग्नाइट कॉर्पोरेशन में डायरेक्टर बनाने का प्रपोजल स्वत: ही रद्द हो गया.
राज्यमंत्री भी कुछ कम नहीँ थे. उनके निजी सहायक अरजेंट फाइलें ले जाने के बहाने हवाई यात्रा से हर हफ्ते नागपुर जा रहे थे.राज्यमंत्री के निजी सहायक हवाई यात्रा के लिए इन टाइटल नहीं होते हैं. मैंने दो बार बिना कोई सवाल किए उनके हवाई यात्रा का अनुमोदन कर दिया. तीसरी बार फिर जब हवाई यात्रा की अनुमति के लिए फाइल मेरे पास आई तो मैंने उस पर एक टिप्पणी लिखी,“अर्जेंट फाइलों की लिस्ट सबमिट की जाए.”
सुश्री बनर्जी ने राज्य मंत्री को कोई काम ही नहीं दिया था तो फाइलें होने का सवाल ही नहीं उठता था. राज्यमंत्री यह देख कर आग बबूला हो गए. उन्होंने लिखा कि सचिव को ऐसे सवाल करने की आवश्यकता नहीं है.मुझे उनको समझाना पड़ा कि सचिव द्वारा अनुमोदन का प्रावधान इसलिए रखा गया है ताकि सरकारी पैसों का दुरुपयोग न हो.
मैंने अपनी पहली ही मीटिंग में कोयला मंत्रालय की सभी कंपनियों के चेयरमैन को यह हिदायत दी कि मंत्री के ऑफिस से यदि कोई भी ऐसा निर्देश आता हो जो कंपनी के हित में नहीं है तो बेहिचक इस संदर्भ में वे मुझे सीधे लिख सकते हैं.
इस बारे में जब मैंने अपने मित्र सचिवों से बात की तो उनका विचार था कि मंत्री और चेयरमैन के बीच में हमें पडने की आवश्यकता नहीं है. चेयरमैन खुद ही ऐसे मामले सुलझाने में सक्षम होते हैं. इन छोटी-छोटी चीजों की वजह से तुम्हारे और मंत्री के बीच खाई नहीँ पड़नी चाहिए.
मगर मेरे विचार अलग है,यदि विभाग की इकाइयों के अध्यक्षों पर किसी प्रकार का अनुचित दबाव डाला जाता है तो सचिव का उत्तरदायित्व बनता है कि मंत्री को सही सलाह दें ताकि कंपनियों के अधिकारी बिना किसी दबाव के अपना काम कर पाएँ.