कलारचना

मीना कुमारी थी Tragedy Queen

मुंबई | मनोरंजन डेस्क: आज ही के दिन मीना कुमारी चांद के पार चली गई थी. 31 मार्च 1972 के दिन ही बॉलीवुड की मशहूर हूर, जिसे उसके रीयल लाइफ में ट्रेजडी क्वीन माना जाता था सबको छोड़कर चांद के पार चली गई थी. मीना कुमारी की फिल्म ‘पाकीजा’ का गाना ‘चलो दिलदार चलो, चांद के पार चलो’ आज भी सिने दर्शकों को मीना कुमारी की याद में डुबो देता है.

Meena Kumari Superhit Songs Collection

मीना कुमारी की नानी गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर के छोटे भाई की बेटी थी, जो जवानी की दहलीज पर कदम रखते ही प्यारेलाल नामक युवक के साथ भाग गई थीं. विधवा हो जाने पर उन्होंने ईसाई धर्म अपना लिया. दो बेटे और एक बेटी को लेकर बम्बई आ गईं. नाचने-गाने की कला में माहिर थीं इसलिये बेटी प्रभावती के साथ पारसी थियेटर में भरती हो गईं.

प्रभावती की मुलाकात थियेटर के हारमोनियम वादक मास्टर अली बख्श से हुई. उन्होंने प्रभावती से निकाह कर उसे इकबाल बानो बना दिया. अली बख्श से इकबाल को तीन संतानें हुईं. खुर्शीद, महज़बी (मीना कुमारी) और तीसरी महलका (माधुरी).

फिल्म बैजू बावरा (1952) से मीना कुमारी के नाम से मशहूर और लोकप्रिय महजबीं ने अपने पिता की इमेज को धकियाते हुये उससे हमदर्दी जताने वाले कमाल अमरोही के व्यक्तित्व में अपना सुनहरा भविष्य देखा. वे उनके नजदीक होती चली गईं. नतीजा यह रहा कि दोनों ने निकाह कर लिया. लेकिन यहाँ उसे कमाल साब की दूसरी बीवी का दर्जा मिला. उनके निकाह के एकमात्र गवाह थे जीनत अमान के अब्बा अमान साहब.

एक वक्त था बॉलीवुड का हर कलाकार मीना कुमारी के साथ काम करना चाहता था. मीना कुमारी ने ज्यादातर ट्रेजडी वाली कहानी पर आधारित फिल्में में ही काम किया है. मीनाकुमारी का रुतबा ऐसा था कि उसके सामने आकर राजकुमार तक अपना डॉयलाग भूल जाते थे. दिलीप कुमार निःशब्द हो जाते थे.

कहा जाता है कि मीना कुमारी धर्मेन्द्र को देखकर उनके प्यार में पागल हो गई थी. मीना कुमारी के फिल्म काजल के लिये 1966 में सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के लिये फिल्मफेयर पुरस्कार, 1963 में साहिब बीबी और गुलाम के लिये सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के लिये फिल्मफेयर पुरस्कार, 1955 में परिनीता के लिये सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के लिये फिल्मफेयर पुरस्कार तथा 1954 में बैजू बावरा के लिये सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के लिये फिल्मफेयर पुरस्कार मिला था.

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