बस्तर: सल्फी पेड़ पर संकट छाया
जगदलपुर | संवाददाता: यदि यही सिलसिला बना रहा रहा तो बस्तर की पहचान सल्फी के पेड़ लुप्त हो जायेंगे. एक तरफ सल्फी के पेड़ सूख रहें हैं तो दूसरी तरफ बस्तर के लोगों का रुझान छिंद के पेड़ लगाने की ओर बढ़ रहा है. पिछले कुछ वर्षो से बस्तर के सल्फई के पेड़ सूखकर खत्म होते जा रहे हैं. कृषि महाविद्यालय के वैज्ञानिकों ने शोध के उपरांत सल्फी के पेड़ को सूखने से बचाने का उपाय ढ़ूढ़ निकाला है परन्तु प्रचार-प्रसार के अभाव में ग्रामीण इसका लाभ नहीं उठा पा रहें हैं.
बस्तर की पहचान मानी जानी वाली सल्फी को यहां के लोग अपने घरों के आसपास लगाते हैं. इससे उन्हें अच्छी खासी आमदनी भी हो जाती है. सल्फी के पेड़ से रस निकाला जाता है. जिससे एक पेड़ से 50 हजार रुपये तक की आमदनी हो जाती है. ताड़ प्रजाति के कारयोटा यूरेंस यानी सल्फी के पेड़ से निकलने वाले रस को छत्तीसगढ़ में ‘बस्तर बीयर’ कहा जाता है. यहां तक की शादी के दहेज के रूप में सल्फी का पेड़ दे देने की परंपरा भी बस्तर में है.
छत्तीसगढ़ सरकार ने कभी सल्फी को काजू से तैयार होने वाली फेनी की तर्ज़ पर बेचने की योजना बनाई थी कभी इसकी टॉफ़ी बनाने की बात कही. ये योजनायें तो दूर की बात हैं, लेकिन छत्तीसगढ़ सरकार सल्फी के पेड़ों को बचाने को लेकर भी बेपरवाह दिखती है.
बस्तर में पहले से ही छिंद के पेड़ पाये जाते हैं. इससे भी ग्रामीणों को आमदनी हो जाती है परन्तु सल्फी से कुछ कम.