‘मंदिर-मस्जिद पर वोट मांगना मुश्किल’
नई दिल्ली | विशेष संवाददाता: मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने धर्म के नाम पर वोट मांगने को गैरकानूनी करार दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि धर्म, जाति, समुदाय, भाषा के नाम पर वोट मांगना गैरकानूनी है. यह फैसला सात जजों की संवैधानिक पीठ ने दी है. भारत जैसे देश के लिये यह फैसला अत्यंत महत्व का है जहां मंदिर-मस्जिद के नाम पर वोट मांगे जाते हैं. कहना गलत न होगा कि ऐन चुनावों के पहले इस तरह के मुद्दे जोर पकड़ने लगते हैं. कई बार तो जनता भी मंदिर-मस्जिद के नाम पर बंट जाती है. जिसका लाभ किसे होता है इस पर लंबी बहस की जा सकती है परन्तु इससे देश के धर्म निरपेक्ष ढ़ाचें पर चोट पहुंचती है इसमें कोई दो मत नहीं है.
सुप्रीम कोर्ट में भाजपा कैंडिडेट के वकील की दलील थी कि धर्म के नाम पर वोट का मतलब कैंडिडेट के धर्म से होना चाहिये. इसके लिए व्यापक नजरिये को देखना होगा. राजनीतिक पार्टी अकाली दल का गठन मॉइनॉरिटी (सिख) के लिए काम करने के लिए बना है. आईयूएमएल माइनॉरिटी मुस्लिम के कल्याण की बात करता है. वहीं डीएमके लैंग्जेव के आधार पर काम करने की बात करता है. ऐसे में धर्म के नाम पर वोट मांगने को पूरी तरह से कैसे रोका जा सकता है.
वहीं, दूसरी तरफ कांग्रेस कैंडिडेट की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल की दलील थी कि किसी भी कैंडिडेट, एजेंट, तीसरी पार्टी द्वारा धर्म के नाम पर वोट मांगना करप्ट प्रैक्टिस है. इंटरनेट के युग में सोशल मीडिया के माध्यम से धर्म के नाम पर वोटर को अट्रैक्ट किया जा सकता है.
तीन राज्यों राजस्थान, मध्यप्रदेश व गुजरात की ओर से पेश एडीशनल सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दलील दी कि धर्म को चुनावी प्रक्रिया से अलग नहीं किया जा सकता हालांकि कैंडिडेट धर्म के नाम पर वोट मांगता है तो ये करप्ट प्रैक्टिस माना जाये.
इस पर चीफ जस्टिस ने टिप्पणी की कि राज्य इस तरह का रिप्रेजेंटेशन क्यों दे रही है. क्यों धर्म के नाम पर इजाजत दी जाये. संसद का मकसद साफ है कि किसी भी इस तरह के वाकये को स्वीकार न किया जाये.
इस बीच इस पर बीबीसी संवाददाता वात्सल्य राय ने वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह से अदालत के इस आदेश पर बात की और जानना चाहा कि इसमें नया क्या है?
इंदिरा जयसिंह के मुताबिक, “जो कानून था उसकी व्याख्या 1969 में की गई थी. उसमें कहा गया था कि एक उम्मीदवार अपनी जाति या धर्म के नाम पर अपने लिए वोट की अपील नहीं कर सकता है. अब जो फ़ैसला आया है उसमें ये लिखा है कि न सिर्फ उम्मीदवार बल्कि कोई और भी धर्म और जाति के नाम पर अपील नहीं कर सकता है.”
यानी उम्मीदवार ही नहीं बल्कि पार्टी का प्रतिनिधि भी प्रचार के दौरान भाषण देता है और धर्म या जाति के नाम पर वोटरों को प्रभावित करने की कोशिश करता है या वोट मांगता है, ये नहीं हो सकता.
भारत में राजनीति में धर्म और जाति के मुद्दे हावी रहे हैं. कई पार्टियां उम्मीदवारों का चयन भी वोटरों के धर्म और जाति को ध्यान में रखकर करती हैं.
ऐसे में सुप्रीम कोर्ट के आदेश का भारतीय राजनीतिक परिदृश्य पर कितना असर होगा, इस सवाल पर इंदिरा जयसिंह कहती हैं, “ऐसा माना जाए कि अगर कोई पार्टी अपने घोषणापत्र में हिंदुत्व का एजेंडा लिखती है या अपने चुनावी भाषण में उम्मीदवार और पार्टी प्रतिनिधि प्रचार करते हैं कि अगर आप मुझे वोट देंगे तो मैं राम मंदिर बनाऊंगा, तो अब ऐसा करना नामुमकिन है.”
वो कहती हैं कि मुसलमान उम्मीदवार भी ये कहते हुए वोट नहीं मांग पाएंगे कि वो मस्जिद बनाएंगे, इसलिए उन्हें वोट देना चाहिए.
अदालत के निर्देश को लागू करना चुनाव आयोग के लिए कितना मुश्किल होगा?
इंदिरा जयसिंह मानती हैं कि ऐसा करने में आयोग को दिक्कत ज़रूर होगी. पहले तो सभी पार्टियों के घोषणा पत्र को बारीकी से देखना होगा.
वो कहती हैं, “स्थितियां आसान नहीं हैं. इतनी जल्दी बदलाव नहीं आएगा. लेकिन हर पार्टी को अब सोचना होगा कि वो अपना घोषणापत्र कैसे बनाएं. अब उन्हें सतर्क रहना होगा.”
(बीबीसी इनपुट के आधार पर)