NDTV के पक्ष-विपक्ष में सोशल मीडिया
नई दिल्ली | संवाददाता: NDTV पर बैन की खबर से इस पर सोशल मीडिया बंट गया है. जहां कई लोग इसे अघोषित आपातकाल की संज्ञा दे रहें हैं वहीं कई ऐसे हैं जो इसे जैसी करनी वैसी भरनी मान रहे हैं. उल्लेखनीय है कि केन्द्र सरकार के सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने NDTV से 24 घंटे के लिये ‘ऑफ-एयर’ रहने को कहा है.
पठानकोट हमलों के दौरान टीवी चैनलों की कवरेज़ को लेकर एक उच्च स्तरीय पैनल का गठन हुआ था. पैनल का कहना है NDTV इंडिया ने पठानकोट हमले की कवरेज़ के दौरान सामरिक रूप से संवेदनशील सूचनाएं प्रसारित की थीं.
जगदीश्वर चतुर्वेदी ने फेसबुक पर लिखा है, “सवाल यह है पठानकोट की घटना पर NDTVके अलावा दूसरे टीवी चैनलों की रिपोर्टिंग क्या सही थी ? मोदी सरकार पारदर्शिता का प्रदर्शन करे और बताये कि एनडीटीवी के कवरेज में किस दिन और समय के कार्यक्रम को आधार बनाकर और किन मानकों के आधार पर फैसला लिया गया और एनडीटीवी से उसका पक्ष जानने की कोशिश की गयी या नहीं ? एनडीटीवी को अपना पक्ष जनता के सामने रखना चाहिए और केन्द्र सरकार के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाना चाहिये.”
फेसबुक पर ही गिरीश मालवीय ने कहा है, “यह आपातकाल की आहट है, इसे अनसुना करना बेहद खतरनाक है, आज एनडीटीवी पर एक दिन का प्रतिबंध लगाया गया है कल किसी और पेपर को बंद कर देंगे परसों कहेंगे कि इंटरनेट से ही सूचनाए फैलती है उसे ही बंद कर दो ………………”
ट्वीटर पर तुषार नाम से एक पोस्ट में NDTV की खिल्ली उड़ाते हुये कहा गया है, “#NDTV ऑफिस मे पसरा मातम, बुर्का आंटी हुई बदहवास, कवीश कुमार भटके हुए नौजवान की तरह इधर-उधर पागलो की तरह दौड़ रहा, पूछा कौन जात #NDTVBanned”
#NDTV ऑफिस मे पसरा मातम,बुर्का आंटी हुई बदहवास, कवीश कुमार भटके हुए नौजवान की तरह इधर-उधर पागलो की तरह दाैड रहा,पूछा कौन जात #NDTVBanned pic.twitter.com/qqa64x3MoJ
— Only Tushar™® (@onlytg_gt) 4 नवंबर 2016
आशुतोष स्नेहसागर ने ट्वीट किया है, “बधाई हो, सरकार का कड़ा फैसला पठानकोट हमले में आतंकियों की मदद करने के आरोप में 9 नवंबर को 1 दिन के लिए #NDTV बंद रहेगा!”
वहीं ऋषि मिश्रा ने ट्वीट किया है, “1 दिन ऑफ-एयर तो महज ट्रेलर है #NDTV वालो, अबकी बार अगर देश की सुरक्षा से खिलवाड़ किया तो @narendramodi जी तुमको पूरी पिक्चर दिखाएंगे!!”
मोहम्मद तनवीर ने ट्वीट किया, “#NDTV चैनल की पत्रकारिता को सलाम,आपातकाल में भी कई पत्रकारों को सच बोलने पर प्रतिबन्ध झेलना पड़ा था, यह भी अघोषित आपातकाल ही है.”