छत्तीसगढ़

वित्तीय सेवाओं में छत्तीसगढ़ 32वें नंबर पर

रायपुर | विशेष संवाददाता: वित्तीय सेवाओं के मामले में छत्तीसगढ़ की हालत पतली है. अर्थशास्त्र की भाषा में कहें तो वित्तीय समावेशन की दृष्टि से छत्तीसगढ़ राष्ट्रीय औसत से नीचे है. हालत ये है कि छत्तीसगढ़ वासियों की औपचारिक वित्तीय सेवाएं जैसे बैंक, बीमा, पेंशन तक की पहुंच औसत से काफी कम है. देश भर के आंकड़ों को देखें तो छत्तीसगढ़ अंतिम पांच में है. इसके साथ-साथ अंतिम पांच राज्यों में अरूणाचल प्रदेश, बिहार, नागालैंड और मणिपुर हैं. छत्तीसगढ़ के साथ अस्तित्व में आये उत्तराखंड और झारखंड की हालत कहीं बेहतर है.

जुलाई के पहले सप्ताह में रेटिंग फर्म क्रिसिल द्वारा जारी किया गया ये सूचकांक 1 से 100 के स्तर पर वित्तीय समावेशन मापता है, 100 इस बात का सूचक है कि पूरी आबादी की वित्तिय सेवायें यानी बैंकिंग, बीमा, पेंशन आदि तक पहुंच है. छत्तीसगढ़ की रेटिंग देश के सभी राज्यों में 32 वीं है तथा इसका सूचकांक 27 है. जिसका अर्थ यह हुआ कि छत्तीसगढ़ में प्रति 100 लोगों में से 27 लोगों की ही पहुंच वित्तीय सेवाओं तक है.

विकास के दावे का हाल ये है कि छत्तीसगढ़ से बेहतर स्थिति पांडिचेरी, मध्यप्रदेश, केरल, गोवा, कर्नाटक, ओडीशा, सिक्किम, गुजरात तथा महाराष्ट्र जैसे राज्यों की है. जब बात समाज के सभी वर्गों के लिए वित्तीय सेवाओं तक पहुंच की होती है, तो दक्षिण के राज्य शीर्ष पर दिखाई पड़ते हैं, ऐसा वित्तीय समावेशन को मापने वाला सूचकांक क्रिसिल इनक्लूसिक्स कहता है. विशेषज्ञों का कहना है कि छत्तीसगढ़ में लोगों की पहुंच वित्तीय संस्थाओं तक केवल 27 प्रतिशत है तो सरकारी योजनाओं को उन तक कैसे पहुंचाया जा सकता है. मतलब ये कि छत्तीसगढ़ वर्तमान विकास के माडल के साथ अपना सामंजस्य नही बैठा पा रहा है.

छत्तीसगढ़ के बस्तर को 23.7 सूचकांक प्राप्त हुआ है तथा यह देश भर के 640 जिलों में 516 वें पायदान पर है. उसी तरह बीजापुर 17.1 के साथ 604, बिलासपुर 23.4 के साथ 521, दंतेवाड़ा 21.6 के साथ 553, धमतरी 24.9 के साथ 486, दुर्ग 30.2 के साथ 384, जांजगीर-चांपा 20.2 के साथ 572 वें स्थान पर है. जशपुर 24.1 के साथ 506, कांकेर 29.0 के साथ 409, कवर्धा 22.9 के साथ 531, कोरबा 24.7 के साथ 491 तथा कोरिया 37.0 के साथ 267 स्थान पर है. वही महासमुंद 24.9 के साथ 488, नारायणपुर 17.2 के साथ 603, रायगढ़ 30.9 के साथ 371, रायपुर 28.9 के साथ 411, राजनांदगाँव 31.0 के साथ 368 तथा सरगुजा 30.0 के साथ देशभर में 387 पायदान पर है.

10 सर्वाधिक समावेशी राज्यों और संघ राज्य क्षेत्रों में छह दक्षिण के हैं. पॉन्डिचेरी 79.6 स्कोर के साथ शीर्ष पर है. उत्तर में चंडीगढ़ और पश्चिम में गोवा भी शीर्ष 10 में हैं. 2011 की उपलब्ध रेटिंग में भारत की कुल वित्तीय समावेशन 40.1 थी, जो 2010 के 37.6 से ज्यादा थी. भारत का मापन देश के ज्यादातर हिस्सों में औपचारिक बैंकिंग सुविधाओं की पैठ के अभाव का प्रतिबिंब है. इसके अनुसार दो भारतीयों में महज़ एक का बचत खाता है और सात भारतीयों में महज़ एक की बैकिंग क्रेडिट तक पहुंच है.

सरकार और भारतीय रिज़र्व बैंक दोनों ने स्वीकारा कि कई लाख लोगों को अब भी बैकिंग व्यवस्था के तहत लाने की आवश्यकता है.वास्तविक वित्तीय समावेश को सुनिश्चित करना चाहिए कि श्रेणीबद्ध वित्तीय सेवाओं तक प्रत्येक व्यक्ति की पहुंच हो. इनमें शामिल है- एक आधारभूत बैंक खाता, गरीबों के अनुकूल बचत उत्पाद, पैसा हस्तांतरित करने की सुविधाएं, छोटे ऋण, ओवरड्राफ्ट और इंश्योरेंस.

क्रिसिल के सूचकांक में तीन मानदंडो का इस्तेमाल किया जाता है: शाखा पैठ, जमा धन पैठ जमा खातों की संख्या और क्रेडिट पैठ,ऋण लेने वालों के खातों की संख्या. इस रिपोर्ट में कहा गया है कि जागरुकता की कमी, कम आमदनी, गरीबी और अशिक्षा जैसे कारक वित्तीय सेवाओं की कम मांग और फिर परिणामत: अपवर्जन की तरफ ले जाते हैं. रिपोर्ट में कहा गया है कि अकसर, लोग महसूस करते हैं कि बैंक तक जाने के लिए लंबी-चौड़ी दूरी तय करना, जिनके खुलने का वक्त कदाचित सुविधाजनक नहीं होता और वो कई दस्तावेजों की मांग कर सकता है; के बजाय अनौपचारिक ऋण स्त्रोतों से उधार लेना ज्यादा आसान है. यही कारण है कि भारत में आज भी धड़ल्ले से साहुकारी की प्रथा जारी है. इस रिपोर्ट में कहा गया है कि वित्तीय समावेश महज़ बैंक बचत खाता खोलने तक ही सीमित नहीं है, इसमें वित्तीय उत्पादों के बारे में जागरुकता बढ़ाना, धन प्रबंधन और ऋण संबंधी सलाहें शामिल हैं.

लेकिन फिलहाल तो यह सब छत्तीसगढ़ के लिये दूर की कौड़ी है और उपलब्धियों के प्रचार-प्रसार में लगे नौकरशाह, इस मुद्दे की तरफ बतियाना तो छोड़ें, देखता तक पसंद नहीं करते.

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