कश्मीर में ‘मीडिया मलेरिया’
श्रीनगर | समाचार डेस्क: जम्मू एवं कश्मीर की राजधानी श्रीनगर से अंग्रेजी और अन्य भाषाओं के 265 दैनिक समाचार पत्र प्रकाशित होते हैं. 14 लाख की जनसंख्या वाले किसी शहर से प्रकाशित होने वाले दैनिक समाचार पत्रों की यह देश में सर्वाधिक संख्या है.
इन ‘दैनिक समाचार पत्रों’ की खास बात यह है कि इनमें से अधिकांश श्रीनगर और घाटी के अन्य स्थानों में उपलब्ध नहीं होते. तो आखिर क्या कारण है कि ऐसे शहर में जहां अंग्रेजी एवं अन्य भाषाओं के दो दर्जन समाचार पत्रों के भी पाठक नहीं हैं, इतनी बड़ी संख्या में समाचार पत्र प्रकाशित होते हैं?
राज्य सूचना विभाग के एक अधिकारी ने नाम जाहिर न होने की शर्त पर कहा, “जो समाचार पत्र लोगों तक नहीं पहुंचते, वे सिर्फ सरकारी विज्ञापन हासिल करने के लिए प्रकाशित होते हैं. सरकारी विज्ञापन ऐसे प्रकाशकों के लिए कमाई का जरिया है.”
यह पूछे जाने पर कि आखिर जिन समाचार पत्रों की पहुंच लोगों तक है ही नहीं, उन्हें सरकारी या व्यवसायिक प्रतिष्ठानों द्वारा विज्ञापन देने का क्या मतलब है? अधिकारी ने इसका जवाब देने से हाथ खड़े कर दिए.
अधिकारी ने कहा, “आप यह सवाल ऐसे सभी समाचार पत्रों के प्रकाशकों से करिए.”
राज्य सरकार के नियमों के मुताबिक 2010 तक अगर कोई समाचार पत्र एक साल तक निर्बाध प्रकाशन करता है तो वह सरकारी विज्ञापन पाने की योग्यता हासिल कर लेगा.
इस बात का इन नियमावली में कोई उल्लेख नहीं कि सरकारी विज्ञापन हासिल करने के लिए इन समाचार पत्रों को प्रतिदिन कितनी प्रतियां प्रकाशित करनी होंगी.
अधिकारी ने कहा, “राज्य सूचना विभाग ने दो संशोधित नियम जारी किए हैं, उनके मुताबिक तीन साल तक प्रतिदिन बिकी हुई 1000 प्रतियों के निर्बाध प्रकाशन के बाद ही कोई समाचार पत्र सरकारी विज्ञापन पाने का हकदार होगा.”
राज्य सरकार ने प्रति वर्ष सरकारी विज्ञापन के लिए 22 करोड़ रुपये का बजट रखा है लेकिन बीते समय में 10 करोड़ रुपये भी सही मायने में खर्च नहीं किए जा रहे थे.
अधिकारी ने कहा, “बीते समय में इस फंड में से सिर्फ 10 करोड़ रुपये ही सही मायने में खर्च किए गए. यह रकम उन समाचार पत्रों में विज्ञापन के लिए दिए गए, जिन्हें लोग पढ़ते हैं. बाकी राशि उन समाचार पत्रों के खाते में गई है, जिन्हें लोग पढ़ते ही नहीं हैं. हम ऐसे समाचार पत्रों को विज्ञापन देना रोक नहीं सकते क्योंकि न्यूनतम प्रिंट आर्डर को लेकर कोई दिशा-निर्देश नहीं है.”
मजेदार बात यह है कि श्रीनगर से प्रकाशित होने वाले ‘कुकुरमुत्ते’ समाचार पत्रों का कोई दफ्तर नहीं है. ऐसे ही एक समाचार पत्र के साथ जुड़े एक कम्पयूटर ऑपरेटर ने कहा, “ऐसे मामलों में एक कम्पयूटर ऑपरेटर पांच समाचार पत्रों के लिए काम करता है. उसे इंटरनेट से खबरें उठानी होती हैं और उन्हें कॉपी-पेस्ट करना होता है. इसमें सावधानी यह बरतनी होती कि एक समाचार पत्र के प्रथम पन्ने पर प्रकाशित खबर को दूसरे के दूसरे या फिर तीसरे पन्ने पर पेस्ट करना होता है.”
कश्मीर से प्रकाशित होने वाले कुछ समाचार पत्रों के नाम हास्यास्पद हैं और प्रकाशन के नए तरीके अपनाकर ये समाचार पत्र सालों से अपना अस्तित्व बनाए रखने में सफल रहे हैं. इनको इस बात से कोई मतलब नहीं होता कि इनके पाठकों की संख्या क्या है.
सरकारी विज्ञापन पाने के सम्बंध में नियमों में बदलाव के बाद उम्मीद है कि घाटी में समाचार पत्रों का ‘मलेरिया’ समाप्त हो सकेगा. वैसे यह भी देखने वाली बात होगी!