राष्ट्र

जबरन पतियों को गिरफ्तार न करे

नई दिल्ली | संवाददाता: केवल उत्पीड़न के आरोप पर पतियों को गिरफ्तार न करे. सर्वोच्य अदालत ने गुरुवार को झूठे दहेज के केस में पतियों को ही उत्पीड़ित किये जाने से रोकने के लिये यह फैसला सुनाया है. सर्वोच्य अदालत ने कई मामलों में महिलाओं द्वारा अपने पतियों तथा उनके परिवार को लोगों को प्रताड़ित करने के लिये कानून के दुरुपयोग को रोकने के लिय दिशा निर्देश जारी किये हैं.

जिसमें कहा गया है कि पुलिस को गिरफ्तारी से पहले केस डायरी में वजह दर्ज करनी होगी जिसकी समीक्षा मजिस्ट्रेट करेंगे. सर्वोच्य अदालत ने सभी राज्य सरकारों को निर्देश दिया है कि भारतीय दंड संहिता की धारा 498-क के तहत मामला दर्ज होने पर स्वत: ही गिरफ्तारी नहीं करे बल्कि पहले दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 41 में प्रदत्त मापदंडों के तहत गिरफ्तारी की आवश्यकता के बारे में खुद को संतुष्ट करें.

सर्वोच्य अदालत ने टिप्पणी की है कि कई मामलों में तो दशकों से विदेश में रह रहे पतियों के बहनों की गिरफ्तारी हुई है. अदालत का मानना है कि दहेज कानून का दुरपयोग रोका जाना चाहिये. सर्वोच्य अदालत ने कहा है कि आरोपी का आचरण, जांच प्रभावित करने की आशंका और उसके फरार होने के अलावा अन्‍य कई बातों को ध्‍यान में रखा जाना चाहिये है.

दहेज प्रकरण पर सर्वोच्य अदालत ने राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आकड़ों के आधार पर कहा है कि 2012 में जितनी गिरफ्तारी हुई उनमें से लगभग एक चौथाई महिलाएं थीं. अनुच्छेद 498 A में चार्जशीट की दर 93.6 फीसदी है जबकि सजा की दर 15 फीसदी है जो काफी कम है. फिलहाल 3 लाख 72 हजार 706 केस की सुनवाई चल रही है, लगभग 3 लाख 17 हजार मुकदमों में आरोपियों की रिहाई की संभावना है. इन आंकड़ों को देखते हुए लगता है कि इस कानून का इस्तेमाल पति और उनके रिश्तेदारों को परेशान करने के लिए हथियार के तौर पर किया जा रहा है.

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