शिवराज की किरकिरी
भोपाल | एजेंसी: मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री के तौर पर तीसरे कार्यकाल की शुरुआत शिवराज सिंह चौहान के लिए अच्छी नहीं रही है, क्योंकि उन्हें सत्ता संभालने के एक माह के भीतर दो बड़ी चोटें खानी पड़ी है, एक भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस के एलान के दिन चोट पड़ी तो फिर कैबिनेट बैठक के फैसले को ही पलटना पड़ गया है.
विधानसभा चुनाव में तमाम अनुमानों के उलट मिले बहुमत से भारतीय जनता पार्टी ही नहीं मुख्यमंत्री चौहान भी उत्साहित हैं और वे नए अंदाज में नजर आ रहे हैं. यही कारण है कि वे विधायकों से लेकर मंत्रियों तक को नैतिकता का पाठ पढाने के साथ जनहित के कार्यो को सवरेपरि बताने से नहीं हिचक रहे हैं.
सत्ता की कमान संभालने के बाद चौहान ने सभी को सख्त लहजे में हिदायत दी थी कि जिसे जो जिम्मेदारी सौंपी गई है, उसे पूरी सतर्कता व सजगता से निभाएं, जो अपना काम ठीक से नहीं करेंगे, उन्हें जिम्मेदारी से मुक्त करने में भी नहीं हिचकेंगे. उनका तर्क था कि जनता ने हमें सेवा के लिए जनादेश दिया है, जो इसमें लापरवाही बरतेगा उसे बाहर कर दिया जाएगा.
चौहान पिछले दो कार्यकलों के मुकाबले तीसरे कार्यकाल में सरकार को और प्रभावकारी बनाने के साथ जनता के करीब ले जाना चाहते है. यही कारण है कि उनके तेवर पिछले कार्यकाल के मुकाबले तीखे हैं. उन्होंने एलान किया है कि किसी भी विभाग में गड़बड़ी होने पर संबंधित मंत्री व प्रमुख सचिव को जिम्मेदार माना जाएगा.
मुख्यमंत्री चौहान ने भ्रष्टाचार को बड़ी समस्या बताते हुए कहा था कि इस मामले में सरकार जीरो टॉलरेंस की नीति पर काम करेगी. वे सरकारी विभागों से भ्रष्टाचार को मिटा देना चाहते हैं. उनकी मंशा परवान चढती कि उससे पहले ही जीरो टॉलरेंस के एलान के दिन की शाम को उर्जा मंत्री राजेंद्र शुक्ल का निजी सहायक को दो हजार रुपये की रिश्वत लेते पकड़ा जाता है. पूरी सरकार भ्रष्टाचार के खिलाफ बात करने की बजाय मंत्री के बचाव में खड़ी नजर आती है.
तीसरे कार्यकाल में चौहान की कैबिनेट की बैठक में आबकारी नीति में संशोधन किया गया. इसके मुताबिक ग्रामीण इलाकों में देसी शराब की दुकानों पर विदेशी शराब बेचने का भी फैसला लिया गया. इस फैसले पर मंत्रिमंडल से लेकर भाजपा संगठन तक से विरोध के स्वर उठे और कांग्रेस के विधायक सत्यदेव कटारे ने तो इस फैसले के पीछे शराब माफिया का हाथ होने तक का आरोप लगा दिया.
आबकारी नीति में किए गए संशोधन का विरोध कुछ इस तरह हुआ कि फैसले के तीसरे दिन ही सरकार को बैकफुट पर आना पड़ गया. मुख्यमंत्री ने यह कहते हुए फैसले को वापस ले लिया कि उन्हें बीती रात इस मामले को लेकर नींद नहीं आई. वैसे उन्होंने यह फैसला राजस्व बढ़ाने के लिए लिया था.
पार्टी के प्रदेश मीडिया प्रभारी डा. हितेश वाजपेयी कहते हैं कि भाजपा का वादा है कि शराब बिक्री नहीं बढ़ने देंगे, उसी के चलते मुख्यमंत्री ने यह फैसला वापस लिया है. पूर्व में लिए गए निर्णय पर उनका तर्क है कि कई बार प्रशासनिक हस्तक्षेप के चलते इस तरह के निर्णय हो जाते हैं, मगर भाजपा ने नैतिकता को ध्यान में रखकर फैसला वापस लिया.
संभवत: बीते दो कार्यकालों में चौहान के लिए एक भी मौका ऐसा नहीं आया था, जब सरकार की सीधी किरकिरी हुई हो और अपने फैसले को वापस लेना पड़ा हो. बीते कार्यकाल के फैसले कुछ ऐसे रहे हैं कि जनता का उनमें भरोसा बढ़ा है, यही कारण है कि उन्हें तीसरी बार जनादेश देकर कमान सौंपी है.
इस तरह सत्ता की तीसरी बार कमान संभालते ही दो बड़ी चोट खाने से मुख्यमंत्री के उत्साह पर असर पड़ने के साथ सरकार की किरकिरी भी हो रही है. अब देखना होगा कि सरकार आगे ऐसे फैसलों को लेने से कितना परहेज करती है, जो उसकी किरकिरी करा सकते हैं.