स्वास्थ्य

सिकलसेल से करें मुकाबला

डॉ. गुरमीत सिंह
सिकलसेल एनीमिया एक अनुवांशिक बीमारी है. यह बीमारी माता-पिता से बच्चों में स्थानांतरित हो जाती है. इस बीमारी से ग्रसित मरीज छत्तीसगढ़, ओड़ीसा एवं महाराष्ट्र में लाखों की संख्या में हैं. छत्तीसगढ़ में यह बीमारी बहुतायत पाई जाती है.

एक अनुमान के अनुसार छत्तीसगढ़ में कम से कम 38 लाख लोग सिकलसेल का दंश भोग रहे हैं. इस बीमारी में लाल रक्त कोशिकाएं अपना लचीलापन खो देती हैं तथा कठोर हो जाती हैं. रक्त कोशिकाओं का आकार हसिए के समान हो जाता है. इस कारण शरीर के विभिन्न अंगों की रक्त कोशिकाएं लचीलापन नहीं होने के कारण नष्ट हो जाती हैं, जिससे मरीज रक्त अल्पता की स्थिति में आ जाता है.

सिकलसेल एनीमिया से पीडि़त बच्चे छ: माह की उम्र के पश्चात विभिन्न बीमारियों से ग्रसित होने लगते हैं. इसे संकट कहा जाता है. यह संकट कई प्रकार से होता है जैसे शरीर के विभिन्न अंगों विशेषकर मांसपेशियों एवं हड्डियों में तेज दर्द होना. इसके कारण बच्चों की तिल्ली यानी प्लीहा का आकार बड़ा हो जाता है. छाती में संक्रमण सामान्य बात हो जाती है, जिससे बुखार आता है और दर्द भी होता है. रक्त की कमी के कारण बच्चे के विकास पर भी विपरीत प्रभाव पड़ता है.

कुछ लोग केवल इस बीमारी के वाहक होते हैं तथा उन्हें इन लक्षणों से होकर गुजरना नहीं पड़ता है. सिकलसेल एनीमिया का ठीक-ठीक पता रक्त जांच द्वारा ही संभव है. जांच के माध्यम से ही यह पता लगाया जा सकता है कि कोई व्यक्ति सिकलसेल एनीमिया से पीड़ित है या केवल इस रोक का वाहक है.

इस अनुवांशिक बीमारी से एक बार ग्रसित होने के पश्चात इससे निजात मिलना असंभव है केवल इसके लक्षणों की चिकित्सा की जा सकती है. पीड़ित व्यक्तियों को प्रचुर मात्रा में तरल पदार्थों का सेवन करना चाहिए साथ ही रोजाना फोलिक एसिड की एक गोली खानी चाहिए. इसके लिए चिकित्सक की सलाह एवं लगातार उनकी निगरानी में रहना चाहिए. समय-समय पर अन्य दवाएं भी लेनी पड़ती हैं.

बच्चों की तिल्ली बढऩे की हालत में तुरंत चिकित्सक की सलाह लेनी चाहिये. इसके अलावा बुखार आने तथा हाथ पैर में दर्द होने पर भी इन लक्षणों को नजर अंदाज न करें. समाज के स्तर पर भी लोगों में जागरुकता लाना चाहिए कि विवाह पूर्व लड़का एवं लड़की के सिकलसेल की जांच करा लें. दोनों सिकलसेल वाहक हैं तो उन्हें आपस में विवाह से बचना चाहिए. बीमारी की रोकथाम के लिए जागरुकता अभियान के साथ ही स्कूली स्तर पर बच्चों के रक्त परीक्षण की भी जरूरत है.

कुछ साल पहले रायपुर मेडिकल कालेज द्वारा रायपुर, महासमुंद और भिलाई में 8.30 लाख बच्चों में सिकलसेल की जांच की गई और 80 हजार बच्चे इस रोग से पीड़ित मिले. जाहिर है, यह इस बीमारी की भयावहता को बताने के लिये पर्याप्त है लेकिन इस भयावह स्थिति से घबराने के बजाये इससे निपटना कहीं अधिक सरल है.

*लेखक रक्त रोग विशेषज्ञ और डीएम हेमेटलॉजी हैं और भिलाई में रहते हैं.

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