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विकास की दुख भरी कहानी

हिमांशु कुमार
विकास प्रकृति पर समाज के अधिकार को नकारती है. यही विकास की दुख भरी कहानी है. आज देश-दुनिया में विकास के नाम पर जो हो रहा है उसमें पैसे को हर चीज का मालिक स्वीकार किया जा रहा है. यह विकास, असामाजिक, असभ्य, क्रूर और अतार्किक है, इसे आप किसी भी तर्क से सही सिद्ध कर ही नहीं सकते.

इस तरह के विकास से हिंसा और प्रकृति का विनाश ही निकलेगा. इस तरह का विकास इंसानी नस्ल को ही समाप्त कर देगा. आइये, इसे तरह से समझने की कोशिश करते हैं.

सवाल: कम उपभोग करने वाला विकसित या ज्यादा उपभोग करने वाला विकसित ?
जवाब: ज्यादा उपभोग करने वाला ज्यादा विकसित माना जाता है.

सवाल: कम पैसे कमाने वाला विकसित या ज्यादा पैसे कमाने वाला विकसित ?
जवाब: ज्यादा पैसे कमाने वाला ज्यादा विकसित माना जाता है.

सवाल: मशीन से ज्यादा मुनाफा होता है या हाथ से ?
जवाब: जाहिर है कि मशीन से ज्यादा उत्पादन तथा मुनाफा होता है.

सवाल: इस मशीन का मालिक कौन होता है, अमीर या गरीब ?
जवाब: हमेशा से अमीर ही मशीन का मालिक होता है.

सवाल: मशीन प्राकृतिक साधनों में से उत्पादन करती है या खुद कुछ बना सकती है ?
जवाब: मशीन प्राकृतिक साधनों से ही उत्पादन कर सकती है वह स्वंय खुद नहीं बना सकती है. हां, वह उत्पाद का रूप बदल देती है.

सवाल: एक पहाड़ के नीचे खनिज हैं. उस पहाड़ को वहाँ रहने वाले आदिवासी लोग खोदेंगे या खुदाई वाली मशीन का अमीर मालिक उस पहाड़ के खनिज को निकालेगा ?
जवाब: जाहिर है कि महंगी मशीन खरीदने की हैसियत रखने वाला पूंजीपति ही उस पहाड़ को खोदकर खनिज को निकाल सकता है.

सवाल: तो उस पहाड़ के नीचे स्थित खनिज का मालिक कौन हुआ ?
जवाब: जिसके पास मशीन है और जो उस खनिज को खोद निकालने का माद्दा रखता है, जैसे टाटा अडानी या जिंदल.

सवाल: अब पहाड़ का मालिक कौन हुआ ?
जवाब: अब मशीन का मालिक ही पहाड़ का मालिक साबित हुआ.

सवाल: यानि पहाड़ पर रहने वाले आदिवासी या मनुष्य उस पहाड़ के मालिक नहीं हैं ?
जवाब: जी हां.

सवाल: अब यदि उस पहाड़ पर रहने वाले मूल निवासी मशीन के मालिक को पहाड़ ना खोदने दें तो सरकार किसका साथ देगी ? मशीन के मालिक का या पहाड़ के निवासियों का ?
जवाब: जाहिर है कि उस मशीन के मालिक का साथ देगी.

सवाल: पुलिस किसकी मदद करेगी ? मशीन के मालिक की या पहाड़ के मूल निवासियों की ?
जवाब: पुलिस मशीन के मालिक की मदद करेगी.

सवाल: इस तरह से विकसित समाज किसकी तरफ है ? मशीन के मालिक की तरफ या पहाड़ के मूल निवासियों की तरफ ?
जवाब: समाज की पूरी सत्ता मशीन के मालिक की तरफ है.

सवाल: हिसाब-किताब, बैंक, कम्प्यूटर, बीमा, यातायात किसके लिये चलते हैं ? मशीन के मालिक पूंजीपति के लिये या पहाड़ के मूल निवासियों के लिये ?
जवाब: यह सब कुछ मशीन के मालिक पूंजीपति के लिये चलते हैं.

सवाल: ऑफिस, जहाज, रेलें, कालेज, किसके लिये काम करते हैं ? मशीन के मालिक के लिये या पहाड़ के मूल निवासियों के लिये ?
जवाब: मशीन के मालिक के लिये,

यानि सारे पढ़े लिखे विकसित लोग, सरकार, पुलिस सब मशीन के मालिक की तरफ हैं ? और कोई भी प्रकृति के मालिक उस पहाड़ के मूल निवासियों की तरफ नहीं है ?
जी हां, यही विकास की दुःख भरी कहानी है.

दरअसल, यह विकास प्रकृति पर समाज के अधिकार को नकारती है. यह पैसे को हर चीज़ का मालिक स्वीकार करती है. यह हमारे गैरज़रूरी उपभोग और अय्याशी के अपराध को जायज़ बना देती है.

यह हमें प्रकृति का अंग नहीं बल्कि प्रकृति का मालिक मानने को जायज़ करार देती है.

इस तरह से यह विकास, असामाजिक, असभ्य, क्रूर और अतार्किक है. यह केवल मुठ्ठीभर लोगों के लिये है. इसे आप किसी भी तर्क से सही सिद्ध कर ही नहीं सकते. इस तरह के विकास से हिंसा और प्रकृति का विनाश ही निकलेगा. इस तरह का विकास एक दिन इंसानी नस्ल को ही समाप्त कर देगा.

(यह लेखक के निजी विचार हैं.)

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