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अपने पर भी सोचने की जरूरत

सुनील कुमार
अमरीका इन दिनों एक अनोखे विवाद और तनाव से गुजर रहा है जिसमें जूते, कपड़े, और खेल के सामान बनाने वाली दुनिया की एक सबसे बड़ी कंपनी, नाईकी शामिल है, और दूसरी तरफ अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप के एक फतवे के बाद अमरीका की गोरी आबादी का एक हिस्सा भी इस विवाद को आगे बढ़ा रहा है.

इसके पीछे इस कंपनी का एक नया विज्ञापन अभियान है जिसमें उसने एक अश्वेत फुटबॉलर कॉलिन केपरनिक को मुख्य चेहरा बनाया है.

इस खिलाड़ी के साथ पिछले कुछ महीनों में यह विवाद जुड़ा हुआ है कि उसने और खिलाडिय़ों को साथ लेकर अमरीका में नस्लभेद, रंगभेद का विरोध करने के लिए एक तरीका अपनाया है, राष्ट्रगान के समय खड़े होने के बजाय घुटनों पर बैठ जाने का.

इस खिलाड़ी की इस बात के लिए आलोचना हो रही थी, और इस बीच जब एक कंपनी ने उसे अपने इश्तहार का चेहरा बनाया, तो नाईकी का यह वीडियो आते ही ट्रंप का बयान आया. और उसके तकरीबन साथ-साथ भी बहुत से अमरीकियों ने नाईकी के जूते जलाने शुरू कर दिए, नाईकी के कपड़ों पर से इस कंपनी के निशान वाला हिस्सा काटकर फेंकना शुरू कर दिया. इसके सामान का बहिष्कार करने की घोषणा कर दी, और शेयर बाजार में कंपनी के शेयर भी गिर गए. लेकिन नाईकी अब तक अपनी बात पर डटा हुआ है, और उसने यह इश्तहार वापिस लेने से मना कर दिया है.

दरअसल इश्तहारों की दुनिया में किसी विवाद को सबसे अच्छा इश्तहार माना जाता है, इसीलिए भारत में जब कोई फिल्म जारी होती है, तो बहुत सोचे-समझे तरीके से उसके सामाजिक और अदालती विरोध करने के मुद्दे निकाल लिए जाते हैं, और फिर बड़े संदिग्ध और रहस्यमय तरीके से सड़कों से लेकर अदालत तक उसके खिलाफ एक अभियान छेड़ा जाता है जो कि इश्तहारों के लिए खरीदी गई जगह से कहीं अधिक, बहुत अधिक, पब्लिसिटी दिला जाता है.

बहुतों का यह भी मानना रहता है कि फिल्म बनाने वाले ही अपने खिलाफ ऐसे विवाद खड़े करवाते हैं ताकि इश्तहार से अधिक जगह खबरों में मिलती रहे, पूरी तरह मुफ्त में. अमरीका या पश्चिमी दुनिया की ऐसी और भी कंपनियां रही हैं जिन्होंने समय-समय पर लोगों को सदमा पहुंचाने वाले, लोगों के मुंह का स्वाद बिगाडऩे वाले विवादास्पद और आपत्तिजनक इश्तहार बनाए, और यह सोच-समझकर बनाए कि उन्हें प्रतिबंधित किया जा सकता है, लेकिन प्रतिबंध आने के पहले तक का मुफ्त का प्रचार पाना भी एक बड़ी बात रहती है.

भारत में भी हाल के बरसों में कामयाब और चर्चित हुई एक अभिनेत्री, स्वरा भास्कर, ने फिल्मी दुनिया में अपने पहले दिन से लेकर अब तक लगातार राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों पर खुलकर अपनी सोच रखी है, देश की साम्प्रदायिक ताकतों के खिलाफ एक हल्ला बोला है, और सोशल मीडिया पर लाखों लोगों की गालियां खाई हैं. स्वरा भास्कर के कई बयानों को देश के साथ गद्दारी करार देते हुए नफरतजीवी साम्प्रदायिक लोगों ने सोशल मीडिया पर ऐसा अभियान भी छेड़ा था कि उनकी फिल्मों का बहिष्कार किया जाए.

इन लोगों ने यह भी अभियान चलाया कि स्वरा भास्कर जिन सामानों के इश्तहारों में मॉडलिंग करती हैं, उन सामानों का भी बहिष्कार किया जाए. लेकिन महीनों के ऐसे अभियान के बावजूद अब तक यह सुनाई नहीं पड़ा कि किसी ने उन्हें अपने फिल्म से निकाला हो, या अपने इश्तहार से. मतलब यह कि बाजार को बुरी पब्लिसिटी काटती नहीं है.

लेकिन हम एक दूसरे हिसाब से देखें तो सवाल यह है कि किसी देश की सामाजिक हकीकत पर चोट करने वाले लोगों का अगर ऐसा ही बहिष्कार करना उस देश की सोच है, तो वह सोच कमजोर है, और गैरजिम्मेदार है. अमरीका में रंगभेद नहीं है, लिंगभेद नहीं है, या हिन्दुस्तान में धर्मभेद नहीं है, जातिभेद नहीं है, ऐसा सोचना बेवकूफों की दुनिया में जीने के अलावा और कुछ नहीं है.

अब सवाल यह उठता है कि कोई अमरीकी खिलाड़ी, या कि प्रकाश राज सरीखा कोई हिन्दुस्तानी अभिनेता अगर अपने देश के राजनीतिक-सामाजिक अन्याय के खिलाफ मुखर होकर कुछ बोलता है, तो क्या इससे उसके कामकाज का बहिष्कार कर दिया जाए? उससे जुड़े कारोबार का बहिष्कार कर दिया जाए?

कारोबार की दुनिया और लोगों की समझ को देखें तो कई मामलों में तरस भी आता है. फिल्मों में महज बलात्कारी किरदारों के लिए जाने जाने वाले एक खलनायक, शक्ति कपूर, को इन दिनों कई सामानों की मॉडलिंग में देखा जा सकता है. जो विलेन फिल्मों से भी बाहर हो चुका है, उसे अचानक इतना लोकप्रिय कैसे मान लिया गया? और खासकर एक वारदात के बाद जिसमें इस खलनायक के खिलाफ असल जिंदगी में एक महिला द्वारा पुलिस में की गई शिकायत में कहा गया था कि वह उससे सेक्स की नाजायज कोशिश कर रहा था.

आज से दस बरस से अधिक पहले शक्ति कपूर का एक ऐसा स्टिंग ऑपरेशन सामने आया था जिसमें वह एक महिला को फिल्म उद्योग में अच्छे मौके दिलाने के एवज में सेक्स मांगते हुए वीडियो पर कैद हुआ था.

अब फिल्मी जिंदगी से लेकर असल जिंदगी तक का ऐसा खलनायक आज सुबह से रात तक टीवी पर आधा दर्जन से अधिक सामान बेचते दिखता है, और इनमें से एक-दो इश्तहार तो ऐसे हैं जो कि उसकी बलात्कारी इमेज की तरफ इशारा करने वाले भी हैं. ये इश्तहार घर-घर में टीवी पर देखे जाते हैं, और अभी तक देश में किसी ने इसके खिलाफ कोई अभियान नहीं चलाया. देश की सामूहिक जनचेतना का हाल ऐसा है.

इसी से जुड़ी हुई एक दूसरी बात यह है कि हाल में आई एक गंभीर फिल्म में स्वरा भास्कर के खुद से सेक्स के एक सीन को बिना नग्नता और अश्लीलता के दिखाया गया है. इसे लेकर उन्हें देश की संस्कृति के खिलाफ गद्दार बता दिया गया, और समाज को तबाह करने वाला करार दिया गया.

यह एक प्राकृतिक और निजी जरूरत का सीन था, लेकिन दूसरी तरफ अनगिनत बलात्कार के किरदार निभाने वाले परेश रावल संसद पहुंच जाते हैं, और अनुपम खेर भी सरकार के दिए हुए एक बड़े ओहदे पर पहुंच जाते हैं. मतलब यह कि इस समाज में बलात्कार के सीन अधिक प्राकृतिक और मंजूर करने लायक हैं, लेकिन खुद से किसी अहिंसक-सेक्स के सीन बर्दाश्त के लायक नहीं है.

अमरीका में लोगों के एक बड़े तबके के बीच रंगभेद की हिंसा को लेकर समझ बहुत कमजोर हैं. कई धर्मों को लेकर समझ कमजोर है, और दुनिया के दूसरे देशों के हक को लेकर तो समझ सबसे ही कमजोर है. ऐसे में अगर कोई खिलाड़ी रंगभेद के मुद्दे को उठाने के लिए राष्ट्रगान के बीच घुटने टेककर एक प्रतीकात्मक विरोध करता है, तो उसे मानो गद्दार मानते हुए उसके इश्तहार वाले सामानों का बहिष्कार किया जाता है.

बाजार और इश्तहार को लेकर उठे हुए ऐसे विवाद, चाहे वे दुनिया के गोले के दूसरी तरफ ही क्यों न हों, उन्हें लेकर बाकी देशों में भी अपने-अपने हालात पर सोचने-समझने की जरूरत है.
* लेखक वरिष्ठ पत्रकार और शाम के अखबार छत्तीसगढ़ के संपादक हैं.

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