राष्ट्रपति ने याचिका खारिज की
नई दिल्ली | संवाददाता: राष्ट्रपति ने याकूब मेमन की दया याचिका बुधवार खारिज कर दी है. इसके साछ ही याकूब मेमन को गुरुवार सुबह सात बजे नागपुर के सेन्ट्रल जेल में फांसी देने की तैयारी शुरु कर दी गई है. इसी बीच, याकूब के वकील ने सुप्रीम कोर्ट में फिर से अर्जी देकर फांसी की सजा पर 14 दिनों तक रोक की मांग की है. चीफ जस्टिस बुधवार और गुरुवार की दरमियानी रात 2 बजे सुनवाई कर सकते हैं. याकूब के वकील ने मांग की है कि उसकी फांसी की सजा पर 14 दिनों की रोक लगाई जाए. उनका मानना है कि दया याचिका खारिज करते वक्त नए तथ्यों पर विचार नहीं हुआ. सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण चीफ जस्टिस के आवास पर मुलाकात करने पहुंचे हैं. इससे पहले सर्वोच्च न्यायालय ने मुंबई में 1993 में हुए श्रृंखलाबद्ध बम विस्फोटों के मामले के दोषी याकूब मेमन की फांसी पर रोक लगाने की मांग करने वाली याचिका बुधवार को खारिज कर दी और इसके साथ ही उसे गुरुवार को फांसी देने का रास्ता साफ हो गया है.
भारतीय जनता पार्टी तथा कांग्रेस ने कहा कि कानूनी प्रक्रियाओं का पालन किया जाएगा, लेकिन ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन ने कहा है कि राजनीतिक समर्थन की कमी के कारण ही मेमन को फांसी दी जा रही है.
सर्वोच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति प्रफुल्ल सी.पंत तथा न्यायमूर्ति अमिताव राव की पीठ ने मेमन की याचिका खारिज करते हुए कहा, “मृत्यु वारंट गलत नहीं ठहराया जा सकता.”
न्यायालय के फैसले के मद्देनजर, महाराष्ट्र के राज्यपाल सी.वी.राव ने भी याकूब की दया याचिका खारिज कर दी है. इसके साथ ही याकूब को फांसी का रास्ता साफ हो गया है.
याकूब की याचिकाएं खारिज होने के साथ ही महाराष्ट्र सरकार ने नागपुर केंद्रीय कारागार में गुरुवार सुबह सात बजे मेमन को फांसी देने की तैयारी पूरी कर ली है
राज्य सरकार ने किसी अप्रिय घटना को टालने के लिए जेल परिसर में तथा बाहर, मुंबई के माहिम स्थित मेमन के घर के बाहर तथा राज्य भर में अन्य संवेदनशील जगहों पर अतिरिक्त सुरक्षाबल तैनात कर रखे हैं.
आदेश की घोषणा करते हुए न्यायमूर्ति मिश्रा ने कहा, “टाडा अदालत द्वारा 30 अप्रैल को जारी मृत्यु वारंट में हमें कोई कानूनी त्रुटि नजर नहीं आती.”
मेमन की याचिका पर और एक पीठ (जिसने मेमन की क्यूरेटिव याचिका पर सुनवाई की थी और इसे 21 जुलाई, 2015 को खारिज कर दिया था) के औचित्य पर एक खंडपीठ द्वारा दिए गए एक संदर्भ पर दिनभर चली सुनवाई के बाद यह आदेश दिया गया.
यह संदर्भ न्यायमूर्ति अनिल आर.दवे और न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ के बीच मेमन की याचिका पर मंगलवार को सुनवाई के बाद पैदा हुए मतभेद के बाद आया था.
न्यायालय ने संदर्भ के बारे में कहा कि क्युरेटिव याचिका पर तीन वरिष्ठ न्यायाधीशों के फैसले को इस न्यायालय द्वारा निर्धारित सिद्धांत के लिहाज से अनुचित नहीं कहा जा सकता है. यह सिद्धांत इस न्यायालय ने चर्चित हुर्रा मामले में तय किए थे.
मेमन को 12 मार्च, 1993 को मुंबई में हुए श्रंखलाबद्ध बम विस्फोट का दोषी पाया गया है. टाडा अदालत ने जुलाई, 2007 में मेमन और 11 अन्य को मुंबई विस्फोट (1993) मामले में मृत्युदंड सुनाया था, जिस घटना में 257 लोगों की मौत हो गई थी और 712 लोग घायल हो गए थे.
सर्वोच्च न्यायालय ने 21 मार्च, 2013 को मेमन की मौत की सजा को बरकरार रखा था, जबकि अन्य की मौत की सजा को आजीवन कारावास में तब्दील कर दिया था. एक दोषी की बाद में मौत हो गई.
मेमन की क्युरेटिव याचिका 21 जुलाई को सर्वोच्च न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति एच.एल.दत्तू, न्यायमूर्ति टी.एस.ठाकुर तथा न्यायमूर्ति अनिल आर.दवे की पीठ ने खारिज कर दी थी.
प्रख्यात नागरिकों तथा चार राजनीतिक पार्टियों के नेता उन 200 लोगों में शामिल थे, जिन्होंने राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को दया याचिका पर फिर से विचार करने की अपील की थी.
इनमें भाजपा के शत्रुघ्न सिन्हा, कांग्रेस के मणिशंकर अय्यर, माकपा के सीताराम येचुरी, भाकपा के डी.राजा, अभिनेता नसीरूद्दीन शाह, फिल्म निर्माता महेश भट्ट, सामाजिक कार्यकर्ता तुषार गांधी, वकील वृंदा ग्रोवर तथा अर्थशास्त्री जीन ड्रेज शामिल थे.
फैसले पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए भाजपा के नलिन कोहली ने कहा, “सर्वोच्च न्यायालय ने जो भी कहा उसे आपको स्वीकार करना चाहिए.”
इस बीच, एआईएमआईएम के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि 1993 में मुंबई में हुए सिलसिलेवार बम विस्फोट के दोषी याकूब मेमन को मृत्युदंड इसलिए मिला है, क्योंकि उसके पास किसी प्रकार का राजनीतिक समर्थन नहीं है. ओवैसी के मुताबिक याकूब के पास पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी और पंजाब के मुख्यमंत्री बेअंत सिंह के हत्यारों की तरह राजनीतिक समर्थन नहीं है.