Columnist

बदलाव के लिए तैयार हो जाओ

फौज़िया रहमान खान
“बदलाव के लिए तैयार हो जाओ” इस नारे के साथ कुछ समय पहले देश भर में विश्व महिला दिवस का आयोजन किया गया. परंतु महत्वपूर्ण बात यह है कि बदलाव की प्रक्रिया तब तक पूरी नही हो सकती जब तक शिक्षा उसके साथ जुड़ न जाए. इस सिलसिले में जेंडर और शिक्षा क्षेत्र में 1993 से काम करने वाली गैर सरकारी संगठन निरन्तर की रिपोर्ट बताती है कि “भारत में 28.7 करोड़ व्यस्क ऐसे हैं जो पढ़ लिख नहीं सकते, यह आबादी दुनिया भर में सबसे अधिक है, प्रतिशत के हिसाब से आकलन किया जाए तो यह दुनिया की कुल आबादी का 37 फीसदी है.” विशेषकर लड़कियों की शिक्षा की बात की जाए तो साल 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में महिलाओं की साक्षरता दर 65.46 प्रतिशत है, जबकि पुरुषों की साक्षरता दर 80 प्रतिशत से अधिक है. निरन्तर के अनुसार “हाल ही में भारत सरकार ने” “साक्षर भारत अभियान” को वर्ष 2017 में बंद करने का फैसला लिया है”.

ऐसे में शिक्षा के क्षेत्र में समाज में महिलाओं की स्थिति की समीक्षा की जाए तो मालुम होता है कि आज भी हमारे समाज में कुछ लोगों ने महिला को सिर्फ घर का काम करने वाली नौकरानी से ज्यादा महत्व नहीं दिया है. यही कारण है कि आज भी महिलाएं पुरुषों के सामने कमजोर मानी जाती हैं. ध्यान देने योग्य बात यह है कि जो आदमी अपनी पत्नी, बेटी और बहन को अज्ञानी और अशिक्षित समझ कर ताने देता हैं वही दूसरी महिलाओं की सराहना करते नहीं थकते कि वो डॉक्टर है, मास्टर है, इंजीनियर है आदि. हालांकि पुरुष ताना देने के बजाय उन्हें भी इस योग्य बनाने में उनकी मदद करें तो कोई भी औरत अशिक्षित न रहे. पत्नी, बेटी और बहन को आगे बढ़ने का मौका दें, उन्हें भी नौकरी करने के योग्य बनाए. मगर सवाल यह उठता है कि आखिर खुद महिला क्या चाहती हैं? वह नौकरी करना चाहती हैं या घरेलू महिला के रुप मे ही खुद को स्थापित करना चाहती है?

इस संबंध में दिल्ली स्थित जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय से फाइन आर्टस में मास्टर करने वाली कहकशां प्रवीण कहती हैं कि “लड़कियों को नौकरी करनी चाहिए, क्योंकि लड़कियों का सशक्त होना जरूरी है. नौकरी के कारण वह आर्थिक रूप से स्वतंत्र महसूस करती हैं. जीवन में कोई परेशानी आए तो वह खुद इसका सामना कर सकती हैं. खासकर शादी के बाद नौकरी करने से उनकी और उनके घर वालों की आर्थिक सहायता भी होती है”.

अंग्रेजी भाषा में मास्टर डिग्री प्राप्त कर चुकी सरिता कुमारी के अनुसार “बेशक महिलाओं को नौकरी करनी चाहिए. नौकरी करने से न केवल हमारी ज़रुरते पूरी होती हैं, बल्कि आत्म सम्मान भी बरकरार रहता है. अपने पैरों पर खड़े होंगे तो किसी के सामने हाथ फैलाने की जरूरत नहीं पड़ेगी और आत्मविश्वास भी बना रहेगा”.

बिहार के जिला दरभंगा की निवासी और मीथला विश्वविद्यालय से अंग्रेजी में एमए की पढ़ाई करने वाली कविता कुमारी बताती हैं “महिलाओं को नौकरी करनी चाहिए ताकि कभी घर वालों पर कोई परेशानी आए तो वह खुद भी उनकी मदद कर सकें किसी और पर निर्भर न रहना पड़े. काम करने से उनकी पहचान बनेगी. और बहुत कुछ सीखने को मिलेगा. शादी के बाद लड़कियां माता पिता की शारीरिक सेवा नहीं कर पाती पर काम के कारण दूर रहकर उनकी आर्थिक मदद कर सकती हैं और ऐसे में उनके ससुराल वालों को भी कोई परेशानी नहीं होनी चाहिए”.

पत्रकारिता का कोर्स करके दूरदर्शन में नौकरी करने वाली नाज़िया खान जोशीले अंदाज में कहती हैं कि “मैं नौकरी करके बहुत खुश हूँ मुझे नौकरी करने में कोई परेशानी नहीं होती, हमारे घर वालों को भी कोई परेशानी नहीं है बल्कि वे लोग भी खुश हैं और मेरी समझ से हर लड़की को शिक्षा के बाद नौकरी करनी ही चाहिए”.

सरकारी मिडिल स्कूल हमजा पुर, शेरघाटी जिला गया की वरिष्ठ शिक्षिका रोख्साना खातून कहती हैं कि “महिलाएं कभी घर की शोभा हुआ करती थीं और आज भी हैं मगर महिलाओं को नौकरी करनी चाहिए क्योंकि इस महंगाई के दौर में बच्चों की शिक्षा पर जितना खर्च होता है उसकी भरपाई एक कमाई में होना मुश्किल है. इसलिए महिलाओं को भी नौकरी करनी चाहिए. दूसरा कारण यह भी है कि नौकरी नहीं करने से उनकी प्राप्त की गयी शिक्षा बेकार हो जाती है वह जो भी पढ़ाई करती है उसका कोई फायदा नहीं होता है. हां नौकरी में कुछ परेशानियां होती हैं जैसे हम अगर कहीं जाना चाहें तो नौकरी की जिम्मेदारियों की वजह से नहीं जा सकते. अंत में हम ये कह सकते हैं कि नौकरी में कुछ नुकसान और कुछ लाभ दोनों ही हैं, लेकिन मैं अपने काम करने और न करने वाले ज़माने की तुलना करते हुए अपनी बहनों को यही सलाह देना चाहती हूं कि महिलाओं को नौकरी जरूर करनी चाहिए.

उपर्युक्त महिलाओं की बातों से अनुमान लगाया जा सकता है कि एक समय तक अपने घरों में कैद रहकर घर के किसी कोने में सिसकियाँ बहाने वाली महिलाओं ने अब यह तय कर लिया है कि हम अपने खून को आंसुओं के रूप में बर्बाद करने के बजाय सकारात्मक बदलाव का रुख अपनाते हुए कामयाब होंगें. निसंदेह महिलाएं संदेश दे रही हैं कि बदलाव के लिए तैयारी करने का समय आ चुका है. (चरखा फीचर्स)

error: Content is protected !!