केंद्र, छत्तीसगढ़ और ओडिशा में भाजपा सरकार: सुलझेगा महानदी का विवाद ?
रायपुर | आलोक पुतुल: केंद्र और छत्तीसगढ़ के बाद अब ओडिशा में भी भाजपा की सरकार के बाद क्या महानदी का विवाद सुलझेगा? कम से कम केंद्रीय जल शक्ति मंत्री सी.आर. पाटिल ने भरोसा जताया है कि 87 साल पुराना विवाद सुलझ सकता है.
ओडिशा के दौरे पर पहुंचे केंद्रीय जल शक्ति मंत्री सी.आर. पाटिल ने कहा-“हम एक निष्पक्ष और न्यायसंगत समाधान खोजने के लिए प्रतिबद्ध हैं जो दोनों राज्यों को लाभान्वित करे.”
1937 में हीराकुंड बांध के निर्माण के समय पहली बार महानदी के पानी को लेकर बात शुरु हुई थी. पिछले 87 सालों में महानदी का जाने कितना पानी बह गया लेकिन ओडिशा और तब के मध्यप्रदेश और अब के छत्तीसगढ़ के बीच का विवाद आज तक नहीं सुलझ पाया.
सरकारी दस्तावेज़ों की मानें तो महानदी विवाद को सुलझाने की सबसे बेहतर पहल 1973 में हुई थी. लेकिन जून 1973 में तत्कालीन मध्यप्रदेश और ओडिशा के बीच समझौते में शामिल अधिकांश अधिकारी-कर्मचारी सेवानिवृत्त हो गए.
उस समझौते की फाइलें धरी रह गईं. 28 अप्रैल 1983 को तत्कालीन मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह और ओडिशा के मुख्यमंत्री जेबी पटनायक के बीच महानदी को लेकर किए गए जिस समझौते का हवाला बार-बार दिया जाता है, उसे भी 40 साल हो गए. दोनों दूरदर्शी कहे जाने वाले नेता, अब इस दुनिया में नहीं हैं लेकिन यह समझौता आज तक फाइलों से निकल कर ज़मीन पर लागू नहीं हो पाया.
कहा जाता है कि राजनीतिक खिंचतान के चक्कर में महानदी का विवाद उलझा रहा है. अब जबकि छत्तीसगढ़, ओडिशा और केंद्र, तीनों ही जगह पर भाजपा की सरकार है, ऐसे में क्या महानदी का विवाद सुलझेगा?
क्या है महानदी का विवाद
छत्तीसगढ़ के धमतरी ज़िले के सिहावा पर्वत से निकलने वाली महानदी, देश का आठवां बड़ा बेसिन है, जिसका कुल जलग्रहण या अपवाह क्षेत्र 139681.51 वर्ग किलोमीटर है. यह देश के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का लगभग 4.28 प्रतिशत है.
साल 2011 की जनगणना के अनुसार महानदी नदी घाटी इलाके में लगभग 30 लाख की आबादी निवास करती है, जिसकी आजीविका खेती पर निर्भर है और ज़ाहिर तौर पर खेती के लिए उनकी निर्भरता इसी महानदी के पानी पर है.
छत्तीसगढ़ के सिहावा से निकल कर बंगाल की खाड़ी तक महानदी 851 किलोमीटर का फासला तय करती है. महानदी का कुल 52.42 प्रतिशत हिस्सा (73214.52 वर्ग किलोमीटर) छत्तीसगढ़ में है, वहीं 47.14 प्रतिशत हिस्सा (65847.28 वर्ग किलोमीटर) ओडिशा, 0.23 प्रतिशत (322.38 वर्ग किलोमीटर) महाराष्ट्र, 0.11 प्रतिशत (151.78 वर्ग किलोमीटर) मध्यप्रदेश और 0.1 प्रतिशत हिस्सा (145.56 वर्ग किलोमीटर) झारखंड में है.
शिवनाथ, हसदेव, मांड, ईब, केलो, बोरई, पैरी, जोंक, सूखा, कंजी, लीलार, लात, तेल और ओंग, महानदी की सहायक नदियां हैं.
महानदी पर 253 बांध, 14 बैराज, 13 एनिकट और 6 बिजली संयंत्र बने हुए हैं. इसी महानदी पर छत्तीसगढ़ के कोरबा में 87 मीटर ऊंचा मिनीमाता हसदेव बांगो बांध बना हुआ है, वहीं ओडिशा में 4800 मीटर की लंबाई वाला हीराकुंड बांध बना हुआ है.
दोनों राज्यों की तांदुला, महानदी मुख्य कैनाल, खारंग, मनियारी, हसदेव-बांगो, तैरी, कोडार, सलकी, ओंग, सुंदर डैम जैसी 24 बड़ी और 50 मध्यम सिंचाई परियोजनाएं इसी महानदी के सहारे हैं. दोनों राज्यों की बड़ी आबादी खेती-बाड़ी से लेकर पेयजल तक के लिए महानदी पर निर्भर है. छत्तीसगढ़ की अधिकांश बिजली परियोजनाओं से लेकर कई बड़े उद्योग भी इसी महानदी के भरोसे हैं.
ओडिशा की आपत्ति
ओडिशा का आरोप है कि पिछले 50 सालों में महानदी पर छत्तीसगढ़ में एक के बाद एक बांध बनते गए. इसके अलावा बिजली और उद्योगों के लिए महानदी के पानी का उपयोग होने से ओडिशा में नदी का प्रवाह कम हो गया है. इसके कारण खेती तो प्रभावित हो ही रही है, पेयजल का भी संकट पैदा होने लगा है.
इस मुद्दे पर ओडिशा में पिछले कई सालों से जन आंदोलन चल रहे हैं. महानदी के जल संकट को सुलझाने के मुद्दे पर नागरिक संगठन पिछले कुछ सालों से सैकड़ों अध्ययन, ज्ञापन, धरना, प्रदर्शन कर चुके हैं लेकिन अब तक कोई रास्ता नहीं निकल पाया है.
छोटी बांध परियोजनाओं तक तो बात बयानों तक रही लेकिन छत्तीसगढ़ ने चार बड़ी परियोजनाओं पर जब काम शुरु किया तो ओडिशा में विरोध के स्वर उभरे. इसमें केलो डैम, टेरी महानदी, तांदुला रिज़रवॉयर और तांदुला बांध शामिल था.
साल 2009 में केलो डैम के अलावा किसी भी परियोजना को केंद्रीय जल आयोग से मंजूरी नहीं दी गई. लेकिन छत्तीसगढ़ सरकार ने इस मंजूरी के बिना ही तांदुला बांध के निर्माण की गतिविधियां शुरु कर दीं.
ओडिशा के तत्कालीन मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने छत्तीसगढ़ में बनने वाले बांध और बैराज पर रोक लगाने के लिए प्रधानमंत्री को कई अवसरों पर चिट्ठियां लिखीं.
इसके उलट छत्तीसगढ़ सरकार दावा करती रही कि इन तमाम बैराज और बांधों का निर्माण केवल छत्तीसगढ़ में पानी की जरुरतों को पूरा करने के लिए किया जा रहा है, इससे ओडिशा को कोई नुकसान नहीं होगा. छत्तीसगढ़ ने 10 सालों के पानी के प्रवाह का हवाला देते हुए दावा किया कि ओडिशा में पानी की कोई कमी नहीं है.
छत्तीसगढ़ का तर्क है कि महानदी के जलग्रहण क्षेत्र का 52.9% और हीराकुंड तक के जलग्रहण क्षेत्र का 89.9% हिस्सा उनके राज्य में आता है और उन्हें महानदी के पानी का उपयोग करने का अधिकार है. छत्तीसगढ़ सरकार का आरोप है कि ओडिशा ने छत्तीसगढ़ को बताए बिना कई बड़ी और मध्यम परियोजनाएं भी शुरू कर दी हैं, जिसके कारण यह संकट पैदा हुआ है.
प्राधिकरण का गठन
विवाद बढ़ा तो 17 सितंबर 2016 को छत्तीसगढ़ और ओडिशा के मुख्यमंत्रियों की केंद्र सरकार की मध्यस्थता में महानदी के पानी को लेकर बैठक में सहमति बनी कि 1983 में प्रस्तावित प्राधिकरण कम से कम अब बना लिया जाए. ओडिशा ने शर्त रखी कि इस बीच छत्तीसगढ़, अपने राज्य में बांधों के निर्माण का कार्य बंद रखेगा. लेकिन बात नहीं बनी.
ओडिशा ने 2016-17 में एक अध्ययन के बाद दावा किया कि पिछले 10 सालों के औसत तुलना में, गैर मानसून दिनों में ओडिशा के इलाके में महानदी के जल प्रवाह में नवंबर 2016 में 41.1%, दिसंबर 2016 में 32.9%, जनवरी 2017 में 30.9%,फरवरी 2017 में 39.2%, मार्च 2017 में 27.6%, अप्रैल 2017 में 73% और मई 2017 में 77.8% कमी पाई गई.
ओडिशा सरकार ने केंद्र सरकार से मांग की कि वह महानदी की समस्या को सुलझाने के लिए अंतरराज्यीय नदी जल विवाद अधिनियम, 1956 के अंतर्गत महानदी जल विवाद अधिकरण का गठन करे. लेकिन अधिकरण के गठन पर कोई कार्रवाई नहीं हुई.
अंततः मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा और 24 जनवरी 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को एक महीने के भीतर महानदी जल विवाद अधिकरण के गठन का निर्देश दिया.
साल भर पहले इस प्राधिकरण के अध्यक्ष और अन्य सदस्यों ने दोनों राज्यों का दौरा किया, मौके पर पानी की समस्या को देखा, बांधों का अवलोकन किया. लेकिन वह भी अब फाइलों का हिस्सा है.
इस प्राधिकरण का कार्यकाल 13 अप्रैल 2026 तक के लिए बढ़ा दिया गया है.
मतलब ये कि अभी कुछ सालों तक तो महानदी के विवाद की धारा जस की तस बनी रहेगी. ओडिशा की सरकार और छत्तीसगढ़ की सरकार के साथ-साथ केंद्र सरकार भी, अभी पानी और पानी का धार देखेगी.