असम से छत्तीसगढ़ लाए वनभैंसों की आबादी बढ़ कर हुई 8
रायपुर | संवाददाता: छत्तीसगढ़ के राजकीय पशु वनभैंसा का कुनबा धीरे-धीरे बढ़ रहा है. असम के मानस से लाए गए वन भैंसों की आबादी में दो की बढ़ोत्तरी हुई है. पिछले दो महीनों में दो नये वनभैंसों के जन्म के साथ ही बारनवापारा में रखे गए वनभैंसों की संख्या बढ़ कर आठ हो गई है.
हालांकि इन वन भैंसों को लंबे समय से बारनवापारा में बनाए गए बाड़े में रखा गया है. जबकि इन वनभैंसों को 45 दिनों में खुले जंगल में छोड़ने की शर्त पर लाया गया था.
असम के मानस से अप्रैल 2020 में एक नर और एक मादा वनभैंसा लाया गया था. बाद में अप्रैल 2023 में चार और मादा वनभैंसों को छत्तीसगढ़ लाया गया.
इन सभी को बारनवापारा में रखा गया है, जहां अगस्त के महीने में पहले बच्चे का जन्म हुआ.
इसके बाद पिछले महीने एक और बच्चे का जन्म हुआ.
लुप्तप्राय वनभैंसा
भारत के वन्यजीव संरक्षण क़ानून 1972 के तहत अनुसूची 1 में श्रेणीबद्ध, वनभैंस यानी Bubalus arnee को इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंज़रवेशन ऑफ नेचर की रेड डेटा बुक में लुप्तप्राय के रूप में सूचीबद्ध किया गया है.
अपने लंबे सींग और 150-190 सेंटीमीटर की ऊंचाई वाले वनभैंस का वजन 800 से 1200 किलोग्राम तक होता है. हालांकि मादा वनभैंस का वजन इसकी तुलना में कम होता है. लगातार होने वाले शिकार, प्राकृतिक रहवास क्षेत्र में परिवर्तन, पालतु भैंसों के साथ संसर्ग के कारण अनुवांशिक विकार और बीमारियों के कारण वनभैंस की नस्ल पूरी दुनिया में सिमटती चली गई है. माना जाता है कि आज की तारीख़ में पूरी दुनिया में वनभैंसों की संख्या चार हज़ार से भी कम है.
किसी समय नेपाल, बांग्लादेश, श्रीलंका, भूटान, थाइलैंड, वियतनाम, कंबोडिया, म्यांमार, जावा, सुमात्रा, मलेशिया जैसे देशों में वनभैंस बड़ी संख्या में पाये जाते थे. लेकिन पिछली शताब्दी में ही यह वनभैंस कई देशों के नक़्शे से गायब हो गये. हालत ये है कि हाथी और गेंडा के बाद भारत में पाया जाने वाला सबसे बड़ा स्तनपायी जानवर वनभैंस, आज अपना अस्तित्व बचाने के लिए जूझ रहा है.
आधी सदी पहले तक भारत में अरुणाचल प्रदेश, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, आंध्रप्रदेश, महाराष्ट्र और बिहार के इलाकों में वनभैंसों की अच्छी आबादी के प्रमाण मिलते हैं. लेकिन धीरे-धीरे इन राज्यों में वनभैंसों की संख्या कम होती चली गई. विशेषज्ञों का कहना है कि भारत में वनभैंसों की शुद्ध नस्ल अब केवल असम और छत्तीसगढ़ में ही बची हुई है.
छत्तीसगढ़ यानी वन भैंसों का स्थाई निवास
वन विभाग के दस्तावेज़ों के अनुसार छत्तीसगढ़ का उदंती सीतानदी टाइगर रिज़र्व वनभैंसों का प्राकृतिक रहवास रहा है.
दस्तावेज बताते हैं कि पहले यह पूरा जंगल बिंद्रानवागढ़ ज़मींदारी में था, जहां 25 रुपये का शुल्क दे कर कोई भी शिकार कर सकता था. 27.08.1935 को अधिसूचना क्रमांक 1905-1517-4 जारी कर सरकार ने वनभैंसों के शिकार पर रोक लगा दी. लेकिन इस ज़मींदारी में शिकारियों को एक गौर, एक बारहसिंघा, दो हिरण और एक सांभर के शिकार की अनुमति थी.
जमींदारी प्रथा के अंत के बाद 19.08.1953 को अधिसूचना क्रमांक 788-2319 जारी कर शिकार के नियमों में बदलाव लाया गया. इसके तहत सरकार की अनुमति से वनभैंसों का शिकार किया जा सकता था लेकिन गौर के शिकार की अनुमति नहीं थी. 1955 के शिकार नियमों में निर्धारित शुल्क जमा कर, गौर, जंगली भैंस, बारहसिंघा, बाघ, सांभर, तेंदुआ, भालू और चीतल का शिकार किया जा सकता था. लेकिन 11.11.1971 के अधिसूचना क्रमांक 6036-10 (2) 71 जारी कर के शिकार पर रोक लगा दी गई. लेकिन तब तक शायद देर हो चुकी थी.
वन विभाग ने अविभाजित मध्य प्रदेश में इस पूरे इलाके में 1986-87 में 240 वनभैंसों की उपस्थिति का दावा किया था. लेकिन साल भर बाद, 1988 में स्वतंत्र वन्यजीव विशेषज्ञों ने कहा कि राज्य में केवल 104 वनभैंसे हैं. नवंबर 2000 में छत्तीसगढ़ अलग राज्य बनने और वनभैंस को राजकीय पशु का दर्ज़ा दिए जाने के बाद यह संख्या और घटती चली गई और 2004 तक पूरे मध्य भारत में वनभैंसों की कुल संख्या 70 से भी कम रह गई.
नहीं हो सकी गणना
उदंती सीतानदी टाइगर रिज़र्व और इंद्रावती टाइगर रिज़र्व के इलाकों में वनभैंसों की उपस्थिति के दावे के बीच यहां वनभैंसों की गणना का फैसला लिया गया. माओवादी गतिविधियों के कारण इंद्रावती में तो वनभैंसों का सर्वेक्षण करने से वन विभाग बचता रहा लेकिन उदंती-सीतानदी में 2007 में जब वन भैंसों का सर्वेक्षण किया गया तो वहां कुल जमा सात वन भैंसे मिले, जिसमें केवल एक मादा थी.
इसके बाद आनन-फानन में राज्य सरकार ने वनभैंसों के संरक्षण और संवर्धन के लिए एक टास्क फोर्स का निर्माण किया और वाइल्ड लाइफ़ ट्रस्ट ऑफ इंडिया के साथ मिल कर वनभैंसों को बचाने का अभियान शुरु किया गया.
तमाम कोशिशों के बाद भी जब 15 सालों में राज्य में वन भैंसों की संख्या में अपेक्षित वृद्धि नहीं हुई तो राज्य के इंद्रावती टाइगर रिज़र्व में देखे गये वनभैंसों को ला कर वंशवृद्धि की चर्चा शुरु हुई लेकिन यह बात आगे नहीं बढ़ पाई और इसे अज्ञात कारणों से बंद करके वन विभाग ने असम से वनभैसों के आयात की योजना बनाई.
इसके लिए पहले असम के वनभैंसों जेनेटिक अध्ययन किया गया. केंद्र और असम सरकार की औपचारिक सहमति के बाद 1900 किलोमीटर दूर, असम के मानस राष्ट्रीय उद्यान से वन भैंसों को छत्तीसगढ़ लाया गया.