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प. बंगाल: भाजपा की डगर कठिन

कोलकाता | एजेंसी: ताजा हालात के मुताबिक पश्चिम बंगाल में भाजपा के दिल्ली अभी दूर प्रतीत हो रही है. लोकसभा चुनाव में भाजपा ने जो बढ़त हासिल की थी इसे शारदा घोटाले में चल रही ढ़ीले-ढ़ाले रवैये के कारण वह खोती जा रही है. पार्टी के भीतर जमकर चल रही गुटबाजी, तृणमूल कांग्रेस की ओर अनुमानित झुकाव और हाल में हुए निकाय चुनाव में बेहद खराब प्रदर्शन को देखते हुए पश्चिम बंगाल में भारतीय जनता पार्टी की लोकप्रियता घटती नजर आ रही है. हालत लोकसभा चुनाव के बाद पार्टी द्वारा बढ़-चढ़ कर किए गए दावे के बिल्कुल उलट है.

लोकसभा चुनाव-2014 में पार्टी को पश्चिम बंगाल में भी काफी लाभ मिला और 2009 के चुनाव की अपेक्षा भाजपा का राज्य में मत प्रतिशत छह फीसदी बढ़कर 16.8 हो गया.

लोकसभा चुनाव में मिली सफलता के बाद भाजपा ने बड़बोलापन अपनाते हुए अगले वर्ष होने वाले विधानसभा चुनाव में बहुमत हासिल करने का दावा तक कर डाला.

भाजपा को पिछले वर्ष सितंबर में छोटी सी सफलता तब मिली थी, जब बसीरहाट दक्षिण उपचुनाव में पार्टी प्रत्याशी शामिक भट्टाचार्य ने जीत हासिल की.

राज्य विधानसभा में 15 वर्ष बाद शामिक भाजपा के दूसरे विधायक के तौर पर पहुंचे.

भाजपा अध्यक्ष अमित शाह और दूसरे नेता उसके बाद से ही दावा करने लगे थे कि राज्य में तृणमूल की उलटी गिनती शुरू हो चुकी है.

राज्य में खुद को तृणमूल के एकमात्र विकल्प के रूप में जोरदार तरीके से पेश कर रही भाजपा को निकाय चुनाव में राज्य के 2,090 वार्ड में से सिर्फ चार फीसदी सीटों पर ही जीत मिली. यहां तक कि पार्टी 91 निकायों में से एक पर भी जीत हासिल नहीं कर सकी.

कोलकाता नगर निगम के 144 वार्डो में से भाजपा को सिर्फ सात पर जीत हासिल हुई.

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि भाजपा ने राज्य में अपनी स्थिति मजबूत करने का अवसर गंवा दिया है.

राजनीतिक विश्लेषक विश्वनाथ चक्रवर्ती ने भाजपा की राज्य में घट रही लोकप्रियता के पीछे शारदा चिटफंड घोटाले में कड़ा रुख अख्तियार न करने को बड़ा कारण बताया है.

रवींद्र भारती विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान के प्राध्यापक चक्रवर्ती ने कहा, “भाजपा राज्य में अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए शारदा घोटाले का इस्तेमाल कर सकती थी. हालांकि इस मामले में कमजोर रवैया अपनाने का ही पार्टी को खामियाजा भुगतना पड़ा है.”

शारदा घोटाले में केंद्रीय जांच ब्यूरो द्वारा तृणमूल कांग्रेस के कई नेताओं एवं सांसदों की गिरफ्तारी और पूछताछ के बावजूद मामले में सीबीआई जांच की प्रगति काफी धीमी रही है, जिस कारण भाजपा और तृणमूल के बीच सौदेबाजी ही संभावनाएं भी व्यक्त की गईं.

विश्लेषकों के अनुसार, भाजपा की नीति सिर्फ तृणमूल की गिरावट पर निर्भर रहने की रही, जिसका उसे उल्टा नुकसान ही हुआ.

राजनीतिक विश्लेषक अनिल कुमार जना का मानना है कि शुरुआत में मुखर होने के बाद भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने शारदा घोटाले पर चुप्पी साध ली.

अनिल ने कहा, “इन सबसे इतर भाजपा को अहसास हो गया है कि ग्रामीण इलाकों में अपना आधार मजबूत किए बगैर वह राज्य में कभी भी राजनीतिक विकल्प नहीं बन सकती. इसलिए अपेक्षित आधार हासिल करने तक भाजपा ने तृणमूल के साथ मौन समझौता कर लिया है.”

दूसरी ओर, निकाय चुनाव में प्रत्याशियों के चयन को लेकर भाजपा में काफी घमासान देखने को मिला और चुनाव के बाद आरोप-प्रत्यारोप का दौर चल निकला और कई भाजपा नेता मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की सराहना करते पाए गए.

पश्चिम बंगाल में 35 साल वाम मोर्चा की सरकार रही, उसके बाद कांग्रेस को साथ लेकर तृणमूल कांग्रेस सत्ता पर काबिज हुई. बाद में कांग्रेस अलग हो गई. राज्य में इस समय ममता बनर्जी के नेतृत्व में तृणमूल का राज है.

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