कोल लिंकेज की केंद्रीय नीति का विरोध
रायपुर | एजेंसी: रमन सिंह ने केन्द्र सरकार द्वारा बिजली संयंत्रों के लिए 35 प्रतिशत कोयला आयात करने की अनिवार्यता का विरोध किया है.
उन्होंने कहा है कि केन्द्र सरकार ने एक निर्देश जारी किया है, जिसमें कोयला मंत्रालय द्वारा कोल लिंकेज की नीति में एकतरफा बदलाव लाकर बिजली घरों को स्वीकृत कोयले की मात्रा को 65 प्रतिशत तक सीमित कर दिया और शेष 35 प्रतिशत की भरपाई आयातित कोयले से करने के लिए कहा गया है. यह अनिवार्यता ठीक नहीं है.
मुख्यमंत्री डॉ. सिंह गुरुवार देर शाम यहां विधानसभा में राज्यपाल के अभिभाषण पर पक्ष-विपक्ष की लम्बी चर्चा का समापन करते हुए सदन को संबोधित कर रहे थे. मुख्यमंत्री ने कहा कि हमारे पास पावर प्लांट हैं, लेकिन केन्द्र सरकार के इस निर्देश के अनुसार हमारे लिए स्वीकृत कोयले की मात्रा 65 प्रतिशत तक सीमित रहेगी और 65 प्रतिशत हमें आयात करना पड़ेगा, जबकि हमारे यहां शत-प्रतिशत कोयला है.
डॉ. रमन सिंह ने पक्ष-विपक्ष के सभी सदस्यों से आग्रह किया कि हम सबको मिलकर दिल्ली जाकर केन्द्र सरकार को सहमत करना चाहिए कि छत्तीसगढ़ के शत-प्रतिशत कोयले से छत्तीसगढ़ में ही बिजली का उत्पादन हो. ये 35 प्रतिशत का जो अतिरिक्त भार पड़ता है, उसकी हमको जरूरत नहीं पड़ेगी.
उन्होंने कहा कि कोल लिंकेज को लेकर और भी लम्बी चर्चा हो सकती है, लेकिन मैं आज इसके विस्तार में नहीं जाऊंगा. मुख्यमंत्री ने कहा कि जब राज्य बना उस समय छत्तीसगढ़ को कुल बिजली की जरूरत 700 मेगावाट थी और हम 700 से 800 मेगावाट बिजली की खपत करते थे, लेकिन आज 3200 से 3500 मेगावाट खर्च कर रहे हैं.
डॉ. रमन सिंह ने कहा कि जो बिजली की बात करते हैं, उनको मैं दिखाना चाहूंगा कि आज की स्थिति में पीक आवर्स में हमारी बिजली की जरूरत 3400 से 3500 मेगावाट तक पहुंच गयी है. सिंचाई पम्पों के लिए किसानों को ढाई लाख नए कनेक्शन दिए गए हैं.
मुख्यमंत्री ने कहा कि छत्तीसगढ़ में प्रति व्यक्ति बिजली पर बिजली की खपत पहले 640 यूनिट होती थी, जो आज बढ़कर लगभग 1540 यूनिट हो गई है.
मुख्यमंत्री ने कहा कि छत्तीसगढ़ में हमारी सरकार ने बिजली के उत्पादन, पारेषण और वितरण के लिए लगभग 18 हजार 117 करोड़ रुपये का निवेश अधोसंरचनाओं में किया है. इसमें से उत्पादन के लिए अधोसंरचना बढ़ाने के लिए 11 हजार 270 करोड़ रूपए, पारेषण की अधोसंरचनाओं पर दो हजार 871 करोड़ रूपए और वितरण की अधोसरंचनाओं पर तीन हजार 976 करोड़ रूपए खर्च किए गए हैं, ताकि गांव-गांव में बिजली का विस्तार हो और किसानों को सिंचाई पम्पों के लिए कनेक्शन मिल सके.